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Kuberaa Movie Review:धनुष के शानदार अभिनय से सजी कुबेर देती है इंसानियत की सीख

फिल्म – कुबेर

निर्माता – सुनील और पुष्कर

 निर्देशक -शेखर कम्मुला 

कलाकार – धनुष,नागार्जुन, जिम सर्भ, रश्मिका मंदाना, दिलीप ताहिल, सयाजी शिंदे और अन्य 

प्लेटफार्म – सिनेमाघर

 रेटिंग – ढाई 

kuberaa movie review :बीते  शुक्रवार सितारे जमीन पर के साथ पैन इंडिया फिल्म कुबेर रिलीज हुई है. ये दोनों ही फिल्में मौजूदा दौर के कमर्शियल लार्जर देन लाइफ सिनेमा से इतर मनोरंजन के साथ मैसेज वाले सिनेमा का प्रतिनिधित्व करती है. दोनों ही फिल्में मानवता की अहम सीख देती हैं.कुबेर फिल्म की बात करें तो यह सोशल थ्रिलर फिल्म कई सामयिक मुद्दों को अपने साथ लिए है. जिसमें पूंजीपतियों के लालच का शिकार गरीब गुमनाम चेहरों को बनाये जाने से लेकर कालेधन के सफ़ेद बनाने वाले एक नए स्कैम का भी यह फिल्म पर्दाफाश करती है. फिल्म का कांसेप्ट जबरदस्त है,लेकिन फिल्म की कहानी सेकेंड हाफ में लड़खड़ाती गयी है और क्लाइमेक्स भी कमजोर रह गया है. इसके बावजूद एक अहम विषय को आम दर्शकों से जोड़ने का यह फिल्म सार्थक प्रयास करती है.

ये है कहानी

फिल्म की शुरुआत अमीर और गरीब की सोशल कमेंट्री से होती है.उसके बाद कहानी बहुत बड़े उद्योगपति नीरज मित्रा (जिम सर्भ ) पर पहुंच जाती है है.जिसकी नजर बंगाल की खाड़ी में मिले तेल के भंडार पर है. वह इस पर अपना एकछत्र राज चाहता है.इसके लिए वह सत्ता के उच्च अधिकारियों को अपने साथ मिलाता है.रिश्वत के तौर पर उसे एक लाख करोड़ की भारी रकम देनी है और वह हवाला के रास्ते काले धन को सफेद कर उन तक तक पहुंचाना चाहता है. जिसके लिए वह समाज के ऐसे 4 लोगों का इस्तेमाल करता है, जो लोगों की भीख और जूठन पर निर्भर रहते हैं.इन्ही चार भिखारियों में से एक भिखारी देवा (धनुष )है. इन दोनों दुनिया के लोगों को बीच ब्रिज का काम एक्स सीबीआई ऑफिसर दीपक तेज (नागार्जुन) करता है. एक वक़्त का ईमानदार ऑफिसर अब उद्योगपति नीरज मित्रा के लिए काम कर रहा है.नीरज मित्रा के लिए काम करने के बाद इन चार भिखारियों का क्या होगा. फिल्म आगे इसी की कहानी है. 

फिल्म की खूबियां और खामियां 

फिल्म का कांसेप्ट नया है.सिनेमा में गरीब का अमीर के साथ संघर्ष नया नहीं है, लेकिन ऐसे वक़्त में जहां हीरो का मतलब लार्जर देन लाइफ मैस्कुलिन से भरपूर है. ऐसे में इस फिल्म के नायक का भिखारी के किरदार में होना और उद्योगपति की लालच एवं भ्रष्ट सिस्टम से लड़ते दिखाना. सिनेमा में पहली बार हुआ होगा. इसके लिए नेशनल अवार्ड विनिंग निर्देशक शेखर कम्मुला  की जितनी तारीफ की जाए कम होगी. फिल्म समाज के सबसे गरीब तबके को दिखाने के साथ -साथ यह बात भी कहने से नहीं चूकती है कि हम सभी भिखारी हैं.हर किसी को किसी ना किसी कोई भीख चाहिए.फिल्म के कुछ दृश्य झकझोरते हैं. जिम सर्भ का किरदार एक जगह पर कहता है कि भिखारियों के ना होने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है.इन्हे खत्म करके मैं सोसाइटी की मदद ही कर रहा हूं. भिखारी की मौत के बाद उन्हें कुत्ते की गाड़ी में डालकर ले जाने वाला दृश्य हो या फिर किसी भी तरह से भिखारी की लाश का क्रियाकर्म करने वाला सीन.ये सब सीन कहानी को इमोशनल बनाते हैं.देवी श्री प्रसाद का संगीत और बैकग्राउंड म्यूजिक कहानी और किरदारों के साथ न्याय करता है. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी की भी तारीफ बनती है.फिल्म की खामियों की बात करें तो फर्स्ट हाफ के मुकाबले सेकेंड हाफ कमजोर रह गया है.क्लाइमेक्स में भी जरूरत से ज्यादा क्रिएटिव लिबर्टी ले ली गयी है. इस फिल्म के कुछ दृश्य दोहराव लिए हैं. खासकर चेस दृश्य.ये  कुछ समय के बाद एक जैसे लगने लगते हैं. फिल्म की लम्बाई भी अखरती है. फिल्म के लेंथ को कम रखा जाता तो फिल्म का प्रभाव बढ़ सकता था. फिल्म की कहानी का अहम हिस्सा भिखारी हैं. कहानी में उनकी दुनिया में थोड़ा और झांकने की जरूरत थी.

कलाकारों का खरे सोने जैसा अभिनय 

अभिनय की बात करें तो धनुष ने एक बार फिर से साबित कर दिया है कि वह नेशनल अवार्ड विनिंग एक्टर क्यों है.अपने किरदार देवा से जुड़ी सहजता,भोलेपन को उन्होंने बखूबी हर फ्रेम में जिया है. किरदार से जुड़े बदलाव को भी कहानी बढ़ने के साथ उन्होंने हर फ्रेम में अपने साथ जोड़ा है.इस फिल्म के लिए तालियों के साथ -साथ अवार्ड भी वह बटोर लें तो आश्चर्य नहीं होगा.नागार्जुन अपनी भूमिका के साथ न्याय करते हैं तो जिम सरभ ने भी अपनी अच्छी उपस्थिति फिल्म में दर्ज की है.रश्मिका अपनी मौजूदगी से फिल्म में हंसी के साथ -साथ सुकून भी जोड़ती हैं. दिलीप ताहिल और सयाजी और शिंदे का काम भी बढ़िया है. बाकी के कलाकार भी अपनी भूमिका के साथ न्याय करते हैं.

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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