चाकुलिया. चाकुलिया वन क्षेत्र इन दिनों काजू के फलों की खुशबू से महक रहे हैं. वन क्षेत्र के चाकुलिया, बहरागोड़ा व धालभूमगढ़ में काजू के पौधे फलों से लद गये हैं. इस वर्ष भी काजू की अच्छी पैदावार हुई है. चाकुलिया वन क्षेत्र का काजू अपने स्वाद के लिए झारखंड में प्रसिद्ध है. चाकुलिया वन क्षेत्र की लगभग 3000 हेक्टेयर भूमि पर काजू के पौधे लगे हैं. इस बार लगभग 50 हजार क्विंटल काजू की पैदावार की उम्मीद है. हालांकि, बेहतर प्रबंधन के अभाव में चाकुलिया के काजू की पश्चिम बंगाल के बाजारों में कालाबाजारी हो रही है. चाकुलिया के काजू से बंगाल के कारोबारी मालामाल हो रहे हैं.
वृहत प्रोसेसिंग प्लांट से चाकुलिया के काजू को मिलेगी पहचान
चाकुलिया वन क्षेत्र में प्रतिवर्ष करीब 50 हजार क्विंटल काजू का उत्पादन होता है. वन विभाग से नीति निर्धारण नहीं होने के कारण यहां उत्पादित काजू पश्चिम बंगाल में 120 से 150 रुपये प्रति किलो की दर से कालाबाजारी की जाती है. वहां प्रोसेसिंग कर पश्चिम बंगाल के व्यवसायी 700 से 1000 रुपये प्रति किलोग्राम बेचते हैं. चाकुलिया में वृहत काजू प्रोसेसिंग प्लांट लगने से पहचान मिलेगी.
खर्च अधिक होने से बंद हो गये तीन लघु प्लांट
चाकुलिया, बहरागोड़ा व धालभूमगढ़ प्रखंड में 3000 हेक्टेयर भूमि पर काजू के जंगल हैं. इनमें 2000 हेक्टेयर वन भूमि, जबकि 1000 हेक्टेयर रैयत की भूमि है. यहां उत्पादित काजू की कीमत लगभग 25 करोड़ रुपये बतायी जाती है. वन विभाग ने चाकुलिया, बहरागोड़ा व मानुषमुडिया में काजू के तीन प्रोसेसिंग प्लांट लगाये थे. लघु काजू प्रोसेसिंग प्लांट से काजू निकालने में खर्च व बिजली की खपत अधिक होती थी. ऐसे में प्लांट बंद हो गये हैं.
वन सुरक्षा समिति का 90 व वन विभाग का 10 फीसदी हिस्सा
चाकुलिया वन क्षेत्र के काजू के जंगलों का स्वामित्व वन सुरक्षा समितियों का था. नियम के मुताबिक, उत्पादन के बाद इकट्ठा काजू का 90% हिस्सा वन सुरक्षा समिति का व 10% हिस्सा वन विभाग का होगा. 10 प्रतिशत हिस्सा वन विभाग को सौंपे जाने के बाद 90% हिस्सा के परिवहन के लिए वन विभाग परमिट निर्गत करेगा.
वर्ष 2006-07 तक वन विभाग करता था टेंडर
वर्ष 2006-07 तक काजू का टेंडर होता था. पहले चाईबासा, उसके बाद जमशेदपुर वन प्रमंडल में टेंडर की प्रक्रिया पूरी होती थी. इससे वन विभाग को 5 से 8 लाख रुपये तक वार्षिक कमाई होती थी. चाकुलिया स्थित मातापुर निवासी हिंदुस्तान पात्र ने बताया कि कई बार काजू का टेंडर लिया. उन्हें जमशेदपुर वन प्रमंडल कार्यालय जाना पड़ता था. टेंडर लेने के बाद लगभग एक से डेढ़ महीने तक उनकी टीम काजू के जंगलों की पहरेदारी करती थी. काजू एकत्र कर उसकी बिक्री की जाती थी. अब विभाग मे टेंडर बंद कर दिया है.
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