Price Hike: दिवाली खत्म होते ही हिंदुस्तान के किसानों की मुश्किलें बढ़ गई हैं. इसका कारण यह है कि पड़ोसी देश चीन ने पिछले 15 अक्टूबर से खादों के निर्यात को निलंबित कर दिया है, जिससे हिंदुस्तान में यूरिया और अन्य विशेष खादों की कीमतों में जोरदार बढ़ोतरी होने के आसार अधिक हैं. चीन की ओर से यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है, जब हिंदुस्तान में महत्वपूर्ण रबी फसल के बोने की तैयारी चल रही है. चीन ने इससे पहले 15 मई से 15 अक्टूबर तक खादों के निर्यात पर सख्त निरीक्षण लागू किया था, लेकिन अब उसने अगली सूचना तक निर्यात पर पूरी तरह रोक लगा दी है. इस कदम से न केवल हिंदुस्तान, बल्कि वैश्विक खाद बाजार में भी संकट पैदा हो गया है.
कौन से खादों की सप्लाई हुई प्रभावित
चीन की ओर से खादों के निर्यात पर पूरी तरह से रोक लगाए जाने के बाद टीएमएपी (टेक्निकल मोनोअमोनियम फॉस्फेट), एडब्लू (यूरिया सॉल्यूशन), डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट) और यूरिया जैसे पारंपरिक खादों की सप्लाई पूरी तरह से प्रभावित हैं. ये खाद हिंदुस्तानीय किसानों के लिए बहुत जरूरी हैं. खासकर, उन फसलों के लिए जिनमें नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की भारी मांग होती है. इन खादों की कमी से उत्पादन लागत में इजाफा और फसलों की गुणवत्ता पर असर पड़ने की संभावना है.
95% खाद का आयात चीन से करता है हिंदुस्तान
हिंदुस्तान अपने करीब 95% विशेष खादों का आयात चीन से करता है. इनमें टीएमएपी जैसे फॉस्फेट और एडब्लू जैसे उत्सर्जन नियंत्रण तरल पदार्थ प्रमुख हैं. इस निर्भरता के कारण चीन की ओर से किसी भी तरह की नीति परिवर्तन सीधे हिंदुस्तानीय बाजार को प्रभावित करता है. घुलनशील उर्वरक उद्योग संघ (एसएफआईए) के अध्यक्ष राजीब चक्रवर्ती के अनुसार, यह निर्यात रोक पांच से छह महीने तक जारी रह सकती है.
कीमतों में बढ़ोतरी होने के आसार
विशेष खादों की कीमतें पहले से ही ऊंची चल रही थीं. अब चीन के इस प्रतिबंध से इनकी कीमतों में 10 से 15% तक की और बढ़ोतरी होने का अनुमान लगाया जा रहा है. उद्योग सूत्रों का कहना है कि ग्लोबल सप्लाई चेन में असंतुलन और शिपमेंट लागत में वृद्धि के चलते आने वाले महीनों में कीमतों का दबाव और बढ़ सकता है.
रबी सत्र की मांग और आपूर्ति की स्थिति
हिंदुस्तान में हर साल करीब 2.5 लाख टन विशेष उर्वरकों की खपत होती है, जिसमें से लगभग 60 से 65% रबी सत्र के दौरान इस्तेमाल किए जाते हैं. अक्टूबर से मार्च तक चलने वाला यह सत्र गेहूं, चना और सरसों जैसी प्रमुख फसलों के लिए अहम होता है. उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि वर्तमान सत्र की मांग को लेकर तत्काल कोई संकट नहीं है, क्योंकि व्यापारियों ने पहले से ही वैश्विक व्यापार एजेंसियों के माध्यम से पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित कर ली है. हालांकि, कीमतों पर असर पड़ना तय है.
वैकल्पिक आपूर्ति स्रोत और चुनौतियां
हिंदुस्तान के पास दक्षिण अफ्रीका, चिली और क्रोएशिया जैसे कुछ वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध हैं, लेकिन ये विकल्प केवल एक या दो प्रकार के उर्वरकों के लिए ही हैं. इन देशों से आयात बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन उनकी क्षमता सीमित है और लागत भी अधिक है. इस कारण हिंदुस्तान को अपने सप्लाई चेन का विविधीकरण करना आवश्यक हो गया है.
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निर्यात पर लंबी रोक से बढ़ेगा खेती का खर्च
उद्योग जगत को उम्मीद है कि चीन का यह प्रतिबंध अस्थायी होगा. लेकिन अगर मार्च 2026 तक यह जारी रहता है, तो यह हिंदुस्तान की कृषि लागत पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकता है. इसके साथ ही, बढ़ती कीमतों का असर छोटे और मध्यम किसानों की आय पर पड़ना तय है. प्रशासन को वैकल्पिक आयात मार्गों और घरेलू उत्पादन क्षमता बढ़ाने पर ध्यान देना होगा ताकि भविष्य में ऐसे झटकों से बचा जा सके.
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