Good News: झारखंड में कोयला खनन क्षेत्र में खनन कंपनियों द्वारा छोड़े गये पानी से भरे गड्ढों को लाभदायक मछली फार्म में बदला जा रहा है. इससे विस्थापित समुदायों को आजीविका मिल रही है. इससे ग्रामीण क्षेत्रों में प्रोटीन की कमी दूर हो रही है. झारखंड में लगभग 1,741 ऐसी बंद कोयला खदानें हैं, जिनमें से कई 1980 के दशक की हैं. कोयला खनन कंपनियों को कानूनन इन खदानों को वैज्ञानिक तरीके से बंद करना होता है, लेकिन इसमें महंगी लागत के कारण कार्यान्वयन की स्थिति बहुत खराब रही है. यानी खदानों को भरा नहीं जाता.
22 एकड़ का है आरा कोयला खदान
रामगढ़ जिले में 22 एकड़ के आरा कोयला खदान से संचालित कुजू मछुआरा सहकारी समिति ने परिवर्तन की नयी इबारत लिखी है. कुजू मछुआरा सहकारी समिति के सचिव शशिकांत महतो ने वर्ष 2010 में बुनियादी ढांचे के बिना गड्ढे में मछली पालन की शुरुआत की थी.
15 किलो की कतला मछली ने दिलाया पुरस्कार
शशिकांत महतो कहते हैं, ‘मैंने बिना किसी पिंजरे के पानी से भरी सुनसान आरा कोयला खदान में मछली पालन शुरू किया था. बेतरतीब ढंग से मैंने मछली के बीज डाले और अच्छी कमाई हुई.’ शशिकांत महतो ने बताया कि पहली बार पकड़ी गयी 15 किलो की कतला मछली ने उन्हें एक प्रशासनी ‘मेले’ में पहला पुरस्कार दिलाया. उन्हें 5,000 रुपए की पुरस्कार राशि के साथ-साथ 4 मछली पकड़ने के पिंजरे भी मिले. तब से यह उद्यम तेजी से आगे बढ़ा.
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शशिकांत ने बनायी कुजू मछुआरा सहकारी समिति
शशिकांत महतो ने वर्ष 2012 तक 4 पिंजरे लगाये थे और 6 से सात टन मछलियां पकड़ीं थीं. संभावना को पहचानते हुए शशिकांत महतो और अन्य निवासियों ने कुजू मछुआरा सहकारी समिति का गठन किया. सामूहिक दृष्टिकोण ने उन्हें केंद्रीय और राज्य प्रशासन की योजनाओं तक पहुंचने में सक्षम बनाया, जिसमें प्रोटीन सप्लीमेंट्स के लिए राष्ट्रीय मिशन और जिला खनिज फाउंडेशन ट्रस्ट (डीएमएफटी) से सहयोग शामिल है.
सोसाइटी के 68 सदस्य संचालित करते हैं 126 पिंजरे
आज सोसाइटी के 68 सदस्य 22 एकड़ के आरा कोयला खदान में 126 पिंजरे संचालित करते हैं. यह रामगढ़ जिले में सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल) के अंतर्गत आता है. 4 करोड़ रुपए की लागत वाले पिंजरे के पूरे बुनियादी ढांचे को 100 प्रतिशत प्रशासनी सब्सिडी के माध्यम से वित्त पोषित किया गया था.
आरा खदान के गड्ढों में 40 टन मछली का उत्पादन
पिछले साल, सोसाइटी ने आरा खदान के गड्ढों से 40 टन मछली का उत्पादन किया, जिसे स्थानीय बाजारों और पड़ोसी राज्य बिहार में बेचा गया. सोसाइटी वर्ष 1988 से बंद पड़े एक अन्य 16 एकड़ के गड्ढे में भी काम करती है, जहां पिछले साल उन्होंने 10 टन मछली पकड़ी थी.
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