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सदर अस्पताल ने नहीं दिया एंबुलेंस, परिजन ठेले पर ले गये शव

बिहारशरीफ. राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पर एक बार फिर से गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं. बिहारशरीफ के मॉडल सदर अस्पताल से एक बेहद अमानवीय और झकझोर देने वाला दृश्य सामने आया है. अस्पताल परिसर में पोस्टमार्टम के बाद मृतक का शव वाहन नहीं मिलने के कारण परिजन उसे भीषण गर्मी में ठेले पर लादकर घर तक ले जाने को मजबूर हो गए. यह दर्दनाक मंजर न केवल मानवता को शर्मसार करता है, बल्कि प्रशासनी अस्पतालों की बदहाल व्यवस्था का भी जीता-जागता उदाहरण बन गया है. पांच किलोमीटर तक ठेले पर शव ले जाते रहे परिजन बिहार थाना के थवई मोहल्ला निवासी मो. सदरुल होदा के 19 वर्षीय पुत्र अरशद की रविवार देर शाम एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी. हादसे के बाद परिजनों ने उसे पावापुरी मेडिकल कॉलेज पहुँचाया, जहाँ चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया. कानूनी प्रक्रिया के तहत शव को पोस्टमार्टम के लिए बिहारशरीफ के मॉडल सदर अस्पताल लाया गया. पोस्टमार्टम पूरा होने के बाद जब परिजनों ने शव वाहन या एंबुलेंस की मांग की, तो अस्पताल प्रशासन ने कोई मदद नहीं की. मजबूर होकर पीड़ित परिवार को स्थानीय बाजार से एक ठेला मंगवाना पड़ा और लगभग पाँच किलोमीटर की दूरी तय कर शव को घर तक ले जाना पड़ा. अस्पताल प्रशासन की चुप्पी, संवेदनहीनता उजागर इस पूरे घटनाक्रम के दौरान न तो अस्पताल प्रबंधन ने हस्तक्षेप किया और न ही वहां मौजूद शव वाहन के कर्मियों ने कोई सहायता प्रदान की. आम लोगों और राहगीरों ने इस दृश्य को देखकर गहरा आक्रोश व्यक्त किया. अस्पताल में पहले से उपलब्ध शव वाहन आखिर किस काम के लिए है, यह सवाल अब प्रशासन के गले की फांस बन गया है. उपाधीक्षक ने माना अमानवीयता, दिए जांच के आदेश घटना की जानकारी मिलते ही सदर अस्पताल की उपाधीक्षक डॉ. कुमकुम प्रसाद ने इसे अत्यंत अमानवीय बताते हुए तत्काल जांच के आदेश दिए हैं. उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा,अस्पताल में आने वाले हर मरीज और उनके परिजनों के साथ सम्मानजनक व्यवहार हमारा प्राथमिक कर्तव्य है. यदि शव वाहन की सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गई है तो दोषी कर्मियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी. परिजनों का दर्द छलका: इंसाफ चाहिए मृतक अरशद के परिजनों ने रोते हुए बताया कि उन्होंने अस्पताल प्रशासन से कई बार एंबुलेंस या शव वाहन उपलब्ध कराने की गुहार लगाई, लेकिन किसी ने भी उनकी आवाज नहीं सुनी. थके-हारे और ग़मजदा परिजन आखिरकार खुद ही शव को ले जाने को मजबूर हो गए. उनका कहना था कि एक ओर वे बेटे की असमय मौत का गम झेल रहे थे, दूसरी ओर इस अपमानजनक व्यवहार ने उनके घावों पर नमक छिड़क दिया. पहले भी हो चुकी हैं ऐसी घटनाएं यह पहला मामला नहीं है जब बिहारशरीफ के सदर अस्पताल में शव वाहन की अनुपलब्धता या लापरवाही सामने आई हो. इससे पहले भी कई बार परिजनों को अपने मृत परिजनों के शव कंधे या ठेले पर ढोते हुए देखा गया है. हर बार कुछ समय के लिए चर्चाएं होती हैं, आदेश दिए जाते हैं, लेकिन हालात जस के तस बने रहते हैं. इस बार भी सवाल उठता है कि क्या जांच और कार्रवाई के बाद वाकई सुधार होगा या फिर कुछ दिनों बाद एक और परिवार इसी अमानवीयता का शिकार बनेगा.

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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