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BPSC के जरिए चिराग पासवान की SEAT टैक्टिस? इस बार विधानसभा में एंट्री की तैयारी के लिए नया ‘मॉडल’?

नया विचार पटना– बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) की 70वीं परीक्षा दोबारा कराने की मांग को लेकर जन सुराज के नेता प्रशांत किशोर का अनशन समाप्त हो गया है। मामला हाईकोर्ट में है। 30 जनवरी को अगली सुनवाई है। आश्चर्यजनक ढंग से प्रशासन और प्रतिपक्ष तकरीबन साढ़े तीन लाख अभ्यर्थियों के भविष्य से जुड़े इस मसले पर चुप हैं। दोनों की अब तक की कोशिश यही दिखती है कि बीपीएससी को बचाया जाए। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने शुरू में रुचि तो दिखाई, लेकिन प्रशांत किशोर की इस मामले में एंट्री से उन्होंने भी कदम खींच लिए। एनडीए में अपवाद स्वरूप चिराग पासवान की पार्टी एलजेपीआर ही है, जिसने अभ्यर्थियों को नैतिक समर्थन दिया है। इसकी क्या वजह है, यह तो चिराग ही बेहतर बता सकते हैं।

चिराग को धांधली का शक

चिराग पासवान कहते हैं- ‘मैं और मेरी पार्टी पूरी तरह से छात्रों के साथ हैं। मैं मानता हूं कि कहीं ना कहीं इस परीक्षा में धांधली हुई है। कुछ तो अनियमितता बरती गई, जिसकी वजह से कुछ केंद्रों पर दोबारा परीक्षा की नौबत आई। मामले की गंभीरता इससे ही पता चलती है कि एक ही परीक्षा दो बार कराई गई। जिन 22 केंद्रों पर दोबारा परीक्षा हुई, वहां गड़बड़ी की पुष्टि जरूर हुई होगी। BPSC की जिम्मेदारी बनती है कि सभी बच्चों को समान मौके मिलें। किसी को एडवांटेज न मिले। इसलिए पूरी परीक्षा को फिर से करानी चाहिए।’

राज्य प्रशासन ने पल्ला झाड़ा

राज्य प्रशासन ने बीपीएससी को स्वशासी संस्था मानते हुए अपनी जिम्मेदारियों की इतिश्री समझ ली। आयोग अपनी जिद पर अड़ा है। अभ्यर्थी आंदोलन की राह पर हैं। प्रशासन अभ्यर्थियों की बात मानने की कौन कहे, सुनने तक को तैयार नहीं है। अभ्यर्थी प्रशासन से बात कराने के लिए राज्यपाल से मिले। राज्यपाल ने उनकी मांगों पर गौर करने का आश्वासन भी दिया। पर, यह सबको पता है कि राज्यपाल की अपनी सीमाएं हैं। वे प्रशासन या आयोग के मामले में सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकते।

अभ्यर्थियों के साथ आए चिराग

सवाल उठता है कि प्रशासन चुप है, प्रशासन में सहयोगी भाजपा चुप है और एनडीए के अन्य घटक भी नहीं बोल रहे तो चिराग पासवान ने अलग स्टैंड कैसे ले लिया! कहीं वे राज्य प्रशासन के मुखिया नीतीश कुमार से 2020 की तरह पंगा लेने की भूमिका तो नहीं तैयार कर रहे! या कि विधानसभा चुनाव में सीटों के लिए प्रेशर बनाने की उनकी यह टैक्टिस है। एलजेपीआर पहले ही 70 सीटों पर चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर कर चुकी है। एनडीए में समझौता हुए बगैर चिराग ने कुछ सीटों पर संभावित उम्मीदवारों की घोषणा पहले ही कर दी है। इसमें शेखपुरा की सीट भी शामिल है। चिराग ने वहां से पार्टी जिला अध्यक्ष इमाम गजाली को उम्मीदवार बनाने की घोषणा की है।

नीतीश से चिराग की दोस्ती न के बराबर?

जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर कहते रहे हैं कि उनकी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी। प्रशासन बनाने के लिए भी वे किसी से तालमेल नहीं करेंगे। ऐसे में एनडीए से सिर्फ चिराग के दोबारा बीपीएससी परीक्षा कराने के लिए अभ्यर्थियों के साथ खड़े होने के क्या मायने हो सकते हैं। अतीत में नीतीश से उनके रिश्ते कैसे रहे हैं, यह सबको पता है। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग ने नीतीश को ऐसी चोट पहुंचाई, जिसका दर्द पांच साल बाद भी उन्हें सालता है। चिराग को बिहार में संभावनाएं दिख रही हैं। नेतृत्व में नीतीश कुमार की यह आखिरी पारी हो सकती है। भाजपा के पास भी कोई दमदार युवा चेहरा नहीं है। यानी आगे भी गठबंधन प्रशासन की ही संभावनाएं हैं। ऐसे में चिराग के पास बिहार की नेतृत्व के लिए कुछ विधायक तो होने ही चाहिए।

सीटों की बारगेनिंग की टैक्टिस!

चिराग को यह भी पता है अपने दम पर चुनाव में उनकी सफलता संभव नहीं। लोकसभा चुनाव में पांच सीटें एलजेपीआर को मिलीं तो उसमें एनडीए की साझा ताकत थी। अपने दम पर तो वे 2020 में 134 उम्मीदवार उतार कर देख चुके हैं। एक भी नहीं जीता। हां, किसी को हराने का माद्दा जरूर उनमें है। विधानसभा चुनाव में जेडीयू को तकरीबन तीन दर्जन सीटों पर हार का कारण चिराग ही बने थे। चिराग अपनी ताकत बढ़ाना चाहते हैं, ताकि वे एनडीए में सीटों की बारगेनिंग कर सकें।

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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