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Gita Updesh: मन की शांति से रिश्तों की सुलह तक, गीता से समझे संतुलन का मूलमंत्र

Gita Updesh: श्रीमद्भगवद्गीता सिर्फ एक धार्मिक किताब नहीं, बल्कि ज़िंदगी को समझने और जीने की एक गहरी सीख है. इसमें वो ज्ञान है जो इंसान को मुश्किल वक्त में भी टिके रहने की ताकत देता है. जब दिल बेचैन हो, मन परेशान हो तब गीता पढ़ना जैसे किसी अपने से बात करने जैसा लगता है. इसके श्लोक भीतर तक सुकून पहुंचाते हैं. आज के तेज़ रफ्तार और तनाव भरे दौर में भी गीता की बातें उतनी ही मायने रखती हैं जितनी पहले रखती थीं. ये हमें सिखाती है कि कैसे बिना किसी फल की चिंता किए अपने कर्म करते रहना चाहिए. मोह, माया और भौतिक सुखों के पीछे भागने की बजाय खुद को जानना और सच्चे सुख की ओर बढ़ना ज़रूरी है, यही गीता का संदेश है. जो इंसान गीता की बातों को अपने जीवन में उतार लेता है, उसके रास्ते की रुकावटें खुद-ब-खुद दूर होने लगती हैं। गीता न सिर्फ जीवन की दिशा दिखाती है, बल्कि अंदर से मजबूत बनाकर हर हालात से लड़ने का हौसला भी देती है. वर्तमान समय में रिश्तों में टकराहट बहुत ज्यादा देखने को मिलती है. ऐसे समय में धीरज बनाकर रखना बहुत जरूरी होता है. हर कदम फूंक-फूंक कर रखना चाहिए. नहीं तो जीवन भर का रिश्ता एक झटके में खत्म हो सकता है. ऐसे में गीता की कुछ बातों को अपने जीवन में उतारकर आप रिश्ते की हर परेशानी से निपट सकते हैं.

रिश्ते में प्रेम हो जकड़न नहीं

भगवान श्रीकृष्ण गीता कहते हैं कि जब तक हम रिश्तों में जरूरत से ज़्यादा जुड़ाव रखेंगे, तब तक हम उनके साथ होने की खुशी पूरी तरह महसूस नहीं कर पाएंगे. अक्सर हम अपनों से इतना मोह पाल लेते हैं कि उनके बिना कुछ भी अधूरा लगने लगता है. लेकिन यही मोह हमें अंदर ही अंदर बांधने लगता है. जब कोई चीज बांधने लगे, तो उसमें आजादी कहां रह जाती है? कृष्ण कहते हैं कि सच्चा सुख तभी आता है जब हम बिना किसी उम्मीद के प्यार करें, बिना किसी स्वार्थ के रिश्ता निभाएं. कहने का मतलब यह है कि रिश्ते में प्यार हो लेकिन पकड़ न हो. जुड़ाव हो लेकिन जकड़न न हो. जब हम मोह से ऊपर उठते हैं, तब ही हम अपने रिश्तों को एक नई नजर से देख पाते हैं और वही असली आनंद होता है.

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सबसे पहले दूसरों को सम्मान दें

गीता उपदेश में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि रिश्ते में हर इंसान की इच्छा होती है कि उसे प्यार मिले, उसकी भावनाओं की कदर हो और उसे इज्जत दी जाए. लेकिन यह व्यक्ति के अपने व्यवहार पर निर्भर करता है. अगर हम ये सब किसी दूसरे से पाने की चाहत रखते हैं, तो सबसे पहला हमारा धर्म बनता है कि हम भी ये सब चीजें दूसरों को दें, क्योंकि अगर हम खुद दूसरों को सम्मान नहीं देंगे, दो बदले में दूसरे वही भाव पाने की इच्छा रखना बहुत ही ना समझी की बातें है. यह कहा भी जाता है कि रिश्ता किसी एक तरफ से नहीं चलता है. यह दो लोगों की आपसी समझ, सम्मान और स्नेह से ही टिकता है. सामने वाला चाहे उम्र में छोटा हो या बड़ा अगर आप उसे दिल से इज्जत देंगे, तो वो रिश्ता और भी खूबसूरत बन जाएगा.

खुद का आकलन जरूरी

गीता में भगवान श्रीकृष्ण यही बताते हैं कि आत्म-ज्ञान यानी खुद को जानना, रिश्तों की शुरुआत का पहला कदम है. अगर आप खुद से जुड़े सवालों के जवाब ढूंढ़ लेंगे, तो दूसरों से जुड़े उलझे रिश्ते भी सुलझने लगेंगे. ऐसे में रिश्तों को मजबूत बनाना है तो सबसे पहले खुद को समझना ज़रूरी है. जब तक हम अपने भीतर झांककर ये नहीं जान लेते कि हमारी असली जरूरतें, इच्छाएं और कमजोरियाँ क्या हैं? तब तक हम दूसरों के साथ सही जुड़ाव नहीं बना सकते हैं. जब इंसान को पता होता है कि वह क्या महसूस करता है, उसे क्या चाहिए और कहां गलती करता है? तब वो दूसरों को भी बेहतर समझ पाता है. यही समझ एक रिश्ते को गहराई देती है.

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Disclaimer: यह आर्टिकल सामान्य जानकारियों और मान्यताओं पर आधारित है. नया विचार किसी भी तरह से इनकी पुष्टि नहीं करता है.

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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