वेब सीरीज :ग्राम चिकित्सालय
निर्माता :टीवीएफ
निर्देशक : राहुल पांडे
कलाकार :अमोल पराशर,विनय पाठक, आनंदेश्वर द्विवेदी, आकाश मखीजा,आकांक्षा रंजन, गरिमा सिंह , संतू कुमार और अन्य
प्लेटफार्म – प्राइम वीडियो
रेटिंग – दो
Gram Chikitsalay Web Series Review :ग्रामीण परिवेश पर बनी सीरीज ओटीटी पर दर्शकों की पहली पसंद गयी है. उससे अगर टीवीएफ का नाम जुड़ा हो,तो फिर उम्मीदें और बढ़ जाती हैं. प्राइम वीडियो पर आज रिलीज हुई ग्राम चिकित्सालय ने भी अपने ट्रेलर लांच के बाद से ही ऐसी ही उम्मीद जगाई थी. ग्राम चिकित्सालय मजेदार हो सकता थी.इसके स्क्रीनप्ले में बहुत कुछ अलग हो सकता था,लेकिन स्क्रीनप्ले और किरदार टीवीएफ की ही पॉपुलर सीरीज पंचायत से मेल खाते हुए दिखते हैं,बल्कि यह कहना सही होगा कि सस्ती कॉपी बनकर रह गए हैं.
ग्राम चिकित्सालय का स्क्रीनप्ले ही है बीमार
सीरीज की कहानी की बात करें तो यह झारखण्ड के एक काल्पनिक गांव भटकण्डी की है. पहले ही दृश्य में दिखाया जाता है कि किस तरह से झोला छाप डॉक्टर चेतक (विनय पाठक )गांवों वालों का इलाज कर रहा है. उसी गांव में दिल्ली से आये गोल्ड मेडलिस्ट डॉक्टर प्रभात (अमोल पराशर ) की एंट्री होती है. दिल्ली में उसके पिता का बहुत बड़ा अस्पताल है,लेकिन वह उसे छोड़कर गांव में बदलाव के लिए आया है. यह बदलाव आसान नहीं है क्योंकि ग्राम चिकित्सालय तो है,लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए सड़क ही गायब है. किसी तरह से थाने पहुंचकर प्रभात अस्पताल तक का रास्ता बनाता है. फिर मालूम पड़ता है कि चिकित्सालय से दवाइयां और जरुरी मेडिकल सामान भी गायब है. प्रभात इन सब चुनौतियों को मैनेज करके ग्राम चिकित्सालय शुरू करता है,लेकिन एक भी मरीज ग्राम चिकित्सालय में नहीं आता है. सभी मरीजों की भीड़ झोला छाप डॉक्टर की क्लिनिक में ही लगी है क्योंकि वह उसपर भरोसा करते हैं. क्या प्रभात को भटकण्डी आने के अपने फैसले पर पछताना पड़ेगा या वह गांव वालों का भरोसा जीत पायेगा। ग्राम चिकित्सालय भटकण्डी के मरीज की पहली बोहनी किसकी होगी. यही आगे की कहानी है.
सीरीज की खूबियां और खामियां
पंचायत से प्रभावित यह सीरीज एक शहर के लड़के के गांव आने की कहानी है. फर्क यह है कि पंचायत के सचिव जी अभिषेक की पोस्टिंग फुलेरा में उनके मर्जी के खिलाफ हुई थी जबकि एम ओ प्रभात ने अपनी मर्जी से गांव में यह पोस्टिंग ली है,लेकिन उसे मिल रही चुनौतियाँ पंचायत वाली ही फील लिए हुए हैं. सचिव के पास अगर तिगड़ी थी तो यहाँ प्रभात की मदद के लिए भी गोविन्द, फुटानी और ढेलु हैं. पंचायत की सस्ती कॉपी की फील लिए इस सीरीज में रिसर्च की भी कमी खलती है. ग्राम चिकित्सालय की जरूरत को बहुत ही हलके में सीरीज में दर्शाया गया है. दवाइयां ऐसे ही गायब हो जा रही हैं. उन पर कोई कार्यवाही नहीं हो रही है.अचानक से कहानी चौथे एपिसोड में एक अलग ही ट्रैक पर चली जाती है और वह ग्राम चिकित्सालय की कहानी से ज्यादा इंदू की कहानी लगने लगती है. टीवीएफ की कहानियों में भाषणबाजी नहीं होती है. वे हलके फुल्के अंदाज में गहरी बात कह देते हैं,लेकिन इस बार कुछ टुकड़ों में ही यह सीरीज प्रभावित कर पायी है.सीरीज की दोनों ही अभिनेत्रियों आकांक्षा और गरिमा के स्किन के रंग को इतना ज्यादा गहरा दिखाना भी बचकाना सा लगता है. सीरीज के अच्छे पहलुओं की बात करें तो इसकी कहानी को पांच एपिसोड में कहा गया है.एक एपिसोड लगभग 30 मिनट का है. गीत संगीत कहानी और सिचुएशन के साथ पूरी तरह से न्याय करते हैं. संवाद भी अच्छे बन पड़े हैं.संवाद अदाएगी पर मेहनत भी की गयी है. सीरीज की सिनेमेटोग्राफी ग्रामीण जीवन की खूबसूरती को बखूबी सामने लेकर आया है.
सपोर्टिंग कास्ट ने सीरीज की गिरती नब्ज को संभाला
अभिनय की बात करें तो ग्राम चिकित्सालय के कलाकारों ने अपने अभिनय से सीरीज को संभाला है. अमोल पराशर अपनी भूमिका में भले ठीक ठाक रहे हैं,लेकिन सपोर्टिंग कास्ट चमकते हैं.विनय पाठक ने गावों में झोला छाप डॉक्टर्स की जरूरत को बखूबी बयां किया है.आनंदेश्वर द्विवेदी ने देसीपन अंदाज से रंग जमाया है. आकाश मखीजा और आकांक्षा अपनी भूमिका के साथ न्याय करते हैं.गरिमा विक्रांत सिंह की तारीफ़ बनती हैं. आखिर के दो एपिसोड में उनका अभिनय आंखों को नम कर गया है.उनके बेटे की भूमिका में नजर आये सन्तु कुमार ने भी अपने अभिनय से शो को भावनात्मक गहराई दी है.बाकी के कलाकारों ने भी अपनी -अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है.
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