रांची : कुड़मी समाज के लोग एक बार फिर आर पार के मूड में हैं. इसके लिए वे 20 सितंबर से फिर रेल टेका आंदोलन शुरू करेंगे. इसके तहत झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में 100 स्टेशनों पर रेलवे का परिचालन ठप कराया जायेगा. दरअसल यह समाज लंबे समय से अपने को अनुसूचित जानजाति में शामिल करने की मांग कर रहे है. इसके पीछे की वजह इस समुदाय के लोग बताते हैं कि वे ब्रिटिश राज में 1931 की लिस्ट में अनुसूचित जनजाति के रूप में शामिल थे. 1950 तक वे अनुसूचित जनजाति यानी कि एसटी के रूप में ही जाने जाते थे. लेकिन इसके बाद उन्हें इस कैटेगिरी से हटाकर ओबीसी में शामिल कर दिया गया. इसके अलावा वे कुड़माली भाषा को भी आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर रेल टेका आंदोलन करेंगे.
बंगाल और ओडिशा में भी कुड़मी समाज की बड़ी आबादी
कुड़मी समाज के लोगों की मानें तो झारखंड में उनकी संख्या तकरीबन 25 फीसदी के आसपास है. बंगाल और ओडिशा में भी इस समुदाय के बड़ी संख्या में रहते हैं. ऐसे में उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाए. हालांकि टीआरआई उनकी इसकी मांग को पहले ही खारिज कर चुका है. रांची स्थित जनजातीय शोध संस्थान का कहना है कि उनका रहन सहन, खान पान, पूजा पद्धति और परंपरा आदिवासियों से बिल्कुल अलग है. दूसरी तरफ कुड़मी सुमदाय के इस मांग का समर्थन कई बड़े नेता कर चुके हैं. राज्य के पूर्व मंत्री जगरनाथ महतो ने एक बार नया विचार संवाद में कहा था कि कुड़मी पहले से ही आदिवासी था तो उन्हें बिना गजट या पत्र के कैसे हटा दिया गया. उन्होंने इस मुद्दे पर प्रशासन से सवाल भी पूछा था. उन्होंने कहा था कि अगर कुड़मी एसटी में शामिल नहीं था तो उनकी जमीन सीएनटी में कैसे है.
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आंदोलन को आगे अब आगे बढ़े जाने की तैयारी
कुड़मी समाज के आंदोलन के संबंध में कुछ दिन पहले मुख्य संरक्षक अजीत प्रसाद महतो ने कहा था कि उनके समाज की मांग को प्रशासन गंभीरता से नहीं ले रही है. इसलिए 20 सितंबर से कुड़मी समाज आंदोलन को बड़ा रूप दे सकते हैं. इस आंदोलन के जरिये अपनी मांग को दिल्ली से लेकर राज्य के सभी नेताओं को उनके कानों तक पहुंचाई जाएगी. यह ऐसा आंदोलन होगा जिससे दिल्ली और राज्य में बैठे बड़े नेताओं को भी हमारी मांग के बारे में पता चलेगा.
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इनपुट : लिजा बाखला
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