Makhana: पटना. बिहार की धरती पर उगने वाला मखाना अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी मजबूत पहचान बना चुका है. ‘मिथिला मखाना’ ग्लोवल मार्केट का ‘सुपरफूड’ बन चुका है. राज्य प्रशासन की योजनाओं, अनुसंधान संस्थानों के सहयोग और किसानों की मेहनत के फलस्वरूप न केवल मखाना की खेती का दायरा दोगुना हुआ है, बल्कि इसकी उत्पादकता और प्रशासनी राजस्व में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. बिहार प्रशासन जल्द ही ‘मखाना बोर्ड’ का गठन करने जा रही है, जो मखाना के समेकित विकास, जैसे क्षेत्र विस्तार, यंत्रीकरण, प्रसंस्करण, मार्केटिंग और निर्यात पर काम करेगा.
अमेरिका तक पहुंचा बिहार का मखाना
बिहार की ब्रांडेड डेयरी कंपनी सुधा के माध्यम से बिहार का मखाना अब अमेरिका के बाजार में भी पहुंच गया है. यह उपलब्धि बिहार प्रशासन के कृषि विभाग और कॉम्फेड की संयुक्त कोशिशों का नतीजा है. ‘मुख्यमंत्री बागवानी मिशन’ और ‘मखाना विकास योजना’ जैसी योजनाओं ने इन किसानों को तकनीकी सहायता, बेहतर बीज, यांत्रिक उपकरण और भंडारण के लिए अनुदान जैसी सुविधाएं प्रदान की हैं. बिहार का मखाना न केवल पारंपरिक कृषि का एक गौरव है, बल्कि यह राज्य के किसानों की आमदनी, स्त्री स्वयं सहायता समूहों की भागीदारी और वैश्विक व्यापार में बिहार की पहचान को भी सशक्त बना रहा है. अमेरिका तक पहुंचा यह ‘मिथिला मखाना’ अब पूरी दुनिया में ‘सुपरफूड’ के रूप में तेजी से अपनी जगह बना रहा है.
बिहार के 16 जिलों में होगा पैदावार
बिहार के दरभंगा, मधुबनी, कटिहार, अररिया, पूर्णिया, किशनगंज, सुपौल, मधेपुरा, सहरसा और खगड़िया में मखाना का उत्पादन होता है. अब इस खेती को 16 जिलों तक विस्तारित किया गया है. देश के कुल मखाना उत्पादन का लगभग 85% हिस्सा बिहार से आता है. केंद्र प्रशासन ने 20 अगस्त 2022 को “मिथिला मखाना” को GI टैग (Geographical Indication) प्रदान किया, जिससे इसकी अंतरराष्ट्रीय ब्रांडिंग और व्यापारिक मूल्य में भारी वृद्धि हुई. राजस्व में 4.57 गुना इजाफा 2005 से पहले मखाना और मत्स्य जलकरों से राज्य को मात्र 3.83 करोड़ रुपये की आमद होती थी, जो 2023-24 में बढ़कर 17.52 करोड़ रुपये हो चुकी है, यानी 4.57 गुना वृद्धि. यह वृद्धि राज्य की आर्थिक सेहत के लिए उत्साहजनक संकेत है.
2012 से अब तक खेती में दोगुना इजाफा
वैज्ञानिक शोध और उन्नत किस्मों का योगदान दरभंगा स्थित मखाना अनुसंधान केंद्र द्वारा विकसित स्वर्ण वैदेही और सबौर कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित सबौर मखाना-1 जैसी किस्मों ने उत्पादन में गुणात्मक सुधार किया है. 2012 में मखाना की खेती लगभग 13,000 हेक्टेयर में होती थी, जो अब बढ़कर 35,224 हेक्टेयर हो गई है. उत्पादकता में भी बड़ा उछाल देखा गया है. 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से बढ़कर अब 28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन हो रहा है. 25 हजार से अधिक किसान लाभान्वित करीब 25,000 किसान अब मखाना उत्पादन से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं.
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