Bhagavad Gita: हम सब जीवनभर सुख की तलाश में दौड़ते हैं कभी धन में, कभी संबंधों में, कभी मान-सम्मान में. लेकिन क्या कभी सोचा है, कि क्यों यह सुख टिकता नहीं? श्रीकृष्ण ने गीता में स्पष्ट कहा है “अनित्यं असुखं लोकं इमं प्राप्य भजस्व माम्।” अर्थात यह संसार ही दुःखों का घर है दुःखालयम् अशाश्वतम्।
क्यों कहा भगवान ने संसार को दुखों का घर
भगवान ने समझाया है कि इस संसार की हर चीज़ चाहे वह वस्तु हो, रिश्ता हो या सुख सब अस्थायी हैं. जो चीज़ बदलती रहती है, वह कभी स्थायी खुशी नहीं दे सकती. इसीलिए गीता में कहा गया है “ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते” यानी इन्द्रियों से मिलने वाले सुख असल में दुख की जड़ हैं. बुद्धिमान वही है जो इन पल भर के सुखों में नहीं उलझता, बल्कि अपने सुख का असली स्रोत भगवान में ढूंढता है.
बर्फ की तरह है भौतिक सुख
सोचिए, अगर कोई आग में बैठकर ठंडक ढूंढे क्या वह पाएगा? ठीक वैसे ही जो इंसान इच्छाओं के पीछे भागता है, वह कभी सच्ची शांति नहीं पा सकता. भौतिक सुख बर्फ की तरह हैं, पल भर में पिघल कर खत्म हो जाती है. सच्चा सुख तब मिलता है, जब मन भोग से हटकर भगवान की ओर मुड़ता है.
असलियत में कौन सुखी है?
इस दुनिया में सुख की चाह रखना बिल्कुल स्वाभाविक है, लेकिन अगर हम उसे केवल चीजों, रिश्तों या भोगों में ढूंढते हैं तो यही हमारी सबसे बड़ी भूल है. क्योंकि असली सुख बाहर नहीं, भगवान से जुड़ने में है. जो इंसान इस संसार में रहते हुए भी अपना मन भगवान में लगाए रखता है, वही वास्तव में मुक्त होता है और वही सच्चे अर्थों में आनंद का अनुभव करता है.
क्या सुख की तलाश करना गलत है?
नहीं, सुख की तलाश स्वाभाविक है, लेकिन अगर हम उसे केवल वस्तुओं, रिश्तों या भोगों में ढूंढते हैं, तो वह व्यर्थ है। असली सुख भगवान में, आत्मिक शांति में है.
भौतिक सुख को बर्फ जैसा क्यों कहा गया है?
क्योंकि जैसे बर्फ थोड़ी देर में पिघल जाती है, वैसे ही भौतिक सुख भी क्षणिक होते हैं, ये आते हैं और चले जाते हैं. स्थायी आनंद केवल भगवान से जुड़ने पर ही मिलता है.
सच्चा सुख किसे कहा गया है?
जो व्यक्ति इस संसार में रहते हुए भी अपना मन भगवान में लगाए रखता है और इंद्रिय भोगों से मुक्त रहता है, वही वास्तव में सुखी और शांत कहलाता है.
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