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Bihar Election 2025: क्या नीतीश कुमार तोड़ पाएंगे,सबसे अधिक दिनों तक सीएम बने रहने का रिकॉर्ड?

Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बीच एक दिलचस्प बहस सियासी गलियारों में गूंज रही है—क्या नीतीश कुमार हिंदुस्तान में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले नेता बन सकते हैं? 75 की उम्र पार कर चुके नीतीश के सामने चुनौती सिर्फ विपक्ष की नहीं, वक्त और सेहत की भी है.

मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक, इस रिकॉर्ड को तोड़ने के लिए उन्हें 85 की उम्र तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर टिके रहना होगा. उधर, अमित शाह के एक बयान ने भविष्य की नेतृत्व में अनिश्चितता का रंग और गहरा कर दिया है.

नीतीश बनाम समय: क्या टूटेगा 24 साल का नेतृत्वक रिकॉर्ड?

बिहार की नेतृत्व में नीतीश कुमार एक ऐसा नाम बन चुके हैं, जिन्हें न तो विरोधी नजरअंदाज कर पाते हैं, न ही सहयोगी दल पूरी तरह साथ छोड़ पाते हैं. 2000 में पहली बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले नीतीश ने अब तक 18 साल से अधिक समय बतौर सीएम बिताया है. बिहार के इतिहास में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले नेता बन चुके हैं. लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर अब भी उनके सामने एक ‘सुनहरा आंकड़ा’ खड़ा है—24 साल का.

यह रिकॉर्ड फिलहाल दो नेताओं के नाम दर्ज है—सिक्किम के पवन कुमार चामलिंग (लगभग 24 वर्ष 165 दिन) और ओडिशा के नवीन पटनायक (लगभग 24 वर्ष). तीसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल के ज्योति बसु हैं, जिन्होंने 23 साल से कुछ अधिक समय तक सत्ता संभाली. अगर नीतीश को यह रिकॉर्ड तोड़ना है, तो उन्हें अगले दो विधानसभा कार्यकाल तक सत्ता में बने रहना होगा—जो 2035 तक का समय होगा. तब वे 85 वर्ष के होंगे.

अमित शाह के बयान से बढ़ी सस्पेंस की परत

हाल में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के एक बयान ने इस पूरे समीकरण में अनिश्चितता का तड़का लगा दिया. एक मीडिया कार्यक्रम में जब उनसे पूछा गया कि अगर बिहार में एनडीए को बहुमत मिला तो अगला मुख्यमंत्री कौन होगा, तो उन्होंने कहा—“मैं कौन होता हूं मुख्यमंत्री बनाने वाला? गठबंधन के सभी दल चुनाव के बाद बैठकर विधायक दल का नेता तय करेंगे.”

शाह ने यह भी जोड़ा कि फिलहाल चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है. लेकिन उनके इस जवाब को नेतृत्वक हलकों में संकेत के रूप में देखा गया कि शायद भाजपा चुनाव बाद महाराष्ट्र जैसा फार्मूला अपनाए. महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में गठबंधन ने चुनाव लड़ा था, लेकिन नतीजों के बाद भाजपा ने अपने मुख्यमंत्री को आगे कर दिया. बिहार में भी भाजपा और जदयू 101-101 सीटों पर बराबरी से चुनाव लड़ रहे हैं. भाजपा के पास अगर बहुमत आ गया, तो नीतीश का रास्ता सहज नहीं रहेगा.

पार्टी के भीतर नीतीश का रिकॉर्ड मिशन

जदयू इन तमाम नेतृत्वक चर्चाओं से बेपरवाह होकर नीतीश के लिए ‘रिकॉर्ड मिशन’ पर काम कर रही है. पार्टी के नेताओं का मानना है कि अगर अगला कार्यकाल भी नीतीश पूरा कर लेते हैं, तो वे 23 साल तक सीएम रहने का रिकॉर्ड बना लेंगे. इससे वे ज्योति बसु को पीछे छोड़ देंगे और केवल चामलिंग व पटनायक उनके आगे रह जाएंगे.

नीतीश की नेतृत्वक यात्रा में कई उतार-चढ़ाव आए. 2014 में उन्होंने स्वेच्छा से जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री पद सौंपा. कुछ महीनों बाद वे वापस सत्ता में लौटे. एनडीए और महागठबंधन के बीच कई बार पाला बदलने के बावजूद मुख्यमंत्री की कुर्सी उनके पास ही रही. जनवरी 2024 में वे नौवीं बार मुख्यमंत्री बने और तब से लगातार पद पर हैं.

रिकॉर्ड की दौड़ में समय और सेहत की चुनौती

रिकॉर्ड की दौड़ में सबसे बड़ी चुनौती नेतृत्वक विरोधियों से नहीं, बल्कि उम्र और सेहत से है. 75 वर्ष पूरे करने के करीब नीतीश कुमार को अगले 10 साल और सक्रिय नेतृत्व में बने रहना होगा. इस दौरान उन्हें न सिर्फ सत्ता में वापसी करनी होगी, बल्कि नेतृत्वक स्थिरता भी बनाए रखनी होगी.

हाल के वर्षों में कई सार्वजनिक मौकों पर उनकी शारीरिक और मानसिक स्थिति को लेकर सवाल उठे हैं. कभी वे राष्ट्रगान के दौरान हाथ हिलाते दिखे, तो कभी मंच से अशोक चौधरी के घर श्रद्धांजलि के फूल उनके बेटे पर फेंकते. संसदीय चुनाव के वक्त उन्होंने 400 पार के नारे को 4000 सांसदों तक पहुंचा दिया. इन घटनाओं को विपक्ष ने उनके ‘बुढ़ापे और अस्वस्थता’ का प्रतीक बताया. तेजस्वी यादव ने तो सीधे जनता से अपील कर दी कि अब समय युवा चेहरे को मौका देने का है.

भाजपा का रुख, विपक्ष की आक्रामकता और नीतीश की आयु—तीनों मिलकर उनके नेतृत्वक भविष्य को सस्पेंस से भर देते हैं. अगर एनडीए की जीत के बाद भाजपा अपना मुख्यमंत्री बनाने की रणनीति अपनाती है, तो नीतीश का रिकॉर्ड मिशन अधूरा रह जाएगा. अगर वे किसी तरह दोबारा सीएम बन जाते हैं, तो 2030 तक वे देश में दूसरे सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले मुख्यमंत्री बन सकते हैं.

लेकिन 2035 तक यह सिलसिला जारी रखने के लिए उन्हें उम्र, सेहत और नेतृत्वक समीकरण—तीनों पर नियंत्रण रखना होगा. जो कि मौजूदा परिदृश्य में आसान नहीं दिखता.

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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