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Sasram News : हमें अपनी ज्ञान परंपरा को फिर से स्थापित करना होगा : राज्यपाल

बिक्रमगंज. नववर्ष का आगमन केवल तिथियों का बदलाव नहीं, बल्कि अपने भीतर नवीनीकरण का अवसर है. जिस प्रकार पेड़-पौधे नये पत्ते धारण कर लेते हैं, उसी प्रकार हमें भी अपने भीतर नवीनीकरण की आवश्यकता है. हमारी संस्कृति महान है. लेकिन, पुरानी होने का अर्थ यह नहीं कि वह वृद्ध हो गयी है. पुरानी का अर्थ समझदारी और परिपक्वता है. यह बात बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने बिक्रमगंज के द डीपीएस स्कूल में मंगलवार को आयोजित हिंदुस्तानीय नववर्ष उत्सव समारोह में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में कहीं. उन्होंने हिंदुस्तानीय ज्ञान, संस्कृति और नेतृत्व पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जिस प्रकार गंगा अपने भीतर प्रवाहित होने वाली गंदगी को स्वतः शुद्ध कर लेती है. वैसे ही हमारी सभ्यता और संस्कृति स्वयं को नवीनीकृत करती रही है. हिंदुस्तान एक चैतन्य राष्ट्र है, जो पतन के कगार पर पहुंचने के बाद भी अपनी सांस्कृतिक चेतना को बनाये रखता है.

2047 तक गुलामी की प्रतीकों को मिटाना होगा:

राज्यपाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई अपनी बातचीत का उल्लेख करते हुए कहा कि मैंने प्रधानमंत्री से कहा था कि जब आजादी के सौ वर्ष पूरे हों, यानी 2047 में, तब हमें गुलामी के सभी प्रतीकों को मिटाकर एक विकसित हिंदुस्तान बनाने का संकल्प लेना चाहिए. यह कार्य केवल ज्ञान के बल पर ही संभव होगा. हमें अपनी प्राचीन ज्ञान परंपरा को फिर से स्थापित करना होगा.

बिहार और ज्ञान की परंपरा

राज्यपाल ने बिहार और उसकी ज्ञान परंपरा की व्याख्या करते हुए अफसोस भी जताया. उन्होंने कहा कि बिहार के लोग सभी केंद्रीय परीक्षाओं में अव्वल आते हैं. देश-विदेश में अपनी प्रतिभा का प्रकाश फैलाते हैं. लेकिन, मैं जब से बिहार आया हूं, मुझे यहां वह ज्ञानवान बिहारी नहीं दिखा, जिसका मुझे बेहद अफसोस है. उन्होंने कहा कि भगवद्गीता के अध्याय 4, श्लोक 35 में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि ‘यत् ज्ञात्वा न पुनर्मोहं एवम् यास्यसि पाण्डव, येन भूतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि’ यानी जिसे जान लेने के बाद, हे पाण्डव, तुम फिर से इस मोह में नहीं पड़ोगे और उस ज्ञान के द्वारा समस्त भूतों को अपने भीतर तथा मुझमें देखोगे. उन्होंने कहा कि ज्ञान का विस्तार पहले घर, फिर गांव, फिर राज्य, फिर देश और अंततः पूरे विश्व तक होना चाहिए. उन्होंने हिंदुस्तानीय संस्कृति को अपनी पहचान बताते हुए कहा कि मेरी नेतृत्व की परिभाषा प्रभु श्रीराम से जुड़ी है. जिस प्रकार भगवान राम ने जनसेवा को प्राथमिकता देते हुए अपनी पत्नी का त्याग किया था. उसी प्रकार नेतृत्व भी केवल जनसेवा की भावना से प्रेरित होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि जब हिंदुस्तान ने परमाणु क्षमता हासिल की, तब दुनिया के किसी भी देश ने यह नहीं कहा कि इससे किसी को खतरा है. यह हिंदुस्तान के नैतिक मूल्यों और ज्ञान की शक्ति का प्रमाण है.

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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