शिवानंद तिवारी/ Bihar News: आमलोगों में यह धारणा बन गई है कि जेपी आंदोलन के दबाव में इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाईं थी. जबकि वास्तविकता यह है कि इंदिरा गांधी ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए आपालकाल लगाईं थी. दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन्हें छह वर्ष के चुनाव लड़ने से रोक लगा दिया था, लेकिन सुप्रीमकोर्ट ने इंदिरा गांधी को इस मामले में आंशिक छूट दी, उसके बाद अपने बेटे संजय गांधी के दबाव में आपातकाल लगाईं थी. हालांकि उसमें तर्क यह दिया गया था कि कुछ लोग सेना और पुलिस को बगावत के प्रेरित कर रहे हैं. कैबिनेट के मंजूरी से पहले ही पुलिस ने उस रात को अखबारों के दफ्तर की बिजली लाइनें काट दी. लोगों को पकड़ कर जेल में डालना शुरू कर दिया था. आपातकाल लगते ही बिहार में हजारों की संख्या में नेतृत्वक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों और आम नागरिकों को जेल में डाल दिया गया. अखबारों पर सेंसरशिप लगा दी गई, जिससे विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गंभीर हमला हुआ.
आपातकाल के खिलाफ आंदोलन नहीं होने से जेपी निराश हुए थे
आपातकाल के खिलाफ संघर्ष और आंदोलन नहीं होने से जेपी निराश हुए थे. गांधी मैदान में जेपी ने अपने एक निजी मित्र का हवाला देते हुए कहा कि मेरी गिरफ्तारी की दिल्ली में चर्चा है. उनका यह मित्र कोई और नहीं बल्कि प्रसिद्ध पत्रकार प्रभाश जोशी थे. जेपी ने कहा था कि अगर मेरी गिरफ्तारी होगी तो गंगा में आग लग जायेगी. लेकिन नेता जेल में बंद होते गए और बाहर निकलने का इंतजार करे रहे. इस दौरान कोई संघर्ष नहीं हुआ.
संघ प्रमुख ने इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर कहा था कि वे 20 सूत्री कार्यक्रम से पूर्णतया हैं सहमत
आपातकाल निश्चय ही हिंदुस्तानीय लोकतंत्र पर धब्बा था. लेकिन, उस दौरान आरएसएस की क्या भूमिका थी, इसे भी ओझल नहीं किया जा सकता है. आपातकाल के दौरान जन समर्थन प्राप्त करने के लिए इंदिरा गांधी ने 20 सूत्री कार्यक्रम घोषित किए. उस दौर के संघ प्रमुख बाला साहेब देवरस ने इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर कहा था कि वे 20 सूत्री कार्यक्रम से पूर्णतया सहमत हैं. अगर प्रशासन संघ पर से प्रतिबंध हटा लेती है और हमारे स्वयंसेवकों को रिहा कर देती है तो हम पूरे मन और निष्ठा से 20 सूत्री कार्यक्रम के समर्थन में अभियान चलाएंगे. अपनी भाषण में भी इंदिरा गांधी ने संघ की तारीफ की थी.
आज देश में अघोषित आपातकाल
लेकिन, आज जो देश में चल रहा है, वह अघोषित आपाकाल है. या यूं कहे तो आपातकाल से भी खतरनाक स्थित है. अखबारों में खुलकर लिखने की आजादी नहीं है. अब चुनाव को लेकर भी कई तरह की बातें सामने आ रही हैं.
बगैर किसी नेतृत्वक इंदिरा गांधी ने की थी चुनाव की घोषणा
बगैर किसी नेतृत्वक इंदिरा गांधी ने चुनाव की घोषणा की थी. आपातकाल के दौरान लोकसभा की मियाद बढ़ाकर छह साल कर दी गई थी. लेकिन उन्होंने चुनाव करवाने का निर्णय लिया. उन्हें और संजय गांधी को चुनाव तक हारना पड़ा था. पूरे उत्तर हिंदुस्तान में कांग्रेस का एक तरह से सफाया हो गया था, हालांकि दक्षिण के राज्यों में कांग्रे से जीत मिली थी. चुनाव करवाने का निर्णय लेने शायद उनकी नेतृत्वक परिवरिश का परिणाम था. स्वतंत्रता आंदोलन में उनके पिता जवाहरलाल नेहरू और दादा मोतिलाल नेहरू आदि जेल गए थे.
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