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Buxar News: कृष्ण जन्मोत्सव के प्रसंग पर झूम उठे श्रोता

बक्सर

. चरित्रवन स्थित स्वामी सहजानंद सरस्वती आश्रम में चल रहे सात दिवसीय श्रीमदभागवत कथा के चौथे रविवार को कथावाचक पूज्य राजगुरु मठ काशी एवं स्वामी सहजानंन्द सरस्वती आश्रम के वर्तमान पीठाधिश्वर श्री दंडी स्वामी देवानंद सरस्वती जी के शिष्य हरी प्रकाश जी महाराज ने कृष्ण जन्मोत्सव के प्रसंग कि कथा सुनायी. घर में नए शिशु का आगमन ढेर खुशियां ले कर आता है. उसकी चंचलता, चपलता, मुस्कुराहट और नटखट पन से सारा क्षोभ, सारा कष्ट पल भर में ही लोप हो जाता है.हर मां अपने शिशु में कृष्ण की छवि देखती है.उसे लगता है जैसे कृष्ण ही उसके आंचल में उतर आए हैं.कृष्ण हैं ही ऐसे. कृष्ण की बाल लीलाओं की चर्चा करते ही नटखट कृष्ण की छवि आंखों में तैर जाती है. नंद बाबा और यशोदा के घर में कृष्ण के आगमन पर छठवें दिन कृष्ण की छठी पूजी, तो मानो वात्सल्य का मंथन आरंभ हो गया.कृष्ण अपनी माता का हृदय मथ रहे थे और उससे यशोदा का प्रेम और भाव मक्खन से तिरने लगे थे.सही अर्थों में कहे तो कृष्ण (जगदीश्वर) ने बाकी जगत की माताओं को यह बतलाया, की यशोदा के जैसा प्रेम मिले तो मैं पुत्र रूप में भी आपके यहां जन्म ले सकता हूं.कंस ने पूतना को कृष्ण वध के लिए भेजा, बालक ने अपनी पूरी शक्ति से उस राक्षसी के प्राण ही खींच लिए.पूतना जब कृष्ण को लिए मधुपुरी दौड़ रही थी तो यशोदा के प्राण पूतना के पीछे दौड़ पड़े.यशोदा तभी पुनः सचेत हुई जब कृष्ण दोबारा आकर उनके आंचल में समा गए और यशोदा ने पूरा लाड़ उड़ेलते हुए गाय की पुंछ फिराकर उनकी शुभ-मंगल कामना की.देवकी ने जन्म दिया और यशोदा मां कहलाई.माता और पुत्र प्रेम की यह सबसे बड़ी मिसाल बनी.जब कर्ण युद्ध भूमि में अपने प्राण त्याग रहे थे तब, राधा मां बहुत करुण स्वर में बोली, तुम मेरे पुत्र हो कर्ण, मैं ही तुम्हारी माता हूं.मैंने तुम्हारा हर वो क्षण जिया है, जब तुम्हें मां के प्रेम की सबसे अधिक आवश्यकता थी. कर्ण के कुंती पुत्र कहलाने से वे बहुत दुखी हो गयी थी.कर्ण ने वासुदेव के सामने ही उनको आश्वस्त किया और कहा – ”वासुदेव की भी तो दो मां थी और लोग उन्हे यशोदा नंदन के नाम से अधिक जानते हैं. मैं भी ””””राधेय”””” नाम से ही जाना जाऊंगा मां. कृष्ण के प्रेम से भाव विभोर यशोदा सब सुध-बुध भूल चुकी थी. कृष्ण की लीलाएं देख-देख फूली न समाती थी-असुमती फूली-फूली डोरती अति आनंद रहत सगरों दिन हसि हसि सब सौं बोलती मंगल गाय उठत अति रस सौं अपने मनका भायो विकसित कहति देख ब्रिजसुन्दरी कैसी लगत सुहायो.यशोदा के प्राण बसे थे, कृष्ण में. कृष्ण के बाल मुख से कहे गए शब्दों पर यशोदा बलिहारी हुई जाती थी. कृष्ण और यशोदा के बीच का वह प्रसंग- मैया मैं नहीं माखन खायो, री मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो.यशोदा को पता है की कृष्ण सच नहीं कह रहे, पर उनके भोले मुंह से ये सब सुन कर वे उन्हें और प्यार करने लगती हैं और कृष्ण की शिकायत करने वालों से रुष्ट. चाहे सूरदास हो या रसखान, कृष्ण के मोह से कोई नहीं बच पाया। रसखान ने तो लिखा ही- शिव, स्वयं जिनका ध्यान करते हैं, सारा संसार जिनको पूजता है, उनसे महान और कोई देवता नहीं. वही मनुष्य रूप रख कर कृष्ण में अवतरित हुए हैं, और अपनी लीलाएं सबको दिखा रहे हैं.विराट देव बालक रूप रख नंद जी के आंगन में मिट्टी खाते घूम रहे हैं.ऐसे हैं श्री कृष्ण. रसखान कृष्ण प्रेम में ऐसे डूबे कि उन्होंने बाल लीला, रासलीला, फागलीला, कुंजलीला सबको अपने काव्य में बांध लिया. कृष्ण के प्रति अगाध प्रेम रखने वाले रसखान धर्म से हिंदू नहीं थे, निश्छल प्रेम ही था, जिसने उनको कृष्ण भक्ति और कृष्ण प्रेम में सर्वोपरि रखा. कृष्ण बाल लीला की चर्चा हो और सूरदास के दोहे और पदों की बात न हो तो अधूरापन रह जाता है.कहने को सूरदास जन्मांध थे, पर कृष्ण का जितना सुंदर चित्रण उन्होंने किया, उससे ये संशय हुआ की उनका नेत्रहीन होना संभव ही नहीं. इसको पढ़कर कौन कह सकेगा की सूरदास ने कृष्ण की छवि कभी देखी ही नहीं.ऐसा वर्णन तो आंखों वालों के लिए भी अकल्पनीय है.जैसे इस दृष्य में लग रहा है कि कृष्ण ने सूरदास के सामने ही यह शिकायत की है.

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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