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Music Healing: विज्ञान, परंपरा और वैश्विक अनुभवों का सार

Music Healing: संगीत केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि मानसिक, शारीरिक और आत्मिक स्वास्थ्य का सशक्त साधन भी बन चुका है. आधुनिक विज्ञान और प्राचीन परंपराओं के समन्वय से यह स्पष्ट होता है कि ध्वनि की शक्ति, सही रूप में प्रयोग होने पर, रोगों से मुक्ति और मानसिक शांति के लिए अत्यंत प्रभावशाली हो सकती है. प्रसिद्ध न्यूरोसाइंटिस्ट और संगीतकार डेनियल जे. लेविटिन की पुस्तक Music as Medicine इस विषय पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गहन प्रकाश डालती है. उनका शोध बताता है कि संगीत मस्तिष्क के उन हिस्सों को सक्रिय करता है जो भावना, स्मृति, प्रेरणा और गति को नियंत्रित करते हैं. लेविटिन के अनुसार, संगीत सुनने से सेरोटोनिन और डोपामिन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर का स्तर बढ़ता है, जिससे मूड बेहतर होता है, और तनाव का स्तर घटता है.

उनके शोध में यह भी पाया गया कि व्यक्तिगत पसंद के अनुसार चुनी गई धुनें अधिक प्रभावशाली होती हैं.गायक-गीतकार जोनी मिशेल के उदाहरण को लेविटिन ने खास तौर पर उल्लेख किया, जिन्होंने स्ट्रोक के बाद अपनी पसंदीदा धुनों पर आधारित संगीत-चिकित्सा से भाषण और चलने की क्षमता वापस पाई. साथ ही, rhythmic auditory stimulation नामक तकनीक से पार्किंसन जैसी बीमारियों में भी सुधार देखा गया है. सक्रिय रूप से वाद्य यंत्र बजाना या गायन करने से मस्तिष्क की नई तंत्रिकाएं विकसित होती हैं, जिससे डिमेंशिया जैसी बीमारियों की गति धीमी हो सकती है.

प्राचीन हिंदुस्तानीय परंपरा में नाद चिकित्सा

पी. शेष कुमार की पुस्तक “The Sacred Sound Path” अपने गुरुजी सच्चिदानंद स्वामी जी को समर्पित है, जिसमें  स्वामी जी के ‘नाद चिकित्सा’ पद्धति पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है. परंपरा, आधुनिकता और विज्ञान के समन्वय ने किस तरह से इस पद्धति को विश्वभर में लोकप्रिय बनाया इन बातों का विस्तार से जिक्र किया गया है.  इसमें  भिन्न -भिन्न लोगों का उदाहरण भी दिया गया है, जिन्होंने संगीत सुनकर या संगीत को आत्मसात कर मृतप्राय जीवन से आम जीवन जीना शुरू किया है. हिंदुस्तानीय आध्यात्मिक गुरु श्री गणपति सचिदानंद स्वामीजी ने संगीत को उपचार का माध्यम बनाते हुए ‘नाद चिकित्सा’ को विश्वभर में प्रचारित किया है. उनका मानना है कि विशेष रागों के माध्यम से शरीर के चक्रों पर प्रभाव डालकर मानसिक और शारीरिक संतुलन साधा जा सकता है. 

उनकी संगीत पद्धति ”राग रागिनी विद्या ” पर आधारित है, जो रागों और मानवीय भावनाओं के गहरे संबंध को उजागर करती है. स्वामीजी के संगीत कार्यक्रम राग सागर (Ocean of Ragas) लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल, न्यूयॉर्क के कार्नेगी हॉल और सिडनी ओपेरा हाउस जैसे प्रतिष्ठित मंचों पर आयोजित हो चुके हैं, जहां उन्होंने अपनी खुद की रचनाएं सिंथेसाइज़र पर प्रस्तुत की. उनकी चिकित्सा-पद्धति में रागों के साथ ओंकार, ग्रह-नक्षत्रों के अनुसार चयनित रचनाएं, क्रिस्टल व औषधीय पौधों की ऊर्जा और पक्षियों की ध्वनियां भी शामिल की जाती हैं, जिससे यह एक संपूर्ण समग्र उपचार बन जाती है.

संगीत चिकित्सा का व्यापक प्रभाव

संगीत चिकित्सा अब वैश्विक स्तर पर भी मान्यता प्राप्त कर चुकी है. येल विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में पाया गया कि लैटिन डांस म्यूजिक से बुजुर्गों की स्मृति, संतुलन और ध्यान में सुधार हुआ. इसी प्रकार, मोंट्रियल स्थित मैकगिल यूनिवर्सिटी के शोध में यह सामने आया कि व्यक्ति की लय के अनुसार चुनी गई धुनें दर्द को कम करने में मदद करती हैं.ऑपरेशन के बाद संगीत सुनने से मरीजों में दर्द, चिंता और हृदय गति में कमी देखी गई है, जिससे उनकी रिकवरी में तेजी आई. अल्ज़ाइमर जैसे रोगों में संगीत के माध्यम से पुरानी स्मृतियों को जागृत करने में भी सहायता मिली है.

स्वामी जी के संगीत का असर केवल साधकों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों, और यहां तक कि जेलों में भी यह प्रभावी सिद्ध हुआ है.जिससे मानसिक तनाव, असाध्य रोगों और लंबे समय से ग्रस्त रोगियों को राहत मिली है. पुलिसकर्मियों और कैदियों में तनाव घटाने के लिए भी उनकी रचनाओं का उपयोग किया गया है. उनके योगदान को श्री कृष्णदेव राय विश्वविद्यालय, वर्ल्ड क्लासिकल तमिल यूनिवर्सिटी (लंदन) और गंगुबाई हंगल संगीत विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों ने उन्हें डॉक्टरेट और मानद उपाधियों से सम्मानित किया है.

निश्चित रूप सेचाहे वह डेनियल जे. लेविटिन का वैज्ञानिक दृष्टिकोण हो, श्री गणपति सच्चिदानंद स्वामीजी का आध्यात्मिक मार्गदर्शन हो या वैश्विक चिकित्सा अनुसंधान, सभी इस एक सत्य की पुष्टि करते हैं कि संगीत केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि उपचार का सशक्त माध्यम भी है. समाज यदि इस प्राचीन व आधुनिक ज्ञान को अपनाकर संगीत को चिकित्सा का हिस्सा बनाए, तो मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में क्रांतिकारी सुधार संभव है. नाद अब केवल सुर नहीं, बल्कि स्वास्थ्य का सार बनता जा रहा है.  

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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