Why is Turkey against India : तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयप एर्दोगन हाल के दिनों में अंतरराष्ट्रीय नेतृत्व में लगातार चर्चा में बने हुए हैं. इसका एक प्रमुख कारण यह है कि उन्होंने पाकिस्तान के साथ मिलकर ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हिंदुस्तान के खिलाफ उसकी सैन्य कार्रवाई में समर्थन दिया. एर्दोगन ने न सिर्फ पाकिस्तान को ड्रोन मुहैया कराए, बल्कि PoK में हिंदुस्तानीय कार्रवाई की निंदा करते हुए अंतरराष्ट्रीय जांच की पाकिस्तान की मांग का समर्थन भी किया. यह पहली बार नहीं है जब उन्होंने पाकिस्तान का पक्ष लिया हो इससे पहले भी वह संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के समर्थन में बोल चुके हैं.
घरेलू मोर्चे पर मिली बड़ी जीत (Why is Turkey Against India)
तुर्की के भीतर भी एर्दोगन ने एक बड़ी नेतृत्वक उपलब्धि हासिल की है. उन्होंने कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (PKK) को समाप्त करने का दावा किया है, जो चार दशकों से तुर्की प्रशासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष कर रही थी. इसी दौरान अमेरिका ने सीरिया पर लगे प्रतिबंधों में ढील दी, जिससे अंकारा का दमिश्क पर प्रभाव और मजबूत हुआ है. इसके अलावा, अमेरिका और तुर्की के बीच 300 मिलियन डॉलर की मिसाइल डील भी हुई है.
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विरोधों के बीच विदेश नीति से ध्यान भटका रहे
एर्दोगन घरेलू नेतृत्व में विरोध का सामना कर रहे हैं. इस्तांबुल के लोकप्रिय मेयर एक्रेम इमामोग्लू की गिरफ्तारी के खिलाफ मार्च से मई तक हजारों लोगों ने प्रदर्शन किए. आलोचकों का कहना है कि इमामोग्लू की गिरफ्तारी नेतृत्वक बदले की कार्रवाई है. लेकिन एर्दोगन अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर सक्रिय रहकर इन घरेलू मुद्दों से ध्यान हटाने में सफल रहे हैं.
रूस-यूक्रेन वार्ता और वैश्विक छवि निर्माण
हाल ही में तुर्की ने रूस-यूक्रेन शांति वार्ता की मेजबानी की, जिसमें शुरुआत में पुतिन, जेलेंस्की और ट्रम्प के शामिल होने की संभावना थी, लेकिन अंतिम समय में उन्होंने भाग नहीं लिया. जेलेंस्की ने अपने रक्षा मंत्री को भेजा. इस वार्ता के जरिए एर्दोगन यूरोप में खुद को एक निर्णायक शक्ति के रूप में पेश करना चाहते हैं.
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एशिया में दखल और पाकिस्तान से करीबी
एर्दोगन की निगाहें सिर्फ यूरोप तक सीमित नहीं हैं. वह पाकिस्तान के माध्यम से दक्षिण एशिया में भी अपने प्रभाव को मजबूत करना चाहते हैं. हिंदुस्तान-पाक युद्ध विराम की घोषणा के बाद, पाक प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने एर्दोगन की भूमिका की सार्वजनिक सराहना की. हालांकि हिंदुस्तान ने किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को नकार दिया, लेकिन तुर्की का बढ़ता प्रभाव साफ नजर आ रहा है.
सुन्नी नेतृत्व की ओर कदम
विशेषज्ञों का मानना है कि एर्दोगन अजरबैजान और पाकिस्तान जैसे देशों का समर्थन कर और हिंदुस्तान व आर्मेनिया जैसे देशों का विरोध कर खुद को वैश्विक सुन्नी मुस्लिम नेतृत्व के केंद्र में लाना चाहते हैं. पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे सुन्नी बहुल देशों के साथ उनके रिश्ते इसी रणनीति का हिस्सा हैं. वहीं हिंदुस्तान और सऊदी अरब तथा यूएई के बीच बढ़ती नजदीकी तुर्की को खटक रही है.
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