Hindu Last Rites: हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार न केवल एक सांस्कृतिक परंपरा है, बल्कि आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति की दिशा में किया जाने वाला एक अत्यंत पवित्र कर्म भी है. यह प्रक्रिया विशेष विधियों, मंत्रोच्चारण और धार्मिक नियमों के पालन के साथ संपन्न होती है. इसी कारण कुछ विशेष लोगों को इसमें शामिल होने से परहेज करने की सलाह दी जाती है. आइए जानें, वे कौन लोग हैं और इसके पीछे क्या धार्मिक कारण माने गए हैं—
गर्भवती स्त्रीएं
धार्मिक ग्रंथों और लोकविश्वास के अनुसार गर्भवती स्त्रीओं को अंतिम संस्कार से दूर रहना चाहिए. माना जाता है कि श्मशान की नकारात्मक ऊर्जा और मृत्युतत्त्व का प्रभाव गर्भस्थ शिशु के विकास पर पड़ सकता है. उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से यह निषेध आवश्यक समझा जाता है.
शिशु और छोटे शिशु
छोटे बच्चों की मानसिक स्थिति और ऊर्जा प्रणाली अत्यंत संवेदनशील होती है. ऐसे में उन्हें श्मशान या अंतिम संस्कार की प्रक्रिया से दूर रखना ही बेहतर माना गया है ताकि वे भय, दुख और भारी वातावरण से प्रभावित न हों.
अशौच (सूतक) में रहने वाले व्यक्ति
यदि कोई व्यक्ति स्वयं किसी परिजन की मृत्यु के कारण अशौच अवधि में है, तो उसे किसी अन्य के अंतिम संस्कार में भाग लेने से मना किया जाता है. यह शुद्धता और धार्मिक अनुशासन के नियमों के अनुसार होता है, जिससे दोनों आत्माओं की शांति में कोई विघ्न न आए.
बीमार या दुर्बल व्यक्ति
शारीरिक रूप से कमजोर, वृद्ध या रोगी व्यक्ति को अंतिम संस्कार जैसी प्रक्रिया से दूर रहना चाहिए, क्योंकि वहां का वातावरण उनकी सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है.
इन सभी नियमों के पीछे मूल भावना यह है कि अंतिम संस्कार की पवित्रता बनी रहे और सहभागी मानसिक व शारीरिक रूप से संतुलित रहें. समयानुसार इन नियमों में लचीलापन भी संभव है, परंतु परंपराओं की मर्यादा बनाए रखना भी उतना ही आवश्यक है.
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