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महाशिवरात्रि का है विशेष महत्व, शिवजी के विवाह को लेकर ये है मान्यता

Maha Shivratri 2025: महाशिवरात्रि के दिन ही शिवजी वैराग्य जीवन छोड़कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था.इसी दिन रात में भगवान शिव एवं माता पार्वती का विवाह हुआ था.दूसरी मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन शिवजी पहली बार प्रकट हुए थे.शिव का प्राकट्य ज्योर्तिलिंग यानी अग्नि के शिवलिंग के रूप में था.महाशिवरात्रि के दिन ही शिवलिंग 64 अलग-अलग जगहों पर प्रकट हुए थे.मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती के साथ शिवजी की पूजा करने से सभी परेशानियों से छुटकारा मिलता है.

भगवान् शिव और उनका नाम समस्त मंगलों का मूल है.वे कल्याण की जन्मभूमि,परम कल्याणमय तथा शांति के आगार है.वेद तथा आगमों में शिवजी को विशुद्ध ज्ञानस्वरूप बताया गया है.समस्त विद्याओं के मूल स्थान भी भगवान शिव ही है.वे सबके मूल कारण,रक्षक,पालक तथा नियन्ता होने के कारण महेश्वर कहे जाते हैं.उनका आदि और अन्त न होने से अनन्त हैं.

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भगवान शिव को लिंग रूप से पूजा का अर्थ

महाशिवरात्रि यह परमब्रह्म शिव का लिंग रूप में साकार प्रकटीकरण का पर्व है.विश्वभर में फैले हुए शिवभक्त इसदिन अति श्रद्धा एवं विश्वास के साथ जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक,रूद्राभिषेक इत्यादि विविध प्रकार से पूजा-आराधना करते हैं.जगह-जगह शिवालयों से निकली शिव बरात देशवासियों की श्रद्धा को समेटती भक्ति भाव लुटाती एक अतुलनीय वातावरण का सृजन कर देती है.

भगवान् शिव को लिंगरूप से पूजा-उपासना का तात्पर्य यह है कि शिव,पुरूष लिंगरूपसे इस प्रकृतिरूपी संसारमें स्थित है.यही सृष्टिकी उत्पत्तिका मूलरूप है.त्रयम्बकं यजामहे शिव उपासना का महामंत्र है.शिवपुराण में शिव को संसार की उत्पत्ति का कारण और परब्रह्म कहा गया है.भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर हुए विवाद को सुलझाने के लिए एक दिव्य लिंग प्रकट किया था.इस लिंग का आदि और अंत ढूंढ़ते हुए ब्रह्मा और विष्णु को शिव के परब्रह्म स्वरूप का ज्ञान हुआ.इसी समय से शिव ही पूर्ण पुरूष और निराकार परब्रह्म है.इसी के प्रतीकात्मक रूप में शिव के लिंग की पूजा की जाती है.शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग में सभी देवताओं का पूजन बिना आह्वान विसर्जन किया जा सकता है.

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महाशिवरात्रि में भोलेनाथ की उपासना के लिए आवश्यक बातें

स्नान आदि से निबृत्त होकर शुद्ध वस्त्र धारण करें.संभव हो तो सिले हुए वस्त्र धारण न करें.शुद्ध आसन पर पूर्व या उत्तर मुख होकर बैठे.संकल्प करें तथा शिवपूजन के लिए निम्न बातों का विशेष ध्यान रखें—

शिवजी की पूजा के समय भस्म,त्रिपुन्ड और रूदाक्षमाला धारण करें.

भगवान शिव की पूजा में विशेष पत्र और पुष्प में,बिल्व-पत्र प्रधान हैं,किन्तु बिल्व पत्र में चक्र और वज्र नहीं होना चाहिए.बिल्व-पत्र चढ़ाते समय बिल्व-पत्र में तीन से लेकर ग्यारह दलों तक के बिल्व-पत्र प्राप्त होते हैं.ये जितने अधिक पत्रों का हो,उतने ही उत्तम माने जाते हैं,यदि तीन में से कोई दल टूट गया हो तो वह बिल्व पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए.

  • आक का फूल और धतुरे का फूल भी शिव पूजा के विशेष सामग्री है,किन्तु सर्वश्रेष्ठ पुष्प है नीलकमल का.उसके अभाव में कोई भी कमल का पुष्प भगवान शिव को चढा़ सकते हैं.
  • शिवजी के पूजा में तिल का प्रयोग नहीं होना चाहिए और चम्पा का पुष्प नहीं चढ़ाना चाहिए.
  • शिवजी को भांग का भोग अवश्य लगाना चाहिए.लोगों की यह धारणा है कि शिवजी को लगाया गया भोग भक्षण नहीं करना चाहिए.केवल शिवलिंग को स्पर्श कराया गया भोग नहीं लेना चाहिये.
  • शिव की परिक्रमा में सम्पूर्ण परिक्रमा नहीं की जाती.जिधर से चढ़ा हुआ जल निकलता है,उस नाली का उल्लंघन नहीं करें.वहाँ से परिक्रमा उल्टी की जाती है.
  • शिवजी की पूजा में कुटज,नागकेशर,मालती,चम्पा,चमेली,कुन्द,जूहि,रक्तजवा,मल्लिका,केतकी(केवडा)के पुष्प नहीं चढ़ाना चाहिए.

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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