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Premanand Ji Maharaj: मंदिर जाना जरूरी या नहीं? प्रेमानंद जी महाराज का गहरा संदेश

Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद जी महाराज की ख्याति दिन प्रतिदिन बढ़ रही है. वे किसी परिचय के मोहताज नहीं है. सोशल मीडिया पर उनकी मौजूदगी इतनी प्रभावशाली है कि रील्स स्क्रॉल करते वक्त उनकी किसी न किसी वीडियो से सामना हो ही जाता है. देश ही नहीं, विदेशों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु उनके दर्शन के लिए आते हैं. उनके सत्संग स्थल पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है. अक्सर कई भक्तों के मन में बहुत उथल-पुथल मची रहती है. भगवान से लेकर कई सवाल उनके दिमाग में उपजता रहता है. ऐसे में जब उन्हें सवालों का जवाब नहीं मिलता है, तो प्रेमानंद जी महाराज के दरवाजे पर पहुंचते हैं. अक्सर कई वीडियो में भी यह देखा गया है कि अनुयायी उनके पास सांसारिक जीवन से जुड़े उलझनों का समाधान मांगते हैं. प्रेमानंद जी महाराज भक्तों के हर सवालों का जवाब बहुत ही शांति और धैर्य के साथ देते हैं, जिससे लोगों को सही दिशा और संबल मिलता है. ऐसे में एक भक्त ने प्रेमानंद जी महाराज से सवाल किया था कि क्या रोज मंदिर जाना जरूरी होता है? इस सवाल प्रेमानंद जी महाराज ने जो जवाब दिया उसे हर किसी को सुनना और समझना चाहिए.

प्रेमानंद जी महाराज ने दिया जवाब (Premanand Ji Maharaj)

भक्त के इस सवाल पर प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि जब आपका मन शुद्ध हो, मन में किसी भी तरह का कोई पाप न हो तो रोजाना मंदिर जाने की जरूरत नहीं महसूस होती है. इसके अलावा, अगर आप मंदिर जा रहे हैं और घर आकर फिर छल-कपट में लग जाते हैं, तो आपका मंदिर जाना व्यर्थ होता है.

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इस भाव से मंदिर जाना बेकार

प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि जब तक आपका मन शुद्ध न हो तब तक आपकी धार्मिक यात्रा का कोई पुण्य नहीं मिलता है. मन अशुद्ध हो तो चाहे आप चार धाम यात्रा भी कर आएं या किसी भी तरह का धार्मिक अनुष्ठान कराएं सब व्यर्थ रह जाता है. ऐसे में मन का शुद्ध होना बहुत जरूरी होता है. अगर मन शुद्ध और साफ है, तो आप रोज मंदिर नहीं जाते हैं, तो भी कोई दिक्कत नहीं होगी.

प्रेमानंद जी महाराज की सलाह

प्रेमानंद जी महाराज ने एक बात कही थी कि जो लोग रोज मंदिर नहीं जा पा रहे हैं, उन्हें घर के बड़े-बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए. उनका सम्मान करना चाहिए. यह उतना ही शुभ फलदायी होता है, जितना मंदिर जाना होता है.

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Disclaimer: यह आर्टिकल सामान्य जानकारियों और मान्यताओं पर आधारित है. नया विचार किसी भी तरह से इनकी पुष्टि नहीं करता है.

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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