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Karnvedh Sanskar: श्रीराम और श्रीकृष्ण ने भी करवाया था कर्णभेद संस्कार, जानें इसका धार्मिक महत्व

Karnvedh Sanskar: कान और नाक का छिदवाना आज के समय में वैश्विक फैशन बन चुका है. यह न केवल स्त्रीओं में, बल्कि पुरुषों में भी अत्यधिक प्रचलित है. हालांकि, हिंदुस्तानीय संस्कृति में कान और नाक छिदवाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. हिंदुस्तानीय संस्कृति में कान छेदन को केवल सौंदर्य या परंपरा से नहीं जोड़ा गया है, बल्कि इसके पीछे कई वैज्ञानिक, ज्योतिषीय और आध्यात्मिक कारण भी हैं. कान छेदन से शरीर में ऊर्जा का प्रवाह सुधरता है, बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होती है और मानसिक शांति बनी रहती है. इसका कारण यह है कि कान केतु ग्रह से संबंधित होते हैं, और चांदी चंद्रमा का प्रतिनिधित्व करती है. जब केतु और चंद्रमा का संबंध बनता है, तो मानसिक और शारीरिक समस्याएं बढ़ सकती हैं. इसलिए, ज्योतिष शास्त्र में पुरुषों को कान में सोने के आभूषण धारण करने की सलाह दी जाती है.

श्री राम और श्री कृष्ण का भी हुआ था कर्णवेध संस्कार

हिंदू धर्म में 16 संस्कारों में से एक कर्णवेध संस्कार है. प्राचीन काल में शुभ मुहूर्त के दौरान बच्चों के कान में मंत्र का उच्चारण करके कर्णवेध किया जाता था. मंत्र का उच्चारण करने के बाद, लड़कों के दाएं कान में पहले छेद किया जाता था और फिर बाएं कान में. वहीं, लड़कियों के बाएं कान में पहले छेद किया जाता था और फिर दाएं कान में, जिसके बाद उन्हें सोने के आभूषण पहनाए जाते थे. हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक संस्कार कर्ण छेड़न संस्कार है. प्राचीन काल में सभी राजा-महाराजाओं का कर्ण भेद संस्कार किया जाता था. भगवान श्री राम और श्री कृष्ण का भी वैदिक विधि से कर्णभेद संस्कार हुआ था.

कर्णवेध संस्कार के बाद कौन सा धातु पहनना है श्रेष्ठ

पुरुषों के लिए कान में सोने के आभूषण पहनना अत्यंत शुभ माना जाता है, जबकि चांदी पहनने से मानसिक अस्थिरता बढ़ सकती है.

राहु और केतु के नकारात्मक प्रभाव होता है समाप्त

वर्तमान में पुरुषों के बीच कान छिदवाने का चलन बढ़ गया है. ज्योतिष के अनुसार, कान छिदवाने से राहु और केतु के नकारात्मक प्रभाव समाप्त हो जाते हैं. हालांकि, सामान्यतः दोनों कानों को छिदवाने का नियम है.

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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