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Nirjala Ekadashi 2025 : निर्जला एकादशी के दिन ऐसी भूल से रहें वंचित, ध्यान में रखें अहम कारण

Nirjala Ekadashi 2025 : निर्जला एकादशी, सभी एकादशियों में सबसे श्रेष्ठ और पुण्यदायिनी मानी जाती है. इसे भीम एकादशी भी कहा जाता है क्योंकि पांडवों में से भीम ने सबसे पहले यह कठिन व्रत किया था. इस दिन बिना जल ग्रहण किए उपवास रखने से वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है. परंतु व्रत के दिन कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक होता है. आइए जानें वे प्रमुख बातें जो इस दिन नहीं करनी चाहिए:=

– जल या अन्न का सेवन – व्रत की शुद्धता में बाधा

निर्जला एकादशी का तात्पर्य ही है – बिना जल के व्रत। इस दिन जल, फल, अन्न या पेय पदार्थ का सेवन नहीं किया जाता. यदि आप स्वस्थ हैं और व्रत करने में सक्षम हैं, तो पूरी श्रद्धा से निर्जला व्रत रखें. जल पीना व्रत को खंडित कर देता है और इसका पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता.

– क्रोध, झूठ और निंदा – पुण्य की हानि

व्रत का वास्तविक अर्थ केवल शरीर को भूखा रखना नहीं, अपितु मन और वाणी की शुद्धता भी आवश्यक है. इस दिन क्रोध करना, किसी का अपमान करना, झूठ बोलना या निंदा करना व्रत को निष्फल कर देता है. प्रेम, दया, क्षमा और भक्ति से मन को पवित्र रखें.

– सोना दिन के समय – व्रत में आलस्य त्याज्य

शास्त्रों में कहा गया है कि व्रत के दिन दिन में सोना वर्जित है. इससे पुण्य नष्ट होता है और व्रत की प्रभावशीलता कम हो जाती है. दिन में सोने के बजाय हरिनाम संकीर्तन, भजन, कथा श्रवण व भगवान विष्णु के ध्यान में समय बिताएं.

– अशुद्धता में पूजन या जप – दोष कारक

यदि शरीर या मन अशुद्ध हो, जैसे क्रोध, ईर्ष्या या मलिनता से ग्रस्त हो, तो भगवान का पूजन, मंत्र जाप अथवा तुलसी के समीप बैठना अनुचित होता है. व्रत के दिन स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण कर ही पूजन करें. मानसिक और शारीरिक शुद्धता बनाए रखें.

– दान में अपवित्र या अनादरपूर्ण भाव – पुण्य में कमी

निर्जला एकादशी पर दान का विशेष महत्व है, लेकिन यह दान श्रद्धा, विनम्रता और पवित्रता से होना चाहिए. अपवित्र वस्त्र, खराब भोजन या दिखावे से किया गया दान पुण्य की जगह दोष उत्पन्न कर सकता है. जलपात्र, वस्त्र, छाता, सत्तू आदि का ब्राह्मण या जरूरतमंद को आदर से दान करें.

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निर्जला एकादशी का व्रत यदि श्रद्धा, नियम और पवित्र आचरण से किया जाए, तो यह समस्त पापों का नाश कर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है. इन बातों का ध्यान रखकर ही व्रत का संपूर्ण पुण्य प्राप्त किया जा सकता है.

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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