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Bihar Election 2025 : बिहार में छोटे दलों के लिए बड़ा मौका, सरकार बनाने में हो सकती है अहम भूमिका

Bihar Election 2025 : पटना. बिहार विधानसभा चुनाव में छोटे दलों की नेतृत्वक ताकत काफी मजबूत दिख रही है. दोनों गठबंधनों में प्रशासन बनाने की चाबी इनके पास ही रहने की उम्मीद और दावे हो रहे हैं. महागठबंधन में जहां छोटे दल 50 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारें हैं, वहीं एनडीए में शामिल छोटे दलों ने 56 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. 6 और 11 नवंबर को होने वाले मतदान से पहले बने नेतृत्वक माहौल से यह स्पष्ट हो रहा है कि दोनों गठबंधनों में छोटे क्षेत्रीय सहयोगी दलों की प्रशासन के गठन तक अहम भूमिका रहने वाली है. इनके हाथों में ही अगली प्रशासन बनाने की कुंजी रहने की बात कही जा रही है.

महागठबंधन में छोटे दलों की हिस्सेदारी

  • आरजेडी-143,
  • कांग्रेस- 61,
  • सीपीआई एमएल -20,
  • सीपीआई -9,
  • सीपीएम-4,
  • वीआईपी पार्टी-15
  • आईआईपी-2

एनडीए में छोटे दलों की हिस्सेदारी

  • भाजपा-101,
  • जदयू-101,
  • लोजपा-र-29,
  • वीआईपी-15,
  • हम-6,
  • रालोम-6,

अपना मजबूत वोट आधार

हम, आरएलएम, वीआईपी और सीपीआई-एमएल एक बार फिर निर्णायक ताकत के रूप में उभर सकती हैं. पटना पर किसका राज होगा, यह कुछ हजार वोटों से भी तय हो सकता है. बिहार में इन छोटे दलों का अपना वोट बैंक और जनाधार है. उनकी अपने-अपने इलाकों में, जातीय मतदाता समूहों में गहरी पैठ है. एनडीए में जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम), उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम), और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) जैसी छोटी पार्टियां अपने खास जातिगत वोट बैंक के दम पर नतीजों को प्रभावित कर सकती हैं. वहीं महागठबंधन में सीपीआई-एमएल, सीपीआई, वीआईपी और आईआईपी का अपना मजबूत वोट आधार है.

दीपंकर की सीपीआई-एमएल

महागठबंधन में शामिल छोटे दलों में सबसे मजबूत जनाधार सीपीआई-एमएल-लिबरेशन का ही है. इस चुनाव में यह बड़ी ताकत बनकर उभर सकती हैं. 2020 में अपने शानदार प्रदर्शन को यह दाहरा सकती है. 2020 में सीपीआई-एमएल ने अकेले 19 में से 12 सीटें जीती थीं. पार्टी के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा है, “हमने गठबंधन की भावना को बनाए रखा है. हालांकि हम इस बार अधिक सीटों के हकदार थे, हमने अंततः केवल 20 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया.”

चिराग पासवान की लोजपा (रामविलास)

एनडीए में इस बार लोजपा(रामविलास) को 29 सीटें मिली हैं. केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की इस पार्टी का दलितों खासकर पासवान समुदाय में अच्छा जनाधार है. छोटे दलों में यह सबसे मजबूत घटक दल है. लोजपा का जनाधार मिथिला, सीमांचल और मगध के इलाके में फैला हुआ है. 2005 में चिराग के पिता और लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान की जेब में सत्ता की कुंजी रहने के कारण प्रशासन नहीं बनी थी और दोबारा चुनाव कराने पड़े थे. 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी लोजपा को लगभग 5.66% वोट मिले थे. इस चुनाव में लोजपा ने 135 सीटों पर चुनाव लड़ा था और केवल एक सीट पर जीत हासिल की थी. इस चुनाव में चिराग पासवान में जदयू को काफी क्षति पहुंचाई थी. इस बार चिराग की लोजपा एनडीए का हिस्सा है.

जीतन राम मांझी की हम

एनडीए में इस बार हम को 6 सीटें मिली हैं. पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की इस पार्टी का मगध में अच्छा जनाधार है. मांझी की पार्टी का महादलितों, खासकर मुसहर समुदाय के बीच काफी जनाधार हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में जीतनराम मांझी की पार्टी हम (हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा) को लगभग 3.75 लाख वोट मिले थे, जो कुल वोटों का लगभग 1.52% है. इस चुनाव में हम ने 7 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 4 सीटों पर जीत हासिल की थी. इसी जनाधार के बल पर मांझी ने कहा है, “यह सच है कि हमें सीटें कम मिली हैं, हमारे कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा है, बिहारियों के मान-सम्मान के लिए एनडीए जीतेगा और बिहार का मान बना रहेगा.”

उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएम

एनडीए में शामिल आरएलएम को भी 6 सीटें मिली हैं. उपेंद्र कुशवाहा की इस पार्टी का गैर-यादव ओबीसी समुदाय, खासकर कुशवाहा वोटरों पर काफी पकड़ है. साल 2020 के विधानसभा में यह तीसरे मोर्चे का हिस्सा थी, लेकिन इसबार एनडीए में है. उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) को 2020 के विधानसभा चुनाव में लगभग 1.77% वोट मिले थे. उनकी पार्टी ने 104 सीटों पर चुनाव लड़ा था. उपेंद्र कुशवाहा बिहार के गैर-यादव ओबीसी समुदाय में एक अहम नेता हैं, जिन्हें एक जमाने में नीतीश कुमार के विकल्प के रूप में भी देखा जाने लगा था.

मुकेश सहनी की वीआईपी

एनडीए में शामिल वीआईपी ने 15 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के संस्थापक मुकेश सहनी का जनाधार मिथिला के इलाके में दिखता है. ‘सन आफ मल्लाह’ के नाम से प्रसिद्ध मुकेश सहनी की महत्वाकांक्षा बिहार में उपमुख्यमंत्री बनने का है. इसके लिए वो अपनी पार्टी का जनाधार मजबूत करने में लगे हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी को 1.52% वोट मिले थे. इस चुनाव में वीआईपी ने 11 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 4 सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन बाद में उसके सभी विधायक बीजेपी में चले गए थे. बिहार का ईबीसी वर्ग सबसे अधिक आबादी वाला है. वीआईपी का चुनाव में प्रदर्शन महागठबंधन के भविष्य को प्रभावित कर सकता है.

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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