Bihar News: औरंगाबाद जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर दाउदनगर शहर में दाउद खां का किला है. दाउदनगर शहर सैकड़ों साल पुराना शहर है. दाउद खां के किला से इस शहर का इतिहास जुड़ा हुआ है. यह पुरातात्विक धरोहर स्थापत्य कला का जीवंत मिसाल है, लेकिन दुर्भाग्यवश अभी तक किला को रिजर्व और विकसित नहीं किया जा सका है. किले की कलाकृति के अवशेष इसकी विशेषता को दर्शाते हैं.
19 ऐतिहासिक धरोहरों की लिस्ट में दाउद खां का किला शामिल
वैसे कहने को तो यह दाउद खां का किला कला, संस्कृति और युवा विभाग में आता है, जिसका बोर्ड भी लगा हुआ है. यह पुरातत्व विभाग के अधीन आता है. जिले के जिन 19 ऐतिहासिक धरोहरों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना बनाई गई है, उस लिस्ट में दाउद खां का किला भी शामिल है. लेकिन, धरातल पर जो स्थिति दिखती है, उसे सही नहीं कहा जा सकता.
पर्यटन को मिल सकेगा बढ़ावा
2009 में कराये गए सौंदर्यीकरण के अधिकतर काम ध्वस्त या फिर डैमेज हो चुके हैं. लगभग सात सालों में भी अतिक्रमण चिह्नित नहीं हो सका है, जिसके कारण चारों तरफ की चहारदिवारी नहीं कराई जा सकी है. हालांकि, अधूरी चहारदीवारी कराई गई थी. जब ऐतिहासिक धरोहर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होंगे, तो शहर के लिए काफी उपयोगी साबित होगा. पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा. स्थानीय लोगों को स्वरोजगार मिल सकेगा.
2022 में ही मांगी गई थी रिपोर्ट
पर्यटन विभाग की तरफ से अगस्त 2022 में औरंगाबाद जिले के 19 ऐतिहासिक धरोहरों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिये डीएम से लेटेस्ट रिपोर्ट की मांग की गई थी. उस लिस्ट में इस किला का नाम भी शामिल है. आश्चर्यजनक बात तो यह है कि करीब सात सालों में भी किला की जमीन को अतिक्रमण मुक्त स्थानीय प्रशासन की तरफ से नहीं कराया जा सका है, जिसके कारण किला परिसर का सौंदर्यीकरण कार्य पूरा नहीं हो सका.
लंबे समय से सौंदर्यीकरण का काम प्रभावित
दरअसल, किला परिसर के पूर्वी एरिया से लेकर उत्तरी भाग तक अतिक्रमण का शिकार है. लंबे समय से सौंदर्यीकरण का काम प्रभावित है. अब तो जो पहले सौंदर्यीकरण के काम कराये गये थे, वह भी डैमेज होते जा रहे हैं या हो गए हैं. करीब सात साल पहले डीएम के आदेश के अनुसार किला परिसर को सुरक्षित रखने और अतिक्रमण से मुक्त कराने की कार्रवाई करने का आदेश सीओ और थानाध्यक्ष को दिया था. आज तक न तो अतिक्रमण चिन्हित हो सका और न इसका सौंदर्यीकरण कार्य पूरा कराया जा सका.
क्या है दाउद खां के किला का इतिहास
जानकारी के मुताबिक, इसके अंदर दक्षिण 20, पश्चिम से 10 और उत्तर में 7 अस्तबलनुमा ध्वस्त होते अवशेष और मस्जिद की आकृति के अवशेष आज भी हैं. औरंगजेब के शासनकाल में बिहार में पहले सूबेदार 1659 में दाउद खां कुरैशी बनाये गये. तीन अप्रैल 1660 को दाउद खां पलामू फतह के लिए पटना से रवाना हुए . पलामू फतह के बाद पटना वापसी के दौरान उन्हें अंछा परगना में ठहरने की नौबत आयी. वे शिकार पर निकले तो उन्हें बताया गया कि यह इलाका खतरनाक है.
दरअसल, बड़े इलाके का राजस्व जब दिल्ली पहुंचाया जाता था तो इस रास्ते में उसे लूट लिया जाता था. इसकी सूचना बादशाह को दी गयी. 1663 में यहां किला का निर्माण शुरू कराया गया, जो 10 साल बाद 1673 में बन कर तैयार हो गया. ऐतिहासिक तथ्य है कि दाउद खां के आगमन से पहले यह बस्ती अंछा परगना का सिलौटा बखौरा था. दाउदनगर का लिखित इतिहास दाउद खां से ही शुरू हुआ और माना जाता है कि उनके नाम पर ही इस शहर का नाम दाउदनगर पड़ा.
(औरंगाबाद से ओमप्रकाश की रिपोर्ट)
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