बेगूसराय. जिले में कलश स्थापना के साथ ही चैत्र नवरात्र की पूजा अर्चना शुरू हो गयी है. प्रथम दिन माता की प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा अर्चना की गयी. नव रात्रि के कलश स्थापना को लेकर शहर से लेकर गांव तक व्रतियों व श्रद्धालु लोगों में अहले सुबह से पूजन की तैयारी शुरु हो गयी. हल्दी, कुमकुम, कपूर, जनेऊ, धूपबत्ती, निरांजन, आम के पत्ते, पूजा के पान, हार-फूल, पंचामृत, गुड़ खोपरा, खारीक, बादाम, सुपारी, सिक्के, नारियल, पांच प्रकार के फल, चौकी पाट, कुश का आसन, नैवेद्य आदि पूजन सामग्रियों के साथ विधि विधान के साथ लोगों ने कलश स्थापना किया. विभिन्न पूजा पंडालों में भी कलश स्थापना के कारण दिन भर चहल पहल बनी रही. हिंदू धर्म में नवरात्र के पर्व का विशेष महत्व होता है. चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्र शुरू हो जाती है.
जिले में कलश स्थापना के साथ चैत्र नवरात्र की पूजा-अर्चना शुरू
नवरात्र पर देवी दुर्गा का नौ अलग अलग स्वरूपों की विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है. बताया जाता है कि इस साल माता रानी का नवरात्र रविवार से शुरू हुआ हैं. इसलिए माता हाथी पर सवार होकर आयी है. शास्त्रों में देवी की हाथी की पालकी को बहुत शुभ माना गया है. नवरात्र का शुभारंभ प्रतिपदा तिथि पर घटस्थापना यानी कलश स्थापना के साथ होता है.नवरात्र की घटस्थापना में देवी मां की चौकी लगाई जाती है और 9 दिनों तक माता के 9 अलग-अलग स्वरूपों की उपासना की जाती है.
इस तरह से श्रद्धालुओं ने की माता की कलश स्थापना
नवरात्रि की कलश स्थापना नवरात्र के पहले दिन शुभ मुहूर्त के हिसाब से स्थापित किया गया है. घट या कलश को घर के ईशान कोण में स्थापित किया गया. घट या कलश में पहले थोड़ी सी मिट्टी डाली डाली गयी और फिर जौ.फिर पूजन की गयी.जहां घट स्थापित करना था, उस स्थान को साफ करके वहां पर गंगा जल छिड़ककर उस जगह को शुद्ध कर लिया गया. उसके बाद एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर फिर मां दुर्गा की तस्वीर स्थापित या मूर्ति स्थापित की गयी. एक तांबे के कलश में जल और उसके ऊपरी भाग पर लाल मौली बांधें गयी. कलश में सिक्का, अक्षत, सुपारी, लौंग का जोड़ा, दूर्वा घास डाल दिया गया. कलश के ऊपर आम के पत्ते रखे गये और उस नारियल को लाल कपड़े से लपेटकर रख कलश के आसपास फल, मिठाई और प्रसाद रखना होता है. फिर कलश स्थापना की पूरा अनुष्ठान किया गया फिर बाद में माता की पूजा अर्चना की गयी.
माता की पूजा करने से मनोवांछित फल की होती है प्राप्ति
डंडारी प्रतिनिधि के अनुसार प्रखंड क्षेत्र में चैत्र नवरात्रा के प्रथम दिन रविवार को कलश स्थापना के साथ ही मां दुर्गा के पहले स्वरूप माता शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की गई. इस अवसर पर विशनपुर, मेंहा आदि सार्वजानिक दुर्गा मंदिरों में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ कलश स्थापन का कार्य पूर्ण किया गया. पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण माता पार्वती को शैलपुत्री कहा जाता है. माता शैलपुत्री का वाहन वृषभ (बैल) है. इसलिए इन्हें वृषभारुढ़ा भी कहा जाता है. माता के इस स्वरूप की पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और भक्तों के सभी दोष दूर हो जाते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि के दिनों माता रानी पृथ्वीलोक पर आती हैं और भक्तों के घर पर विराजमान रहती है. इस बार मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आ रही हैं और माता हाथी पर ही सवार प्रस्थान भी करेगी. हाथी पर आगमन खुशियां, समृद्धि और अच्छी वर्षा का प्रतीक माना जाता है. चैत्र नवरात्रा को लेकर चहुंओर भक्तिमय माहौल देखा जा रहा है.
इस तरह है पूजा का कार्यक्रम
द्वितीया (मां ब्रह्मचारिणी) और तृतीया (मां चंद्रघंटा): 31 मार्च
चतुर्थी (मां कुष्मांडा): 1 अप्रैलपंचमी (मां स्कंदमाता): 2 अप्रैल
षष्ठी (मां कात्यायनी): 3 अप्रैल
सप्तमी (मां कालरात्रि): 4 अप्रैल
अष्टमी (मां महागौरी): 5 अप्रैल
नवमी (मां सिद्धिदात्री): 6 अप्रैल
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