नया विचार न्यूज़ रोसड़ा /समस्तीपुर- शुक्रवार को गुदड़ी चौक स्थित शक्तिधाम परिसर में माँ राणीसती दादी का वार्षिकोत्सव बड़े ही श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ मनाया गया। कार्यक्रम का आयोजन मारवाड़ी सम्मेलन, स्त्री सम्मेलन एवं मारवाड़ी युवा मंच के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। इस अवसर पर शहरभर से सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु पहुँचे और माँ राणीसती दादी के जयकारों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा।
कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण कोलकाता से आए सुप्रसिद्ध भजन गायक पंकज जोशी की प्रस्तुति रही। उन्होंने माँ राणीसती दादी के जीवन वृत का सस्वर मंगलपाठ प्रस्तुत कर श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया। मंगलपाठ में उपस्थित मातृशक्ति ने भी सामूहिक स्वर मिलाकर वातावरण को और अधिक आस्था से ओत-प्रोत कर दिया।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माँ राणीसती दादी का इतिहास महाहिंदुस्तान काल से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि जब अभिमन्यु को चक्रव्यूह में धोखे से मार दिया गया, तब उनकी गर्भवती पत्नी अंतरा सती होने पर अड़ गईं। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया कि गर्भवती होने के कारण वे सती नहीं हो सकतीं, लेकिन उनके आग्रह पर उन्होंने वरदान दिया कि द्वापर युग के अंत से पहले वे नारायणी के रूप में पुनर्जन्म लेंगी।
नारायणी ने शक्ति स्वरूप धारण कर शत्रुओं का संहार किया और सती होकर अपने सेवक राणा को आदेश दिया कि वे उनकी भस्म घोड़ी पर रखकर ले जाएँ। जहाँ घोड़ी रुके, वहीं मंदिर निर्माण हो। तभी से कलियुग में भक्तजन उन्हें माँ राणीसती दादी के रूप में पूजते हैं और उनकी कृपा से मनोवांछित फल पाते है।वार्षिकोत्सव को भव्य बनाने में मंदिर समिति एवं आयोजक संगठनों की सक्रिय भूमिका रही। मंदिर समिति से दुर्गा प्रसाद गुप्ता, कृष्ण के लखोटिया, बिनोद कुमार शर्मा, सम्मेलन से राजेश कुमार खेमका, नीतेश सर्राफ, राजेन्द्र शर्मा, जबकि युवा मंच से मोहित अग्रवाल, केशव लखोटिया, दीपक गोयल, हर्ष चौधरी, शम्भू कानोडिया, राहुल अग्रवाल, श्रवण मुंशी, सुशील अग्रवाल, पंकज जाजोदिया ने सहयोग किया।स्त्री सम्मेलन की ओर से शिल्पी मुंशी, रेखा शर्मा, स्नेहा लखोटिया, प्रीति गुप्ता ने आयोजन को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई।शक्तिधाम परिसर में भक्ति और उल्लास का ऐसा अद्भुत संगम दिखाई दिया मानो पूरा वातावरण माँ राणीसती दादी की कृपा और आशीर्वाद से आलोकित हो उठा हो। श्रद्धालुओं ने दादी माँ के जयकारों के साथ अपनी आस्था प्रकट की और मंगलपाठ के समापन पर महाप्रसाद का भी लाभ उठाया।