Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य, जो कि एक महान अर्थशास्त्री, शिक्षक और नेतृत्व के ज्ञाता थे, उन्होंने अपनी नीति शास्त्र में जीवन से जुड़ी कई गूढ़ बातें बताई हैं. चाणक्य नीति में एक प्रसिद्ध विचार है – “भूख के समान कोई दूसरा शत्रु नहीं होता.” लेकिन यहां सवाल उठता है कि वे किस भूख की बात कर रहे हैं – क्या ये सिर्फ पेट की भूख है या कुछ और भी गहराई है इस विचार में?
Why Hunger is the Greatest Enemy in Chanakya Niti | No Enemy Like Hunger: भूख का मतलब सिर्फ खाना नहीं

आचार्य चाणक्य जब “भूख” की बात करते हैं, तो उनका आशय सिर्फ भोजन की आवश्यकता से नहीं होता. वे कहते हैं कि इंसान को दो तरह की भूख सताती है – एक शरीर की भूख यानी खाना, और दूसरी मन की भूख यानी लालच, मोह, वासना और इच्छाएं.
शरीर की भूख को शांत करना जरूरी है, लेकिन मन की भूख अगर काबू में न रखी जाए तो यह व्यक्ति को नैतिक पतन की ओर ले जाती है. चाणक्य मानते हैं कि ये अंदरूनी भूख ही व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु बन जाती है, जो उसकी बुद्धि को अंधा कर देती है और गलत रास्ते पर ले जाती है.
Acharya Chanakya Thoughts: लालच, वासना और सत्ता की भूख है असली शत्रु
चाणक्य नीति में यह साफ कहा गया है कि जो व्यक्ति अपने लालच, वासना या पद-प्रतिष्ठा की भूख को नहीं रोक पाता, वह अपने ही विनाश का कारण बनता है. यह भूख कभी नहीं मिटती और इंसान को अनैतिक कार्यों की ओर धकेलती है.
Chanakya Life Lessons: कैसे पाए इस भूख पर नियंत्रण?
आचार्य चाणक्य संयम और विवेक को इस भूख पर काबू पाने का उपाय बताते हैं. उनका मानना है कि जो व्यक्ति संतोष, आत्म-नियंत्रण और सही दिशा में बुद्धि का उपयोग करता है, वही अपने जीवन को सफल बना सकता है.
चाणक्य नीति का यह वचन हमें सिखाता है कि असली शत्रु बाहर नहीं, बल्कि हमारे अंदर बैठा होता है – हमारी अनियंत्रित इच्छाएं. अगर हम इन पर नियंत्रण पा लें, तो कोई भी हमें जीवन में आगे बढ़ने से नहीं रोक सकता. इसलिए जरूरी है कि हम भूख को पहचानें और सही समय पर उस पर नियंत्रण पाएं.
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