फिल्म- रेड 2
निर्माता -टी सीरीज
निर्देशक- राज कुमार गुप्ता
कलाकार- अजय देवगन, रितेश देशमुख,वाणी कपूर,अमित सियाल,यशपाल शर्मा, सुप्रिया पाठक, रजत कपूर, बिजेंद्र कालरा और अन्य
प्लेटफार्म- थिएटर
रेटिंग- ढाई
raid 2 movie review :रेड 2 सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी है. अजय देवगन की यह फिल्म उनकी 2018 ब्लॉकबस्टर फ़िल्म का सीक्वल है, इसलिए उम्मीदें भी ज्यादा थी प्रेडिक्टेबल स्टोरीलाइन ने फिल्म को उम्मीदों पर तो खरा उतरने नहीं दिया है, लेकिन मामला बोझिल भी नहीं हुआ है. कलाकारों ने भी फिल्म को अपने अभिनय से संभाला है, जिस वजह से यह फिल्म एक बार देखी जा सकती है.
एक बार फिर भ्रष्ट नेता के काले धन का पर्दाफाश
फ़िल्म की कहानी की बात करें तो वह सात साल आगे बढ़ चुकी है.साल 1989 तक पहुंच गयी है लेकिन टैक्स कमिश्नर अमय पटनायक (अजय देवगन) की जिंदगी अभी भी वैसी है . वह जाबाज़ ऑफिसर अपनी टीम के साथ रेड के लिए जयपुर के एक राजा के घर पहुंचते हैं और वहां से काले धन के तार अमय पटनायक को भोज में रहने वाले दादा भाई (रितेश देशमुख ) तक पहुंचा देता है,लेकिन दादा भाई को गरीबों का मसीहा माना जाता है. जिस वजह से उसके लिए आम लोग मरने और मारने को तैयार है। ऐसे में क्या दादा भाई के घर से अमय पटनायक काला धन निकाल पायेगा या इस बार अमय ख़ुद इस भ्रष्टाचार के चक्रव्यूह में फंस जाएगा . यही आगे की कहानी है .
फिल्म की खूबियां और खामियां
फिल्म की शुरुआत धीमी होती है .फर्स्ट हाफ में अमय पटनायक को अफसर और फिर फैमिली मैन के तौर पर स्थापित करने में ज्यादा समय लिया गया है .सेकेंड हाफ रफ़्तार पकड़ती है ,लेकिन कहानी प्रेडिक्टेबल होने से बच नहीं पायी है.अमित सियाल का किरदार अजय देवगन की मदद कर रहा है. यह बात पहले ही मालूम पड़ जाती है. यशपाल शर्मा का किरदार दादा भाई से 5 करोड़ लेकर भी क्यों उसके खिलाफ चला जाता है . इसे फिल्म में थोड़ा डिटेल में दिखाने की जरुरत थी.रेड को जिस तरह से दिखाया गया है.वह भी लेखन टीम की कमजोरी को दर्शाता है. अमित सियाल का किरदार पीछा करते हुए आसानी से उस होटल तक पहुंच जाता है, जहां पर क्लाइमेक्स में काला धन छिपाया गया है.इस बार कहानी अपने शीर्षक के साथ दमदार तरीके से न्याय नहीं कर पायी है. कहानी की कमजोरी की बात करें तो रितेश देशमुख के किरदार को जिस तरह से शुरुआत में दिखाया गया था. लगा था कि अजय और उनका कहानी में जबरदस्त फेस ऑफ देखने को मिलेगा, लेकिन रितेश का किरदार आगे चलकर बेहद कमजोर हो गया है. फिल्म के लेखन टीम को यह बात समझनी चाहिए थी कि जितना ज्यादा मजबूत विलेन कहानी में उतना ज्यादा रोमांच और इस थ्रिलर फिल्म से वही नदारद हो गया है. फिल्म के संवाद राहत देते हैं. मैं तो पूरी की पूरी महाहिंदुस्तान हूं. सुबह की बची हुई सब्जी जैसे संवाद याद रह जाते हैं .गीत संगीत की बात करें तो साल ८९ के लिहाज से तमन्ना का सांग और कॉस्ट्यूम मेल नहीं खाता है. हनी सिंह का गाना भी आखिर में थोपा हुआ लगता है.इस तरह की रीयलिस्टिक फिल्मों को ऐसे चलताऊ फॉर्मूले से दूर रहना चाहिए। हां कर्ज का गीत पैसा ये कैसा फिल्म को देखते हुए झूमने को मजबूर करता है. फिल्म के लोकेशन कहानी के साथ जाते हैं , तो पोस्ट प्रोडक्शन में 90 के दशक के लिहाज से बहुत ज्यादा सिनेमैटिक लिबर्टी ली गयी है खासकर रितेश देशमुख का कार में बैठकर सभी को फ़ोन करना. बाक़ी के पक्ष ठीक ठाक हैं .फिल्म के शुरुआत में भले ही डिस्क्लेमर से होती है लेकिन क्लाइमेक्स में प्रधानमंत्री की टोपी इसके सच को दर्शाती है. फिल्म का अंत रेड 3 की उम्मीद जगाता है
अमित सियाल ने जमाया रंग
अजय देवगन ,अमय पटनायक के चित परिचित अंदाज में नजर आये हैं। रितेश देशमुख ने अपने किरदार को पूरी मजबूती के साथ निभाया है. अमित सियाल की तारीफ़ बनती है .जिस तरह से उन्होंने अपने किरदार को जिया है. वह फिल्म में एक अलग ही रंग भरता है. ऐसी ही तारीफ के हकदार सौरभ शुक्ल का भी है. वे दोनों जब भी फिल्म में नजर आएं हैं. वह सीक्वेंस मजेदार बन गया है. यशपाल शर्मा और बिजेंद्र कालरा का काम भी अच्छा है. गोविन्द नामदेव, वाणी कपूर और सुप्रिया पाठक को फिल्म में करने के लिए कुछ खास नहीं था.
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