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चिराग पासवान और प्रशांत किशोर में हो रही ‘अंडर टेबल डील’, BJP को किनारे कर हथियाएंगे नीतीश की कुर्सी?

नया विचार – बिहार को नेतृत्व की प्रयोगशाला कहा जाता रहा है। यहां अक्सर अप्रत्याशित नेतृत्वक गठजोड़ और समीकरण देखने को मिलते रहे हैं। खासकर मकर संक्रांति के बाद बिहार की नेतृत्व में कुछ ना कुछ फेरबदल होते रहे हैं। इस बार भी इसके संकेत मिल रहे हैं। पहला नेतृत्वक बदलाव तो सार्वजनिक है, जिसमें राष्ट्रीय जनता दल (RJD) अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव राष्ट्रीय लोकजनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस का हाथ थामने की तैयारी में हैं। दही चूड़ा भोज के बहाने दोनों नेताओं की मुलाकात के बाद इनके बीच गठबंधन होने के संकेत मिल रहे हैं। असली नेतृत्वक…

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नया विचार – बिहार को नेतृत्व की प्रयोगशाला कहा जाता रहा है। यहां अक्सर अप्रत्याशित नेतृत्वक गठजोड़ और समीकरण देखने को मिलते रहे हैं। खासकर मकर संक्रांति के बाद बिहार की नेतृत्व में कुछ ना कुछ फेरबदल होते रहे हैं। इस बार भी इसके संकेत मिल रहे हैं। पहला नेतृत्वक बदलाव तो सार्वजनिक है, जिसमें राष्ट्रीय जनता दल (RJD) अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव राष्ट्रीय लोकजनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस का हाथ थामने की तैयारी में हैं। दही चूड़ा भोज के बहाने दोनों नेताओं की मुलाकात के बाद इनके बीच गठबंधन होने के संकेत मिल रहे हैं।

असली नेतृत्वक फेरबदल दूसरी है, जिसपर हमारा मकसद आपका ध्यान दिलाना है। मकर संक्रांति के बाद यानी खरमास खत्म होते ही लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने एक निजी टीवी चैनल को इंटरव्यू दिया। इस इंटरव्यू में चिराग की ओर से कही गई बातों पर गौर करें तो ऐसा लगता है कि उनके और नये-नये नेतृत्व में आए प्रशांत किशोर के बीच कोई अंडर टेबल डील हो रही है।

चिराग ने पढ़े प्रशांत के लिए कसीदे

जन सुराज पार्टी और प्रशांत किशोर को लेकर पूछे गए सवाल पर चिराग पासवान ने बेहद सधे हुए अंदाज में जवाब दिया। चिराग ने कहा- ‘चुनावी नेतृत्व में किसकी कितनी ताकत है इसका अंदाजा इसी से लगता है कि आपके पास कितने विधायक या सांसद हैं। नेतृत्वक स्तर पर और चुनावी रणक्षेत्र में अभी भी उनको (प्रशांत किशोर) प्रूफ करना है। मुझे नहीं पता कि वह उसमें कितना खरा उतरेंगे। उपचुनाव में उन्होंने जरूर प्रयास किया। वो सफलता उनको नहीं मिली।’

चिराग ने आगे कहा कि प्रशांत जी मेरे पुराने मित्र हैं। इतना मैं जरूर मानता हूं कि वो भी एक नई सोच के साथ बिहार को एक बदलाव की दिशा में लेकर जाना चाहते हैं, जिसका मैं जरूर सम्मान करता हूं। भविष्य के गर्भ में उनके लिए क्या है, क्या नहीं ये मुझे नहीं पता। लेकिन ये जरूर है कि वह एक नई सोच के साथ आए हैं। कम से कम वह जात-पात, धर्म-मजहब से उठकर कोई सामने आता है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए।

MY समीकरण ने दशकों तक हमारे प्रदेश को जातीयता और सांप्रदायिकता में बांटने का काम किया। मैं भी अपने MY समीकरण की बात करता हूं, जिसमें M का मतलब स्त्री और Y का अर्थ युवा है। मैंने लोकसभा चुनाव में उसे प्रमाणित करके भी दिखाया है। पांच लोकसभा सीटों में 4 युवा (एक स्त्री युवा) और दो स्त्रीओं को टिकट दिया।

मोदी का हनुमान वाले बयान को बताया फिल्मी डायलॉग

पिछले 10 साल की नेतृत्व देखें तो चिराग पासवान हमेशा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति समर्पण को दर्शाने के प्रयास में होते हैं। यही वजह है कि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए से अलग होने के बाद भी चिराग पासवान ने खुद को पीएम नरेंद्र मोदी का हनुमान बता दिया था। मोदी के हनुमान वाले बयान पर उनसे सवाल पूछा गया तो पहली बार ऐसा लगा कि वह इससे बाहर निकलना चाहते हैं।

चिराग ने कहा, ‘2020 का बिहार विधानसभा चुनाव मैं अकेले लड़ रहा था। मतभेद की वजह से मैंने जेडीयू के सामने अपने प्रत्याशी उतारे थे। हालांकि बीजेपी का मैं समर्थन कर रहा था। उस वक्त कहा गया था कि मैं प्रधानमंत्री की तस्वीर का इस्तेमाल कहीं भी प्रचार में नहीं कर सकता हूं। जब दो तीन बार यही बात पूछी गई तो उस वक्त आया तो फिल्मों के बैकग्राउंड से ही तो कहीं ना कहीं वो डायलॉगबाजी चलती है मन में। उस वक्त बोलते बोलते थोड़ा नाटकीय होते हुए बोल दिया था कि मुझे प्रधानमंत्री की तस्वीर होर्डिंग्स पर लगाने की जरूरत नहीं है, वो मेरे दिल में बसते हैं। जरूरत हुई तो दिल चीर कर दिखा दूंगा। उसी बात को लोगों ने हनुमान से जोड़ा।’

कई मुद्दों पर चिराग की बीजेपी से अलग राय

1. जातीय जनगणना और आरक्षण: इस मुद्दे पर चिराग बीजेपी से इतर राय रखते हैं। चिराग कहते हैं कि जातीय जनगणना होनी चाहिए। साथ 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण देने के कांग्रेस के दावे पर वह कहते हैं- ‘मैं मानता हूं कि जितने भी प्रावधान हैं, जो भी इस व्यवस्था को और भी सशक्त करने की सोच को मजबूती दे सकते हैं वह किया जाना चाहिए।’ वह कहते हैं कि आज भी कई योजनाएं हैं जिसके लिए जातीय अनुपात के आंकड़े होना जरूरी है।

2. वक्फ संशोधन बिल: बीजेपी जहां इस बिल को लाने पर आमदा है, वहीं चिराग इसके खिलाफ हैं। चिराग कहते हैं कि हम और बीजेपी अलग-अलग पार्टी हैं, इसलिए कई मुद्दों पर हमारी अलग-अलग राय है। वक्फ बिल जब कैबिनेट में आया, उस वक्त हमारी पार्टी की सोच थी कि जितने भी स्टेक होल्डर हैं उनको अपनी बातें रखने का मौका मिलना चाहिए। हम लोगों का मत था कि इसको एक कमेटी में भेजा जाना चाहिए। इसके लिए जेपीसी का गठन किया गया है, जो भी कमेटी का फैसला होगा वह पार्टी को स्वीकार होगा।

3. संभल जैसी घटना: बीजेपी से इतर चिराग कहते हैं कि ऐसी कोई भी घटना आपको परेशान कर सकती है। लेकिन वहीं पर आपको अपनी प्रशासन पर विश्वास रखना होता है। कोर्ट को माध्यम बनाकर मस्जिद मस्जिद मंदिर ढूंढने के सवाल पर चिराग कहते हैं कि उनकी प्राथमिकताओं में ये है ही नहीं। ये आस्था का सवाल है। इसपर किसी के लिए भी कॉमेंट करना ठीक नहीं है। मैं कतई इस बात का पक्षधर नहीं हूं कि आप जगह जगह जाकर खुदाई करें।

4. यूनिफॉर्म सिविल कोड: गृहमंत्री अमित शाह खुद कह चुके हैं कि वह इसे देशभर में लागू करके रहेंगे। वहीं चिराग पासवान इसके खिलाफ में हैं। वह इसपर कुछ भी खुलकर बोलने से बचते रहें हैं।

5. तेजस्वी की शिक्षा: बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की शिक्षा को लेकर बीजेपी, जेडीयू और प्रशांत किशोर लगातार आक्रामक है, लेकिन चिराग की इसपर अलग राय है। चिराग कहते हैं कि एजुकेशन जरूर मायने रखती है, लेकिन आपकी नीति, आपकी सोच आपके विचार, आपके फैसले आपके व्यक्तित्व को प्रस्तुत करते हैं। मैं कतई किसी के ऊपर व्यक्तिगत टिप्पणी का पक्षधर नहीं हूं। कौन कितना पढ़ा-लिखा है इसपर उनका मूल्यांकन करने के बजाय नेता प्रतिपक्ष के तौर पर करें। उपमुख्यमंत्री के तौर पर उनकी भूमिका कैसी रही मूल्यांकन इसपर होनी चाहिए।

चिराग 2030 की कर रहे हैं तैयारी

बिहार की मौजूदा नेतृत्व को देखें तो सबकी नजरें इस बात पर टिकी है कि नीतीश कुमार जब नेतृत्व से रिटायरमेंट लेंगे तो उनकी जगह कौन लेगा। नीतीश ने अपना नेतृत्वक उत्तराधिकारी नहीं तैयार किया है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि उनकी पार्टी के बिखरने के आसार हैं। नीतीश कुमार के रिटायरमेंट के बाद खाली होने वाले स्पेस पर सभी की नजरें हैं। उसी में प्रशांत किशोर और चिराग पासवान भी नजर आते हैं।

चिराग एक टीवी इंटरव्यू में कह चुके हैं कि वह 2030 में बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। वहीं प्रशांत किशोर भी कह चुके हैं कि अगर उन्हें 2025 के चुनाव में सफलता नहीं मिली तो वह 2030 की तैयारी करेंगे। इसके अलावा बीपीएससी अभ्यर्थियों के मुद्दे पर चिराग पासवान ने जिस तरह से प्रशांत किशोर का जिस तरह से समर्थन किया है वह भी गौर करने वाली बात है।

चिराग के हालिया रवैये को देखकर ऐसा लग रहा है कि वह प्रशांत किशोर की ताकत की थाह ले रहे हैं। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव मे अकेले लड़कर चिराग समझ चुके हैं कि बिना किसी के सहयोग के वह बिहार की नेतृत्व में धाक नहीं जमा पाएंगे। जहां तक बीजेपी का सवाल है तो बिहार में उनके पास कोई चेहरा नहीं है। ऐसे में उनके सामने नीतीश कुमार के चेहरे की जगह फील करना आसान नहीं होगा। चिराग के हालिया बयानों को देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि प्रशांत किशोर के साथ वह नई नेतृत्वक गठजोड़ बनाकर नीतीश कुमार की जगह लेने की कोशिश करें तो इसमें किसी को अतिशियोक्ति नहीं हो सकती है।

 

 

नोट: लेखक के निजी विचार हैं।

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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