Supreme Court: दिल्ली में गरीबों को आवास मुहैया कराने की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव से पहले मुफ्त वादों की घोषणा पर चिंता जाहिर की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर गरीबों को आवास मुहैया कराया जायेगा तो वे देश के विकास में भागीदार बन सकते हैं. न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायाधीश जार्ज मसीह की खंडपीठ ने कहा कि लोगों को मुफ्त राशन और पैसे मिलने के कारण वे काम करना नहीं चाहते हैं. खंडपीठ ने कहा कि गरीबों को मुख्यधारा में शामिल नहीं कर हम ऐसे समाज का निर्माण कर रहे हैं तो दूसरे पर आश्रित होते जा रहे हैं.
न्यायाधीश गवई ने कहा कि चुनाव के दौरान मुफ्त वादों की घोषणा और मुफ्त राशन मिलने के कारण लोग काम करना पसंद नहीं कर रहे हैं. लोगों को बिना काम किए मुफ्त राशन और पैसा मिल रहा है. पीठ ने अटॉर्नी जनरल एम वेंकटरामी से जानना चाहा कि केंद्र प्रशासन का शहरी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम कब तक गरीबी को दूर कर सकता है. अटॉर्नी जनरल ने पीठ को बताया कि केंद्र प्रशासन शहरी गरीबी उन्मूलन मिशन को पूरा करने की दिशा में काम कर रही है, जिसमें शहरी गरीबों काे आवास मुहैया कराने के पहलू पर भी गौर किया जायेगा.
देश में बढ़ रहा है मुफ्त वादे करने का प्रचलन
चुनाव जीतने के लिए नेतृत्वक दलों की ओर से चुनाव के दौरान कई तरह के मुफ्त वादे करने का प्रचलन लगातार बढ़ रहा है. दिल्ली चुनाव में कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच मुफ्त वादे करने की होड़ मच गयी. दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी ने स्त्रीओं को हर महीने 2100 रुपये देने का वादा किया, जबकि कांग्रेस और भाजपा ने 2500 रुपये देने का वादा किया. अधिकांश चुनाव में पार्टियों की ओर से ऐसे वादे किए जा रहे हैं. ऐसा नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार मुफ्त वादों को लेकर नाराजगी जाहिर की है.
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग और केंद्र प्रशासन को नोटिस जारी कर चुनाव के दौरान नेतृत्वक दलों द्वारा मुफ्त के वादों को लेकर जवाब देने का आदेश दिया था. मामले की अगली सुनवाई छह हफ्ते बाद होगी. जानकारों का कहना है कि मुफ्त की योजनाओं को पूरा करने पर राज्यों पर आर्थिक बोझ लगातार बढ़ रहा है. इसके कारण विकास की योजनाओं पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है. प्रशासन को ऐसे वादों पर रोक लगाने के लिए एक समग्र नीति बनाने पर विचार करना चाहिए.
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