संवाददाता, कोलकाता
राज्य प्रशासन को कलकत्ता हाइकोर्ट से मंगलवार को बड़ा झटका लगा. हाइकोर्ट ने पश्चिम बंगाल प्रशासन द्वारा हाल ही में जारी नयी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) सूची की अधिसूचना पर अंतरिम रोक लगा दी. न्यायाधीश तपोब्रत चक्रवर्ती व न्यायाधीश राजशेखर मंथा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि यह स्थगनादेश 31 जुलाई 2025 तक लागू रहेगा. कोर्ट के इस निर्णय के साथ राज्य प्रशासन को झटका लगा है, क्योंकि इससे पहले 2010 के बाद जारी किये गये सभी ओबीसी प्रमाणपत्रों को रद्द करने के खिलाफ उसकी अपील को सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिली थी. कोर्ट ने बताया था कि ममता बनर्जी की प्रशासन बनने के बाद से जितने भी ओबीसी सर्टिफिकेट जारी किये गये हैं, वे अधिकतर मुस्लिम समुदाय के लोगों को मिले हैं. जबकि ओबीसी में शामिल वास्तविक हिंदू समुदाय की जातियां, इससे पूरी तरह से वंचित रही हैं. इसके बाद से राज्य प्रशासन ने हाल ही में ओबीसी की नयी अधिसूचना जारी की थी. अब कोर्ट ने उस पर भी रोक लगा दी है. मंगलवार को मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने राज्य प्रशासन से पूछा कि जिन समुदायों को 15 वर्षों तक सुविधाएं मुहैया करायी गयीं, उस समय राज्य प्रशासन ने कोई कदम नहीं उठाया. वहीं, करोड़ों लोगों को लेकर किया गया सर्वे मात्र कुछ महीनों में कैसे पूरा हो गया, जबकि ऐसे सर्वेक्षण में काफी समय लगता है.
राज्य प्रशासन की ओर से महाधिवक्ता किशोर दत्ता ने दलील दी कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. इसलिए हाइकोर्ट को इस पर अंतरिम आदेश नहीं देना चाहिए. इसके जवाब में हाइकोर्ट ने कहा कि मामला सुप्रीम कोर्ट में होने के बावजूद, राज्य प्रशासन ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. न्यायमूर्ति तपोब्रत चक्रवर्ती ने राज्य के महाधिवक्ता से पूछा कि विधानसभा में पेश करने से पहले आपने अधिसूचना क्यों जारी कर दी? इस पर राज्य प्रशासन ने जवाब दिया कि केवल ड्राफ्ट अधिसूचना जारी की गयी थी, लेकिन गजट अधिसूचना जारी नहीं की गयी.
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता एस श्रीराम ने कोर्ट के फैसले को पूरी तरह स्पष्ट बताया और कहा कि राज्य प्रशासन ने कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं किया. केंद्र प्रशासन की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अशोक कुमार चक्रवती ने अदालत को बताया कि राज्य ने दो समुदायों के बीच ओबीसी की स्थिति में परिवर्तन किया है, जिससे ‘खतरनाक जनसांख्यिकीय प्रभाव’ पड़ सकता है.
उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य के पिछड़ा वर्ग आयोग ने स्वतंत्र रूप से निर्णय नहीं लिया.
हाइकोर्ट ने क्या कहा
खंडपीठ ने राज्य प्रशासन से कहा कि हमने 66 समुदायों के खिलाफ कोई फैसला नहीं दिया, आप प्रक्रिया जारी रखें. अगर आप कदम नहीं उठायेंगे, तो हम भी आदेश नहीं देंगे. लेकिन सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर सिर्फ समय टालने से काम नहीं चलेगा.
क्या कहा प्रशासन ने
राज्य प्रशासन ने अदालत को बताया कि हाइकोर्ट के पहले के आदेश के चलते कॉलेजों में दाखिले और प्रशासनी नौकरियों की नियुक्ति प्रक्रिया पूरी तरह ठप पड़ी है. प्रशासन ने तर्क दिया कि इस मामले का असर प्रशासनिक कार्यों पर हो रहा है.
ओबीसी सूची का मामला अब भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है
गौरतलब है कि इससे पहले, 22 मई 2024 को हाइकोर्ट ने 2010 के बाद जारी सभी ओबीसी प्रमाणपत्रों को अमान्य ठहराया था. कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया था कि 2010 से पहले जारी 66 समुदायों को दिये गये ओबीसी प्रमाणपत्र ही वैध हैं. राज्य प्रशासन ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने हाइकोर्ट के आदेश पर कोई रोक नहीं लगायी. यह मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान राज्य प्रशासन ने बताया था कि वह राज्य में ओबीसी सूची के लिए नये सिरे से सर्वेक्षण कर रही है.
इसके बाद ही तीन जून को राज्य मंत्रिमंडल ने नयी ओबीसी सूची की सर्वेक्षण रिपोर्ट को मंजूरी दी. इसके बाद विधानसभा के मॉनसून सत्र में इस रिपोर्ट को पेश कर पारित किया गया. लेकिन राज्य प्रशासन की नयी ओबीसी सूची पर सवाल उठाते हुए हाइकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी.
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