मधुपुर . शहर के नबी बख्श रोड स्थित दरगाह परिसर में 14वीं गौसुलवारा कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया. कार्यक्रम की शुरुआत हाफ़िज़ फहीमुद्दीन मिस्बाही की तिलावत-ए-क़ुरआन पाक से हुई. मौके पर सूफ़ी शाह शकील ख़ान क़ादरी ने कहा कि इस्लाम मज़हब इंसानियत का इल्म-बरदार है, जो आपसी मोहब्बत, भाईचारे और अमन का पैग़ाम देता है. हमें चाहिए कि इस्लाम के बताये हुए रास्ते पर चलें और औलिया-ए-किराम की तालीमात को अपनी ज़िंदगी में उतारे. उन्होंने कहा कि हज़रत शेख अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह जिन्हें गौस-ए-आज़म के नाम से जाना जाता है. इस्लामी इतिहास के महानतम औलिया में से एक है. उनका जन्म 471 हिजरी (1078 ईस्वी) में ईरान के जिलान में हुआ और 561 हिजरी (1166 ईस्वी) में बग़दाद में वफ़ात हुई. गौस-ए-आज़म की करामात बचपन से ही ज़ाहिर थी. रमज़ान के महीने में आप दिन में दूध नहीं पीते थे, जिससे लोगों को रोज़े की शुरुआत का पता चल जाता था. उन्होंने कहा कि जब हज़रत तालीम हासिल करने बग़दाद जा रहे थे तो रास्ते में डाकुओं ने क़ाफ़िले पर हमला किया. उन्होंने डाकुओं से सच कहा कि उनके पास मां की दी गयी चांदी है. उनकी सच्चाई से डाकू सरदार का दिल पसीज गया और वह तौबा कर नेक रास्ते पर चल पड़ा. मौके पर सूफी शाह ने अन्य कई सयाक पेश किये. इसके अलावा कॉन्फ्रेंस में हाफ़िज़ करी अहमद नईमुद्दीन, मौलाना सिराज मिस्बाही, हाफ़िज़ शहीद रज़ा व मौलाना मोहम्मद नईम ने भी तक़रीर पेश की. मौके पर सरफ़राज़ अहमद अशरफ़ी, एनुल होदा, अख़्तर निज़ामी, मुमताज़ निज़ामी, मुस्ताक निज़ामी, शमशेर, बबलू समेत दर्जनो लोग मौजूद थे.
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