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Dhanbad News: कोयलांचल की पूजा में बंगाल की झलक, बंगाली पद्धति से होती है मां की स्तुति

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सत्या राज, धनबाद.

धनबाद कोयलांचल के दुर्गोत्सव में बंगाली परंपरा व रीति-रिवाज की झलक देखने को मिलती है. बंगाली समुदाय का दुर्गोत्सव बंगाल की तरह महालया से ही प्रारंभ हो जाता है. इस दहन आगोमनी कर मां की स्तुति की जाती है. पुराना बाजार रतन जी रोड में स्व अस्तिनी राय ने 1904 में दुर्गोत्सव की शुरुआत की थी. यहां आज भी बंगाली रीति से पूजा होती आ रही है. अभी उनकी चौथी पीढ़ी दुर्गापदो राय परंपरागत पूजा करते हैं. चैरिटेबल एंड रिलीजियस ट्रस्ट की ओर से दुर्गा मंदिर रोड हीरापुर में 112 साल पहले 1913 में पूजा की शुरुआत हुई थी. हीरापुर हरिमंदिर शारदीय सम्मेलनी द्वारा 1933 से मां दुर्गा की आराधना की जा रही है. पांच पीढ़ियों से मूर्तिकार मूर्ति बना रहे हैं. वहीं तीन पीढ़ी के लोग मां का भोग बना रहे हैं.

ढाकिया ढाक बजा कर मां को करते हैं जागृत :

श्री श्री सार्वजनिक दुर्गा पूजा समिति रतनजी रोड पुराना बाजार में 1905 से पूजा की जा रही है. यहां भी बंगाली रीति रिवाज से पूजा होती है. बांकुड़ा की चार पीढ़ी के पुजारी पूजा कराते आ रहे हैं. वहीं पूजा के आयोजन में पांच पीढ़ी के लोग शामिल हैं. कलश स्थापन के बाद पंचमी तिथि से पूरी तरह से बंगाली संस्कृति पूजा में दिखती है. पंडाल के साथ प्रतिमा का अनावरण किया जाता है. यहां की लाइट के अलावा पंडाल, भोग बनानेवाले, ढाकी व पुजारी सभी बंगाल क्षेत्र से आते हैं. पूजा के बजट का 50 प्रतिशत इनके भुगतान पर खर्च होता है. पंचमी तिथि से पुजारी, ढाकिया व भोग बनाने वाले पंडाल में पहुंच जाते हैं. चंदन नगर के कारीगरों द्वारा आकर्षक लाइटिंग की जाती है. ढाकिया ढाक बजा कर मां को जागृत करते हैं. षष्टि तिथि को बेलवरण कर नवपत्रिका प्रवेश पंडाल में कराया जाता है. सप्तमी तिथि को तालाब से कोलाबोऊ को लाया जाता है. दशमी के दिन सिंदूर स्पोर्ट्सा के बाद मां का खोइछा भर कर विदाई दी जाती है.

हीरापुर हरिमंदिर में 1933 से हो रही है पूजा

पीयूष रंजनहीरापुर हरिमंदिर शारदीय सम्मेलनी में 1933 से पारंपरिक पूजा की जा रही है. समिति के संयुक्त सचिव पीयूष रंजन ने बताया कि पुजारी धनंजय चक्रवर्ती द्वारा पूजन कार्य संपन्न होता है. चंदनकियारी के मधुसूदन मुखर्जी द्वारा भोग बनाया जाता है, सियालदह के ढाकी द्वारा पंचमी तिथि से ढाक बजना प्रारंभ हो जाता है. षष्टि तिथि को बेलवरण के बाद सप्तमी को कोलाबोऊ को लाया जाता है. सिंदूर स्पोर्ट्सा के बाद प्रतिमा विसर्जित की जाती है.

बंगाली कल्याण समिति करती है पारंपरिक पूजाकंचन डेबंगाली कल्याण समिति के कंचन डे बताते हैं हमारी समिति जिला परिषद मैदान में पूरी तरह पारंपरिक पूजा करती है. जगत जननी की डाक साज प्रतिमा स्थापित कर पारंपरिक पूजा की जाती है. कतरास के मलय चक्रवर्ती पूजन कार्य करते हैं. वीरभूम के ढाकी द्वारा पंचमी तिथि से प्रतिमा विसर्जन तक ढाक बजाया जाता है. सप्तमी तिथि को तालाब से विधि विधान से कोलाबोऊ को लाया जाता है. सप्तमी से नवमी तक सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं. दशमी को सिंदूर स्पोर्ट्सा के बाद प्रतिमा विसर्जित होती है.

न्यू स्टेशन रेलवे कॉलोनी में 1960 से हो रही है पूजामुनेश्वर सिंहश्री श्री दुर्गा पूजा समिति न्यू स्टेशन रेलवे कॉलोनी में 1960 से पूजा की जा ही है. समिति के महासचिव मुनेश्वर सिंह ने बताया कि यहां हिंदूृमुस्लिम मिलकर पूजा संपन्न कराते हैं. पूजा बंगाली रीति रिवाज से होती है. पुजारी बांकुड़ा व ढाकी वर्दमान से आते हैं. पंपू तालाब से कोलाबोऊ का लाया जाता है. यहां का सिंदूर स्पोर्ट्सा व प्रतिमा विसर्जन खास होता है. विसर्जन में स्त्रीएं भी शामिल होती हैं.

एलसी रोड में पूजा का है 51वां सालसम्राट चौधरीयूथ क्लब सेवा समिति एलसी रोड में पूजा की शुरुआत 1974 में की गयी थी. इस बार पूजा का 51वां साल है. समिति के सचिव सम्राट चौधरी ने बताया कि आकर्षक लाइटिंग के लिए हर साल समिति को प्रथम पुरस्कार मिलता है. चंदन नगर के कारीगर द्वारा लाइटिंग की गयी है. वीरभूम से ढाकी आते हैं बांकुड़ा के पुजारी दुलाल उपाध्याय पूजन करते हैं. कोलाबोऊ को लाने से लेकर सिंदूर स्पोर्ट्सा विसर्जन तक में बंगाली पद्धति शामिल रहती है.

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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