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Awadh Ojha: दिल्ली चुनाव में हारने वाले अवध ओझा कितने संपत्ति के हैं मालिक?

Awadh Ojha: पटपड़गंज विधान सभा सीट से आम आदमी के उम्मीदवार अवध ओझा चुनाव हार गए हैं. अवध को हिंदुस्तानीय जनता पार्टी के रविंदर सिंह नेगी ने 28072 वोटों के अंतर से चुनाव हराया है. अवध ओझा के विधानसभा जाने का सपना फिलहाल तो टूट गया है. ऐसे में आइए जानते हैं अवध ओझा कितने संपत्ति के मालिक है? अवध ओझा की संपत्ति का विवरण उनके हलफनामे में सामने आया है, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि वह करोड़पति हैं, हालांकि उन पर कुछ कर्ज भी है. ओझा के पास कुल 4.85 करोड़ रुपये से अधिक की चल संपत्ति है, जबकि उनकी पत्नी के पास 59 लाख रुपये की चल संपत्ति है. उनके बच्चों के नाम भी लगभग 5 लाख रुपये की संपत्ति दर्ज है. नकद राशि की बात करें तो ओझा के पास 1.5 लाख रुपये, जबकि उनकी पत्नी के पास 28,500 रुपये नकद मौजूद हैं. इसके अलावा, ओझा के पास 9.67 लाख रुपये मूल्य का सोना है, जबकि उनकी पत्नी 20 लाख रुपये के सोने की मालकिन हैं. इसे भी पढ़ें: सोशल मीडिया पर मीम्स और रील्स की बाढ़, यूजर्स ले रहे आप-कांग्रेस के मजे वाहनों की बात करें तो ओझा के पास महिंद्रा स्कॉर्पियो, जबकि उनकी पत्नी के पास टाटा टियागो कार है. हालांकि, उनके पास कोई कृषि भूमि नहीं है. अचल संपत्तियों की बात करें तो ओझा के नाम पर ग्रेटर नोएडा में दो फ्लैट हैं, जबकि उनकी पत्नी के नाम पर लखनऊ, हरिद्वार और वजीराबाद में आवासीय संपत्तियां हैं. ओझा की कुल 1.45 करोड़ रुपये की अचल संपत्ति है, जबकि उनकी पत्नी की अचल संपत्ति 1.6 करोड़ रुपये के करीब है. हालांकि, ओझा पर 80 लाख रुपये का कर्ज है, जबकि उनकी पत्नी पर भी 4.38 लाख रुपये की देनदारी दर्ज है. इसे भी पढ़ें: राजा बनाने वाले अवध ओझा की हवा टाइट, जानें क्या हुआ? इसे भी पढ़ें: तिहाड़ जेल वापस जाएंगे अरविंद केजरीवाल?  इसे भी पढ़ें: तिहाड़ जेल वापस जाएंगे अरविंद केजरीवाल?  The post Awadh Ojha: दिल्ली चुनाव में हारने वाले अवध ओझा कितने संपत्ति के हैं मालिक? appeared first on Naya Vichar.

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दवा, दारू, दर, दीन और कालिंदी, AAP के अरविंद केजरीवाल की हार की 5 बड़ी वजह

Arvind Kejriwal: दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की अप्रत्याशित हार ने कई नेतृत्वक विश्लेषकों को हैरान कर दिया है. आम आदमी पार्टी (AAP) जिसने एक समय दिल्ली की नेतृत्व में क्रांतिकारी बदलाव लाया था, अब सत्ता से बाहर हो चुकी है. दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 27 साल बाद सत्ता में वापसी की ओर कदम बढ़ा दिए हैं. पार्टी ने कई सीटों पर बढ़त बनाते हुए रुझानों में स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया है. 2013 में अन्ना हजारे के आंदोलन से नेतृत्व में कदम रखने वाले अरविंद केजरीवाल को पहली बार चुनावी हार का सामना करना पड़ा है. चुनाव के दौरान ही हार के संकेत मिलने लगे थे, लेकिन केजरीवाल अपनी व्यक्तिगत लोकप्रियता के सहारे इसे जीत में बदलने की कोशिश करते रहे. इस हार के पीछे दवा, दारू, दर (शीशमहल), दीन (मुस्लिम वोट बैंक) और कालिंदी (यमुना नदी) जैसे पाँच प्रमुख कारण माने जा रहे हैं. अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली से खुद अपनी सीट से हार गए हैं. भाजपा के प्रवेश वर्मा ने उन्हें शिकस्त दी है. आइए जानते हैं, AAP की इस हार के 5 प्रमुख वजहें… 1. दवा: मोहल्ला क्लीनिक मॉडल की गिरती साख केजरीवाल प्रशासन ने मोहल्ला क्लीनिक और प्रशासनी अस्पतालों के मॉडल को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश किया था. लेकिन चुनाव से पहले आई स्वास्थ्य सेवाओं की कमजोर स्थिति और मुफ्त दवाओं की अनुपलब्धता ने जनता को निराश किया. दिल्ली के प्रशासनी अस्पतालों में बदहाल सुविधाओं और डॉक्टरों की कमी के चलते कई मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों की ओर रुख करना पड़ा. इससे आम जनता में AAP प्रशासन के प्रति नाराजगी बढ़ी, जिसका खामियाजा चुनाव में भुगतना पड़ा. 2. दारू: शराब नीति पर विवाद और भ्रष्टाचार के आरोप केजरीवाल प्रशासन की नई शराब नीति को लेकर विपक्ष ने जोरदार हमला किया. आरोप लगे कि नई नीति के तहत शराब के ठेकों की संख्या बढ़ा दी गई, जिससे दिल्ली में शराब की खपत बढ़ गई और कई इलाकों में कानून-व्यवस्था बिगड़ने लगी. इस मुद्दे ने स्त्री मतदाताओं को खासा नाराज किया, क्योंकि उन्हें लगा कि यह नीति सामाजिक बर्बादी को बढ़ावा दे रही है. इसी दौरान शराब नीति में भ्रष्टाचार को लेकर मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी और घोटाले के आरोपों ने AAP की छवि को गहरा धक्का पहुंचाया. इसके कारण अरविंद कुल 177 दिन जेल में रहे तो सिसोदिया ने 17 महीने जेल बिताए. यह सब उनकी नकारात्मक छवि में जुड़ता गया. 3. दर (शीशमहल): आलीशान बंगले पर विवाद केजरीवाल, जो खुद को आम आदमी के नेता के तौर पर पेश करते थे, उनके लग्जरी “शीशमहल” बंगले को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हुआ. जब यह सामने आया कि प्रशासनी फंड से 45 करोड़ रुपये खर्च कर मुख्यमंत्री आवास को अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस किया गया, तो जनता के बीच “आम आदमी बनाम विशेष आदमी” की बहस छिड़ गई. विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाकर AAP प्रशासन को घेर लिया और जनता में भी यह धारणा बनी कि केजरीवाल अब साधारण नेता नहीं रहे. 4. दीन: मुस्लिम वोट बैंक में सेंध AAP को हमेशा से मुस्लिम वोटरों का समर्थन मिलता रहा है, लेकिन इस बार इस वोट बैंक में दरार पड़ गई. हाल के वर्षों में कई मुस्लिम समुदायों ने कांग्रेस और अन्य दलों की ओर रुख कर लिया. दिल्ली दंगों, शाहीन बाग आंदोलन और AAP की केंद्र के प्रति नरम नीति को लेकर मुस्लिम मतदाता असमंजस में रहे. यही वजह रही कि AAP को अपने पारंपरिक वोट बैंक का पूरा समर्थन नहीं मिला और इसका सीधा फायदा विपक्षी दलों को हुआ. केजरीवाल ने 2020 में हुए दिल्ली दंगों में मुस्लिम जनता का उस तरह से साथ नहीं दिया, जितनी उस समाज की अपेक्षा थी. यह भी उनकी हार के प्रमुख कारणों में रहा. 5. कालिंदी (यमुना नदी): जल संकट और प्रदूषण दिल्ली में यमुना नदी की सफाई को लेकर बड़े-बड़े वादे किए गए थे, लेकिन हालात जस के तस बने रहे. चुनाव से पहले आई झाग से भरी यमुना नदी की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं, जिससे AAP प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठे. जल संकट, बढ़ता प्रदूषण और खराब सीवरेज सिस्टम ने लोगों को नाराज कर दिया, खासकर उन इलाकों में जहां पानी की किल्लत सबसे ज्यादा थी. केजरीवाल ने चुनाव प्रचार के दौरान यहां तक कह गए कि यह चुनाव जिताने वाला मुद्दा नहीं है. इतना ही नहीं बीच चुनाव के दौरान हरियाणा के मुख्यमंंत्री के साथ पानी भरा गिलास भी छाया रहा. सत्ता से बाहर हुई AAP दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल की रेवड़ी संस्कृति बनाम भाजपा के बुनियादी विकास मॉडल की टक्कर देखने को मिली. जहां AAP लगातार मुफ्त सुविधाओं की घोषणाएं करती रही, वहीं भाजपा ने सड़कों और पानी की समस्याओं को प्रमुख मुद्दा बनाया. बुराड़ी से संगम विहार और पटपड़गंज से उत्तम नगर तक टूटी सड़कों और अधूरी मरम्मत को लेकर भाजपा ने लगातार हमले किए. आरोप लगे कि जल बोर्ड ने कई जगह सड़कें तोड़ दीं, लेकिन उनकी मरम्मत नहीं हुई, जिससे जनता को परेशानी हुई. खुद केजरीवाल ने भी सड़कों की बदहाली को स्वीकार किया था. इसके अलावा, पानी की किल्लत और टैंकर माफिया की समस्या ने जनता को झकझोर दिया. गर्मियों में पानी की कमी एक बड़ी चिंता बनी रही, जिससे AAP की मुफ्त योजनाओं पर भी सवाल उठे. भाजपा ने जहां फ्री स्कीम जारी रखने का वादा किया, वहीं सड़कों और पानी की समस्या के समाधान का भरोसा भी दिलाया. माना जा रहा है कि दिल्ली की जनता ने इन्हीं मुद्दों पर भाजपा को मौका देने का फैसला किया. दिल्ली चुनाव में AAP की हार कोई एक दिन में नहीं हुई, बल्कि इसके पीछे कई कारण हैं. स्वास्थ्य सेवाओं में गिरावट, शराब नीति पर विवाद, मुख्यमंत्री आवास का खर्च, मुस्लिम वोट बैंक की सेंध और जल संकट जैसे मुद्दों ने केजरीवाल प्रशासन की लोकप्रियता को कम कर दिया. जनता ने बदलाव का फैसला किया, और इसका सीधा असर चुनावी नतीजों में दिखा. वहीं भाजपा इस जीत से पूरी तरह बम-बम है. The post दवा, दारू, दर, दीन और कालिंदी, AAP के अरविंद केजरीवाल की हार की 5 बड़ी वजह appeared first on Naya Vichar.

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Delhi Election Result: वो 5 बड़े कारण, जिसकी वजह से दिल्ली में पिछड़ गई केजरीवाल की आप

Delhi Election Result: दिल्ली विधानसभा चुनावों के नतीजों की शुरुआती तस्वीर स्पष्ट रूप से दर्शा रही है कि आम आदमी पार्टी को इस बार करारी हार का सामना करना पड़ सकता है. चुनाव आयोग की वेबसाइट के अनुसार सुबह 9:37 बजे तक हिंदुस्तानीय जनता पार्टी 32 सीटों पर आगे चल रही थी, जबकि आम आदमी पार्टी 14 सीटों पर ही बढ़त बनाए हुए थी. वहीं, आज तक की रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी लगभग 50 सीटों पर आगे थी, और आम आदमी पार्टी केवल 19 सीटों पर ही बढ़त बनाए हुए थी. यह आंकड़े स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि आम आदमी पार्टी को इस बार बड़ी हार का सामना करना पड़ सकता है. अरविंद केजरीवाल को क्यों नहीं मिली जनता की सहानुभूति? दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन दोनों को प्रशासन में रहते हुए जेल जाना पड़ा, लेकिन दोनों की नेतृत्वक परिस्थितियों में अंतर रहा. जहां झारखंड की जनता ने हेमंत सोरेन के प्रति सहानुभूति दिखाई और उनकी पार्टी ने चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया, वहीं दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के प्रति वैसी सहानुभूति नहीं देखी गई. आइए जानते हैं कि आम आदमी पार्टी की इस बड़ी हार के पीछे क्या कारण हो सकते हैं. 1. अनर्गल आरोपों और झूठ से समर्थकों की नाराजगी अरविंद केजरीवाल पर अक्सर यह आरोप लगता रहा है कि वे अपने विरोधियों पर बिना आधार के आरोप लगाते रहे हैं. इसके चलते कई बार उन्हें माफी भी मांगनी पड़ी है, जिससे उनकी छवि एक ऐसे नेता की बनती गई, जिसकी बातों पर भरोसा करना मुश्किल होता गया. सबसे बड़ा विवाद तब खड़ा हुआ जब उन्होंने हरियाणा प्रशासन पर जानबूझकर दिल्ली को जहरीला पानी भेजने का आरोप लगाया. उन्होंने यह तक कहा कि हरियाणा प्रशासन दिल्ली में नरसंहार करना चाहती है. इस आरोप पर हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी ने खुद दिल्ली बॉर्डर पर जाकर यमुना का पानी पीकर इस दावे को गलत साबित किया. इससे न केवल उनके विरोधियों को मौका मिला बल्कि उनके हार्डकोर समर्थक भी नाराज हो गए. इसे भी पढ़ें: तिहाड़ जेल वापस जाएंगे अरविंद केजरीवाल?  2. शीशमहल विवाद ने छवि को नुकसान पहुंचाया नेतृत्व में आने से पहले अरविंद केजरीवाल ने वीवीआईपी कल्चर के खिलाफ आवाज उठाई थी और कहा था कि वे प्रशासनी सुविधाओं का उपयोग नहीं करेंगे. लेकिन सत्ता में आने के बाद उन्होंने न केवल प्रशासनी बंगले और गाड़ियों का उपयोग किया, बल्कि अपने लिए एक बेहद महंगा मुख्यमंत्री आवास भी बनवाया, जिसे मीडिया ने ‘शीशमहल’ का नाम दिया. सीएजी रिपोर्ट में भी उनके आवास पर हुए भारी खर्च पर सवाल उठाए गए. इससे उनकी सादगी वाली छवि को बड़ा झटका लगा, और जनता में उनके प्रति अविश्वास बढ़ गया. 3. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का गठबंधन न होना उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महाराष्ट्र चुनावों के दौरान ‘बंटे तो कटे’ का नारा दिया था, जो हिंदू एकता के संदर्भ में था. हालांकि, इस नारे से सीख लेते हुए अन्य पार्टियों ने भी अपने गठबंधन को मजबूत किया. लेकिन दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस एक साथ नहीं आ सके. हरियाणा में कांग्रेस बहुत कम मार्जिन से प्रशासन बनाने से चूक गई थी, लेकिन इसके बावजूद दिल्ली में दोनों पार्टियां एक साथ नहीं आईं. इससे वोटों का विभाजन हुआ और बीजेपी को फायदा मिला. इसे भी पढ़ें: गड्ढे में गिरे ‘केजरीवाल’, मीम्स वायरल 4. स्त्रीओं के लिए 2100 रुपये योजना लागू न करना झारखंड में झामूमो प्रशासन की जीत का एक प्रमुख कारण स्त्रीओं के लिए लागू की गई आर्थिक सहायता योजना को माना गया. दिल्ली में भी अरविंद केजरीवाल ने स्त्रीओं को हर महीने एक निश्चित राशि देने की योजना की घोषणा की थी, लेकिन इसे लागू नहीं कर पाए. इससे जनता में यह संदेश गया कि अगर वे इस योजना को चुनाव से पहले लागू नहीं कर सके, तो चुनाव जीतने के बाद भी इसे लागू करने में असफल हो सकते हैं. अगर यह योजना एक महीने पहले लागू कर दी गई होती, तो शायद परिणाम कुछ और हो सकते थे. 5. गंदे पानी की सप्लाई और राजधानी की गंदगी दिल्ली प्रशासन ने मुफ्त सुविधाओं की शुरुआत करके जनता का समर्थन पाया था, लेकिन मूलभूत सुविधाओं की कमी से जनता परेशान हो गई थी. सबसे बड़ा मुद्दा पानी की सप्लाई का था. गर्मियों में दिल्ली में लोग साफ पानी के लिए परेशान होते रहे, और टैंकर माफिया पूरी तरह हावी हो चुका था. अरविंद केजरीवाल ने 24 घंटे स्वच्छ जल सप्लाई का वादा किया था, लेकिन यह पूरा नहीं हुआ. इसके साथ ही राजधानी की सफाई व्यवस्था भी पूरी तरह चरमरा गई थी. चूंकि एमसीडी में भी आम आदमी पार्टी की ही प्रशासन थी, इसलिए पार्टी के पास कोई बहाना नहीं था. इससे जनता में प्रशासन के प्रति नाराजगी बढ़ी. इसे भी पढ़ें: राजा बनाने वाले अवध ओझा की हवा टाइट, जानें क्या हुआ? आम आदमी पार्टी की हार के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं. अरविंद केजरीवाल की विश्वसनीयता पर उठते सवाल, शीशमहल विवाद, कांग्रेस से गठबंधन न होना, स्त्री आर्थिक सहायता योजना का लागू न होना, राजधानी की सफाई और पानी की समस्या, और खुद के मुख्यमंत्री बनने को लेकर संशय – ये सभी कारण जनता की नाराजगी के पीछे रहे. इस चुनाव परिणाम से यह स्पष्ट हो गया है कि केवल मुफ्त सुविधाएं देना ही काफी नहीं होता, बल्कि जनता को बुनियादी सुविधाओं की भी आवश्यकता होती है. अगर आम आदमी पार्टी भविष्य में वापसी करना चाहती है, तो उसे इन मुद्दों पर गंभीरता से काम करना होगा. इसे भी पढ़ें: सोशल मीडिया पर मीम्स और रील्स की बाढ़, यूजर्स ले रहे आप-कांग्रेस के मजे The post Delhi Election Result: वो 5 बड़े कारण, जिसकी वजह से दिल्ली में पिछड़ गई केजरीवाल की आप appeared first on Naya Vichar.

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Delhi Election 2025: ‘वोटिंग से पहले झाड़ू के तिनके बिखर रहे’, पीएम मोदी ने AAP पर बोला हमला

Delhi Election 2025: दिल्ली चुनाव से पहले पीएम मोदी ने आम आदमी पार्टी पर जमकर हमला बोला. उन्होंने कहा, “वोटिंग से पहले ही, झाड़ू के तिनके बिखर रहे हैं’. ‘आप-दा’ के नेता इसे छोड़ रहे हैं, वे जानते हैं कि लोग ‘आप-दा’ से नाराज हैं, वे (लोग) इस पार्टी से नफरत करते हैं.” नेहरू के समय सैलरी का एक-चौथाई हिस्सा टैक्स में चला जाता था : पीएम मोदी दिल्ली के आरके पुरम में जनसभा में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “अगर जवाहरलाल नेहरू के समय किसी की सैलरी 12 लाख रुपये थी – तो उसका एक-चौथाई हिस्सा टैक्स में चला जाता था; अगर आज इंदिरा गांधी की प्रशासन होती – तो आपके 12 लाख में से 10 लाख रुपये टैक्स के रूप में प्रशासन के पास चले जाते. यहां तक ​​कि 10-12 साल पहले, कांग्रेस के समय में – अगर आपकी सैलरी 12 लाख रुपये थी – तो 2,60,000 रुपये टैक्स के रूप में चले जाते. कल भाजपा प्रशासन के बजट के बाद – 12 लाख रुपये कमाने वालों को एक भी रुपया टैक्स के रूप में नहीं देना होगा.” यह भी पढ़ें: केजरीवाल ने चुनाव आयोग को लिखी चिट्ठी, चुनाव से पहले रखी 4 मांग ‘आप-दा’ के नेता बजट में बिहार के लिए की गई घोषणाओं से दुखी हैं : पीएम मोदी पीएम मोदी ने कहा, “पूर्वांचल के लोग दिल्ली में काम करते हैं – दिल्ली के विकास में योगदान देते हैं लेकिन जब कोविड आता है – ‘आप-दा’ गलत सूचना फैलाकर और उन्हें धमकाकर उन्हें दिल्ली छोड़ने के लिए मजबूर करते हैं. मैंने कल से देखा है, ‘आप-दा’ के नेता बजट में बिहार के लिए की गई घोषणाओं से दुखी हैं. उन्हें नकारात्मक नेतृत्व करने दें – भाजपा पूर्वांचल के लोगों की मदद करती रहेगी.” दिल्ली में एक भी झुग्गी नहीं टूटेगी : पीएम मोदी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, “दिल्ली में एक भी झुग्गी नहीं टूटेगी. पीएम यह आश्वासन इसलिए दिया क्योंकि कुछ दिनों से अरविंद केजरीवाल दिल्ली में कह रहे हैं कि अगर बीजेपी की प्रशासन आई तो झुग्गियों को तोड़ देगी. पीएम मोदी ने कहा, ‘आप-दा’ वाले झूठ फैला रहे हैं, दिल्ली में कोई झुग्गी नहीं टूटेगी और न ही जनहित की योजनाएं बंद होगी.” दिल्ली में 5 फरवरी को ‘विकास का नया बसंत आने वाला है’ : पीएम मोदी दिल्ली के आरके पुरम में जनसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “बसंत पंचमी के आते ही मौसम बदलने लगता है. दिल्ली में 5 फरवरी को ‘विकास का नया बसंत आने वाला है’ – इस बार दिल्ली में भाजपा की प्रशासन बनने जा रही है.” The post Delhi Election 2025: ‘वोटिंग से पहले झाड़ू के तिनके बिखर रहे’, पीएम मोदी ने AAP पर बोला हमला appeared first on Naya Vichar.

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‘दिल वालों के दिल्ली को भाजपा सरकार चाहिए’ BJP ने जारी किया नया कैम्पेन, देखें Video

BJP Campaign Song: दिल्ली चुनाव से ठीक दो दिन पहले बीजेपी ने अपना चुनावी कैम्पेन सॉन्ग लॉन्च किया है. इस गाने को भोजपुरी स्टार और पूर्व सांसद दिनेश लाल यादव ने गाया है. इस गाना का मुख्य बोल, ‘दिल वालों के दिल्ली को भाजपा प्रशासन चाहिए’. दिल्ली में इस बार बीजेपी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच पोस्टर और गानों के माध्यम से सियासी वार पलटवार देखने को मिल रहा है. बीजेपी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के लिए अपना नया कैंपेन सॉन्ग लॉन्च किया है, जो पार्टी के प्रचार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. इस सॉन्ग में भगवान राम का जिक्र किया गया है, और यह संदेश दिया गया है कि जो राम के साथ आएंगे, उनका राज दिल्ली में होगा। गाने के बोल कुछ इस प्रकार हैं: “जो राम को लेकर आए, उनका राज होगा दिल्ली में, आपदा हटानी है, बीजेपी ही लानी है…” यह गाना बीजेपी के चुनावी प्रचार में खास भूमिका निभा रहा है, जहां पार्टी अपने समर्थकों और दिल्ली की जनता को यह विश्वास दिलाने की कोशिश कर रही है कि पार्टी ही दिल्ली में खुशहाली और विकास लाएगी. गाने में मोदी प्रशासन के नेतृत्व की भी बात की गई है, और यह संदेश दिया गया है कि 2025 में दिल्ली में बीजेपी की प्रशासन बनेगी. देखें वीडियो गरीबों को उत्थान चाहिए स्त्रीओं को सम्मान चाहिए युवाओं को उत्थान चाहिए बुजुर्गों को सम्मान चाहिए… 10 वर्षों की बदहाली पर प्रहार चाहिए, दिलवालों को दिल्ली को अब भाजपा प्रशासन चाहिए। pic.twitter.com/UroUhTUHLy — BJP (@BJP4India) February 2, 2025 The post ‘दिल वालों के दिल्ली को भाजपा प्रशासन चाहिए’ BJP ने जारी किया नया कैम्पेन, देखें Video appeared first on Naya Vichar.

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पप्पू यादव और नीतीश कुमार के MLA गोपाल मंडल की मुलाकात चर्चे में, जदयू विधायक ने ‘ऑफर’ के बारे में बताया…

Bihar Politics: भागलपुर में सीएम नीतीश कुमार के कार्यक्रम में शनिवार को गोपालपुर विधानसभा क्षेत्र के चर्चित विधायक नरेंद्र कुमार नीरज उर्फ गोपाल मंडल कहीं नहीं दिखे. दूसरी तरफ शनिवार की शाम को सोशल मीडिया पर एक तस्वीर काफी तेजी से वायरल हुई. तस्वीर में जदयू विधायक गोपाल मंडल पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव से मुलाकात करते नजर आ रहे है. जिसके बाद लोगों के बीच तरह-तरह की चर्चा शुरू हो गयी. वहीं गोपाल मंडल ने इस मुलाकात के पीछे की वजह को बताया है. पप्पू यादव से मिले जदयू विधायक गोपाल मंडल जदयू विधायक गोपाल मंडल और सांसद पप्पू यादव के मुलाकात की तस्वीर वायरल होते ही नेतृत्वक महकमे के साथ-साथ इलाके के आमलोगों के बीच यह चर्चा तेज हो गयी कि कहीं गोपाल मंडल पाला तो नहीं बदलने वाले हैं. लोग कयास लगाने लगे कि हो सकता है कि गोपाल मंडल कांग्रेस के टिकट पर आगामी विधानसभा चुनाव लड़े, इसलिए वे मुख्यमंत्री की प्रगति यात्रा को छोड़कर दिल्ली में पप्पू यादव से गर्मजोशी से मुलाकात करते नजर आ रहे हैं. तो वहीं दूसरी ओर पप्पू यादव के लिए भी कयास लगने शुरू हो गए. ALSO READ: बिहार से महाकुंभ स्नान के लिए निकले और रास्ते में हो गयी मौत, ये दर्जन भर लोग वापस नहीं लौट सके अपने घर… पप्पू को जदयू में लाने का कर रहे हैं प्रयास- बोले गोपाल मंडल इधर, दोनों नेताओं के मुलाकात की तस्वीर वायरल होने के बाद तमाम चर्चाओं पर गोपाल मंडल ने ही विराम लगाया. विधायक ने कहा कि वे मुख्यमंत्री के आदेश से दिल्ली आये हैं. यहां दिल्ली में विधानसभा चुनाव है और वे बुराडी विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार करके अपने (JDU) प्रत्याशी को जीत दिलवाने का प्रयास कर रहे हैं. इसी दौरान उनकी मुलाकात पप्पू यादव से हुई. गोपाल मंडल के ऑफर पर क्या था पप्पू यादव का जवाब? विधायक गोपाल मंडल ने कहा कि पप्पू यादव मेरे छोटे भाई के समान हैं. मैंने उससे कहा कि आप जदयू में आइये यहां आपको सम्मान मिलेगा. राजद वाला आपको कभी सम्मान नहीं दिया. विधायक ने कहा कि पप्पू यादव ने उनके आमंत्रण पर कहा-‘देखते हैं भायजी.’ आगे उन्होंने कहा कि पप्पू यादव उनके चेले के समान हैं, उम्मीद है कि वह भविष्य में जदयू में आ जायेंगे. The post पप्पू यादव और नीतीश कुमार के MLA गोपाल मंडल की मुलाकात चर्चे में, जदयू विधायक ने ‘ऑफर’ के बारे में बताया… appeared first on Naya Vichar.

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PM मोदी ने बीजेपी प्रत्याशी के छुए पैर, देखें Video

Delhi Election 2025: दिल्ली में चुनावी प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने पटपड़गंज से बीजेपी प्रत्याशी के पैर छुए हैं. पीएम मोदी आज करतार नगर में चुनावी सभा को संबोधित किया. पीएम मोदी बीजेपी प्रत्याशी रविंद नेगी के समर्थन में प्रचार करने पहुंचे थे. सोशल मीडिया पर सवाल होने लगा है कि आखिर रवींद्र नेगी हैं कौन जिनका पैर पीएम मोदी ने छुआ है. मंच पर सभा के दौरान सबसे पहले रवींद्र नेगी ने पीएम मोदी का पैर छुआ था जिसके बाद पीएम ने तीन बार पैर छुआ. VIDEO | Delhi Elections 2025: PM Modi (@narendramodi) meets BJP candidates during ‘Sankalp Rally’ at Kartar Nagar.#DelhiElectionsWithPTI #DelhiElections2025 (Full video available on PTI Videos – https://t.co/n147TvrpG7) pic.twitter.com/H3sM0z63h3 — Press Trust of India (@PTI_News) January 29, 2025 कौन हैं रवींद्र नेगी? रवींद्र नेगी पटपड़गंज से बीजेपी के उम्मीदवार हैं और पिछले चुनाव में उन्होंने मनीष सिसोदिया को कड़ी टक्कर दी थी. रवींद्र नेगी मूल रूप से उत्तराखंड के रहने वाले हैं. इस बार उनका सामना लोकप्रिय शिक्षक अवध ओझा से होना है. रवींद्र नेगी का पूर्वी दिल्ली इलाके में अच्छा प्रभाव माना जाता है. यमुना के पानी को लेकर पीएम मोदी ने बोला हमला पीएम मोदी ने दिल्ली में पानी की समस्या को लेकर AAP की आलोचना करते हुए कहा कि दिल्ली में आज भी लोग पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं और यहां की हालात में कोई बदलाव नहीं आया है। उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली की पहचान बदलने की जरूरत है, क्योंकि पिछले 14 और 11 सालों में जो प्रशासनें रहीं, उनका कोई प्रभावी बदलाव नहीं दिखा. इसके अलावा, पीएम मोदी ने अरविंद केजरीवाल के उस बयान पर भी निशाना साधा, जिसमें उन्होंने हरियाणा पर यमुना नदी में जहरीला अमोनिया मिलाने का आरोप लगाया था. मोदी ने कहा कि यह बयान हरियाणा या दिल्ली के लोगों के लिए नहीं, बल्कि हिंदुस्तान के लिए अपमानजनक है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या कोई विश्वास कर सकता है कि दिल्ली में रहने वाले लोग, जो यमुना का पानी पीते हैं, उनकी जान लेने के लिए हरियाणा यमुना में जहर मिलाएगा? यह भी पढ़ें.. PM Modi Ghonda Rally: पीएम मोदी ने महाकुंभ हादसे पर जताया दुख, 8 फरवरी को दिल्ली में बीजेपी प्रशासन बनने की भविष्यवाणी की यह भी पढ़ें.. मैं खुद यमुना का पानी पीता हूं… यमुना विवाद पर पीएम मोदी ने केजरीवाल पर साधा निशाना The post PM मोदी ने बीजेपी प्रत्याशी के छुए पैर, देखें Video appeared first on Naya Vichar.

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Congress: दलित और मुस्लिम मतदाताओं को साधने की कोशिश में जुटी

Congress: दिल्ली चुनाव में मतदाताओं को साधने के लिए भाजपा और आम आदमी पार्टी की ओर से घोषणा पत्र जारी कर चुकी है. इसमें हर वर्ग को साधने के लिए कई लोकलुभावन वादे किए गए है. अब कांग्रेस ने भी घोषणा पत्र जारी किया है. कांग्रेस के घोषणा पत्र में जातिगत जनगणना कराने और सच्चर कमेटी की सिफारिशों को दिल्ली में लागू करने का वादा किया है. कांग्रेस जातिगत जनगणना का वादा करने पिछड़े समुदाय और सच्चर कमेटी के जरिये अल्पसंख्यकों को साधने की कोशिश की है. पार्टी दिल्ली चुनाव में मुस्लिम और दलित मतदाताओं को साधने पर विशेष जोर लगा रही है. यह पार्टी का कोर वोटर रहा है और आम आदमी पार्टी के उभार के बाद इस वर्ग ने कांग्रेस से दूरी बना ली. एक बार फिर कांग्रेस की कोशिश इस कोर वोटर को साधकर दिल्ली में सियासी धमक हासिल करने की है. बुधवार को कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने घोषणा पत्र जारी करते हुए कहा कि दिल्ली में प्रदूषण बड़ी समस्या बन चुकी है. इसे रोकने में केंद्र और दिल्ली आप प्रशासन पूरी तरह नाकाम रही है. उन्होंने कहा कि पार्टी पहले ही 5 गारंटी जारी कर चुकी है. दिल्ली में कांग्रेस प्रशासन बनने पर 15 हजार सिविल डिफेंस के लोगों को स्थायी नौकरी देने, सफाई कर्मचारियों को पक्की नौकरी मुहैया कराने का वादा किया गया है.  मुस्लिम वर्ग पर है पार्टी की नजर दिल्ली में दलित, अल्पसंख्यक और गरीब तबका कांग्रेस का कोर वोटर रहा चुका है. इस वर्ग के समर्थन के सहारे कांग्रेस लगातार 15 साल दिल्ली की सत्ता पर काबिज रह चुकी है. लेकिन समय के साथ कांग्रेस का कोर वोटर आम आदमी पार्टी के मुफ्त घोषणा और योजनाओं के कारण उसका प्रमुख वोट बैंक बन गया. लेकिन अब कांग्रेस इस वर्ग को एक बार फिर साधने के लिए जुट गयी है. घोषणा पत्र में पार्टी की ओर से गरीब लोगों को सस्ता और पौष्टिक खाना मुहैया कराने के लिए 100 इंदिरा कैंटीन खोलने का वादा किया है. इस कैंटीन में गुणवत्ता वाला भोजन पांच रुपये में दिया जायेगा. पार्टी ने दिल्ली की हर विधानसभा में 10 पब्लिक लाइब्रेरी खोलने का वादा किया है. चुनावी घोषणा पत्र जारी करते हुए दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने कहा कि कांग्रेस अगर दिल्ली में सत्ता में आयी तो जातिगत जनगणना और पूर्वांचलियों के लिए अलग से मंत्रालय बनाया जाएगा. पार्टी ने घोषणा पत्र के जरिये अल्पसंख्यक और दलित वर्ग को साधने की कोशिश की है. अगर कांग्रेस अपने मकसद में कामयाब हाेती है तो आम आदमी पार्टी के लिए मुश्किल पैदा हो सकती है. कांग्रेस इस बार दलित और मुस्लिम बहुल सीटों को जीतने के लिए विशेष मेहनत कर रही है. The post Congress: दलित और मुस्लिम मतदाताओं को साधने की कोशिश में जुटी appeared first on Naya Vichar.

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नीतीश की बीमारी कहीं NDA में राजनीतिक उठापटक की नींव न डाल दे, टूट चुकी है 19 साल की परम्परा!

नया विचार पटना– बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीमार क्या हुए, राज्य में नई नेतृत्वक उठापटक की कहानी शुरू हो गई। कुछ हो न हो, पर नीतीश कुमार कुछ इसी तरह से बीमार रहे तो एनडीए की नेतृत्व किंतु-परंतु के घेरे में तो चली ही जाएगी। इसके साथ ही एनडीए के छोटे दल जो बड़ा चेहरा दिखाने लगे हैं, उनकी टकराहट की गूंज कुछ बढ़ भी सकती है। सबसे ज्यादा चिंता की बात भाजपा के लिए ही हो जाएगी, क्योंकि बिहार में ‘कुर्सी की नेतृत्व’ में नीतीश कुमार उनके लिए तो तुरुप का इक्का ही हैं। दिलचस्प तो यह है कि बीमारी के कारण नीतीश कुमार जिन महत्वपूर्ण कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हुए, विपक्ष इसे एनडीए में खटपट के रूप में देखने लगा है। आइए जानते हैं कि विपक्ष को बोलने का मौका कब-कब नीतीश कुमार ने दिया… …और तोड़ दी 19 साल की परम्परा अपने नेतृत्वक करियर में नीतीश कुमार के चिंतन में सबसे ज्यादा दलित पीड़ित ही रही है। लेकिन, इस बार नीतीश कुमार के जीवन का नकारात्मक ही सही पर एक रिकॉर्ड बन गया। दरअसल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार गणतंत्र दिवस के मौके पर दलित टोला जाते रहे हैं। लेकिन खुद के रचे इतिहास को खुद नीतीश कुमार ने ही इस बार बदल दिया। दरअसल होता यह था कि गणतंत्र दिवस पर नीतीश कुमार गांधी मैदान आते थे, और यहां से किसी दलित टोले में उनकी उपस्थिति में झंडोत्तोलन होता था। इस गणतंत्र दिवस पर भी दलित टोला में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जाने का कार्यक्रम तय था। मुख्यमंत्री को फुलवारी शरीफ प्रखंड के महुली गांव के महादलित टोले में जाना था। प्रशासनिक तैयारी की जा रही थी। बड़ा मंच बना। सजावट की सारी व्यवस्था की गई। नीतीश कुमार पटना के गांधी मैदान भी गए, पर सीएम झंडोत्तोलन के बाद सीधे अपने आवास चले गये। सीएम नीतीश कुमार के बदले मंत्री विजय चौधरी महुली गांव में पहुंचे। विजय चौधरी की मौजूदगी में महादलित टोले के बुजुर्ग सुभाष रविदास ने झंडोत्तोलन किया।इसके अलावा भी कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के नहीं जाने से नेतृत्वक गलियारा अफवाहों से भर गया था। पीठासीन पदाधिकारियों की बैठक में भी नहीं पहुंचे सीएम गत माह जनवरी को पटना में देश भर के पीठासीन पदाधिकारियों का सम्मेलन हुआ था। इसमें लोकसभा के अध्यक्ष समेत सारे राज्यों के विधानसभा अध्यक्ष मौजूद थे। कार्यक्रम में नीतीश कुमार को आना था और संबोधन भी करना था। लेकिन नीतीश कुमार कार्यक्रम में नहीं गए। कर्पूरी ठाकुर की जयंती कार्यक्रम में नहीं आए नीतीश ज्ञात हो कि 24 जनवरी को कर्पूरी जयंती मनाई जाती है। इस मौके पर उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ पटना और समस्तीपुर के दौरे पर आये थे। प्रोटोकॉल तो यही कहता है के नीतीश कुमार को पटना एयरपोर्ट पर ही उप-राष्ट्रपति का स्वागत करना चाहिए था, लेकिन वे वहां नहीं गए। तय यह हुआ था कि स्व. कर्पूरी ठाकुर के गांव में आयोजित कार्यक्रम में उप राष्ट्रपति और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ नीतीश कुमार भी मौजूद रहेंगे। लेकिन नीतीश कुमार मुख्य समारोह में शामिल नहीं हुए। बीमार हुए नीतीश तो NDA में बिखराव? वरिष्ट पत्रकार का मानना है कि नीतीश कुमार का ही वह चेहरा है, जो भाजपा को सत्ता के करीब लाता है। और यह बीमारी जिसके कारण महत्वपूर्ण कार्यक्रम तक छूट जा रहे हैं। ऐसे में चुनाव प्रचार से भी अगर नीतीश कुमार दूर रह गए तो एनडीए में दरार तो पड़ेगी ही, जदयू भी विभाजित हो सकती है। सेकंड लाइनर नहीं होने के कारण पार्टी बिखर भी सकती है। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही एनडीए में शामिल छोटे दलों ने पहले से ही डिमांड का पहाड़ खड़ा कर रखा है। तब ये सौ फीसदी स्ट्राइक रेट वाली पार्टियां हिस्सेदारी की सीमा हर हाल में पाना चाहेंगी। और ये स्थितियां महागठबंधन की लड़ाई को अतिरिक्त ताकत दे जाएगा। एनडीए में नीतीश कुमार के विकल्प को ले कर कोई चेहरा भी नहीं है। यह एक यक्ष प्रश्न तो खड़ा हो जाएगा।

बिहार, राजनीति

नीतीश के बेटे निशांत की पॉलिटिकल एंट्री को लेकर बेचैनी क्यों? होली बाद की दी जा रही तारीख, जानें

नया विचार पटना– बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार जल्द ही नेतृत्व में कदम रख सकते हैं। समाचार है कि होली के बाद वो जेडीयू में शामिल हो सकते हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं की तरफ से लगातार निशांत के नेतृत्व में आने की मांग हो रही है। बस अब नीतीश कुमार की हरी झंडी का इंतजार है। हालांकि, जेडीयू ने अभी तक आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा है, लेकिन पार्टी के अंदरूनी नेता मीडिया रिपोर्ट में इस बात के संकेत दे रहे हैं। निशांत हाल ही में अपने पिता के साथ एक कार्यक्रम में नजर आए थे, जहां उन्होंने लोगों से नीतीश कुमार को वोट देने की अपील की थी। इसके बाद से ही उनके नेतृत्व में आने की चर्चा और जोर पकड़ ली। नीतीश के बेटे की पॉलिटिकल एंट्री की अटकलें मीडिया रिपोर्ट की मानें तो पिछले साल से ही जेडीयू में निशांत के नाम की चर्चा चल रही है। पार्टी के कई कार्यकर्ता चाहते हैं कि निशांत पार्टी में शामिल हों और सक्रिय नेतृत्व में आएं। लेकिन पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता इस मामले में अभी सावधानी बरत रहे हैं। वे इस मुद्दे पर खुलकर बोलने से भी बच रहे हैं। इस वजह से मामला थोड़ा उलझा हुआ है। लेकिन पार्टी के अंदरूनी हलकों में निशांत के नाम पर लगातार चर्चा हो रही है। बताया जा रहा है कि जदयू कार्यकर्ता काफी समय से निशांत को पार्टी में शामिल करने की मांग कर रहे हैं। लेकिन वरिष्ठ नेताओं की तरफ से इस बारे में कोई खास उत्साह नहीं दिखाया जा रहा है। वे इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं। निशांत का नाम समय-समय पर चर्चा में आता रहता है, लेकिन पार्टी के बड़े नेता इस बारे में कुछ भी कहने से बचते नजर आते हैं। ऐसा लगता है कि वे इस मामले में कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहते। निशांत ने पिता नीतीश के लिए की थी वोट अपील हाल ही में निशांत अपने पिता नीतीश कुमार के साथ बख्तियारपुर में एक कार्यक्रम में गए थे। वहां स्वतंत्रता सेनानियों की मूर्तियों का अनावरण किया गया था। इस मौके पर निशांत ने मीडिया से बातचीत में कहा था कि पिता जी ने अच्छा काम किया है, उन्हें जरूर वोट दें और दोबारा मुख्यमंत्री बनाएं। यह अपील बिहार की जनता के साथ-साथ पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए भी थी। इससे पहले निशांत को 2015 में नीतीश कुमार के शपथ ग्रहण समारोह में देखा गया था। निशांत के इस बयान के बाद जेडीयू के वरिष्ठ नेता और मंत्री श्रवण कुमार ने संकेत दिए कि निशांत नेतृत्व में आ सकते हैं। उन्होंने कहा कि हम उनके (निशांत के) बयान का स्वागत करते हैं। उन्हें मौजूदा प्रशासन की अच्छी समझ है। निशांत के नेतृत्व में आने के सवाल पर उन्होंने कहा कि ऐसे प्रगतिशील विचारों वाले युवाओं का नेतृत्व में स्वागत है, सही समय पर फैसला लिया जाएगा। हालांकि, जेडीयू ने आधिकारिक रूप से इस पर कोई बयान नहीं दिया है। जेडीयू के बड़े नेताओं ने अब तक साधी चुप्पी लेकिन पार्टी के एक नेता ने मीडिय से कहा कि अभी भी देर नहीं हुई है। हमें भविष्य के लिए निशांत कुमार को जेडीयू में लाने की जरूरत है। इस बयान के बाद निशांत के जेडीयू में शामिल होने की अटकलें और तेज हो गई हैं। अब देखना होगा कि नीतीश कुमार कब इस पर अपनी मुहर लगाते हैं और निशांत औपचारिक रूप से नेतृत्व में एंट्री लेते हैं। यह बिहार की नेतृत्व के लिए एक अहम मोड़ साबित हो सकता है।

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