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Budget 2025: जब भारत के पास नहीं थे डॉलर, मनमोहन सिंह ने कैसे बचाई थी इकोनॉमी?

Budget 2025: 1991 में हिंदुस्तानीय वित्तीय स्थिति बेहद बुरे दौर से गुजर रही थी. राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 8% तक पहुंच गया था, जबकि चालू खाते का घाटा 2.5% के स्तर पर था. वैश्विक स्तर पर मिडिल ईस्ट में युद्ध के कारण कच्चे तेल की कीमतें आसमान छू रही थीं, जिससे हिंदुस्तान का आर्थिक संकट और भी गहरा गया था.

उस समय हिंदुस्तान के पास विदेशी मुद्रा भंडार मात्र 6 अरब डॉलर था, जो महज दो हफ्तों के आयात के लिए ही पर्याप्त था. देश में महंगाई चरम पर थी, और रुपये का मूल्य अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 18% तक गिर चुका था. इस गंभीर स्थिति में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव ने वित्तीय स्थिति को सुधारने की जिम्मेदारी तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को सौंपी.

1991 का बजट: बदलाव की शुरुआत

24 जुलाई 1991 को संसद में प्रस्तुत किए गए अपने पहले बजट भाषण में डॉ. मनमोहन सिंह ने आर्थिक सुधारों की नींव रखी. उनके द्वारा उठाए गए कदमों ने हिंदुस्तानीय वित्तीय स्थिति को नई दिशा दी और देश को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाया.

आर्थिक उदारीकरण और लाइसेंस राज का अंत

1991 से पहले हिंदुस्तान में अधिकांश उद्योगों को चलाने के लिए प्रशासन की मंजूरी आवश्यक थी, जिसे “लाइसेंस राज” कहा जाता था. इस प्रक्रिया में अत्यधिक प्रशासनी दखलंदाजी थी, जिससे व्यापार करने में कठिनाई होती थी. डॉ. मनमोहन सिंह ने इस प्रणाली को सरल बनाकर उद्यमियों और निजी कंपनियों को अधिक स्वतंत्रता दी.

कर सुधार और कॉरपोरेट टैक्स में बदलाव

प्रशासन के राजस्व को बढ़ाने के लिए कॉरपोरेट टैक्स को 40% से बढ़ाकर 45% किया गया. इसके अलावा, टैक्स प्रणाली को अधिक पारदर्शी और सरल बनाया गया ताकि कंपनियां आसानी से कारोबार कर सकें और प्रशासनी खजाने में अधिक योगदान दें.

विदेशी निवेश को बढ़ावा

पहले हिंदुस्तान में विदेशी निवेश पर सख्त प्रतिबंध थे, जिससे वैश्विक कंपनियों के लिए यहां व्यापार करना मुश्किल था. 1991 के बजट में विदेशी निवेश की सीमा को बढ़ाया गया और मल्टीनेशनल कंपनियों को हिंदुस्तान में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया गया. इससे देश में रोजगार के नए अवसर सृजित हुए और औद्योगीकरण को गति मिली.

आयात शुल्क में कटौती

उच्च आयात शुल्क के कारण विदेशी सामान हिंदुस्तान में महंगे थे. इस समस्या को हल करने के लिए प्रशासन ने आयात शुल्क को 300% से घटाकर 50% कर दिया. इससे व्यापार को बढ़ावा मिला और उपभोक्ताओं को सस्ती दरों पर उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद उपलब्ध होने लगे.

रिजर्व बैंक का विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत करना

विदेशी मुद्रा संकट को दूर करने के लिए हिंदुस्तान ने बैंक ऑफ इंग्लैंड से 60 करोड़ डॉलर मूल्य का सोना उधार लिया. इस फैसले ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में हिंदुस्तान की साख को बहाल किया और देश को आर्थिक संकट से उबरने में मदद मिली.

हिंदुस्तान के लिए नए अवसरों का द्वार खुला

1991 के आर्थिक सुधारों के बाद हिंदुस्तान वैश्विक वित्तीय स्थिति का हिस्सा बनने लगा. उदारीकरण और निजीकरण के कारण देश में निवेश बढ़ा, जिससे औद्योगिक उत्पादन और रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई.

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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