Cabinet:पशुधन स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एलएचडीसीपी) में संशोधन को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को मंजूरी दे दी.टीकाकरण, निगरानी और स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर कर पशुधन रोगों की रोकथाम और नियंत्रण में मदद मिलेगी और इससे पशुओं की उत्पादकता में सुधार होगा. पशुओं के स्वस्थ होने से रोजगार सृजन होगा और ग्रामीण क्षेत्र में उद्यमिता को बढ़ावा मिलेगा.
एलएचडीसीपी के तीन घटक राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एनएडीसीपी), एलएच एंड डीसी और पशु औषधि है. एलएच एंड डीसी के तीन उप-घटक गंभीर पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (सीएडीसीपी), मौजूदा पशु चिकित्सा अस्पतालों और औषधालयों की स्थापना और सुदृढ़ीकरण करना है. मोबाइल पशु चिकित्सा इकाई (ईएसवीएचडी-एमवीयू) और पशु रोगों के नियंत्रण के लिए राज्यों को एएससीएडी कार्यक्रम के तहत सहायता दिया जा रहा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक की जानकारी देते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण और रेल मंत्री मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि पशु औषधि को एलएचडीसीपी योजना में नए घटक के रूप में जोड़ा गया है. दो वर्षों 2024-25 और 2025-26 के लिए योजना पर लगभग 3880 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है. पशु औषधि घटक के तहत अच्छी गुणवत्ता और सस्ती जेनेरिक पशु चिकित्सा दवा और दवाओं की बिक्री के लिए प्रोत्साहन के लिए 75 करोड़ रुपये की राशि मुहैया कराने का प्रावधान है.
किसानों की आय बढ़ाना है मकसद
वैष्णव ने कहा कि खुरपका और मुंहपका रोग (एफएमडी), ब्रुसेलोसिस, पेस्ट डेस पेटीट्स रूमिनेंट्स (पीपीआर), सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड (सीएसएफ) और लम्पी स्किन डिजीज जैसी बीमारियों के कारण पशुओं की उत्पादकता पर प्रतिकूल असर पड़ता है. प्रशासन की कोशिश पशुओं में होने वाले रोग पर रोक लगाकर टीकाकरण के जरिये बीमारियों की रोकथाम करना है.
मोबाइल पशु चिकित्सा इकाइयों के तहत पशुधन स्वास्थ्य देखभाल की डोर-स्टेप डिलीवरी, पीएम-किसान समृद्धि केंद्र और सहकारी समितियों के नेटवर्क से जेनेरिक पशु चिकित्सा दवा-पशु औषधि की उपलब्धता में सुधार को सशक्त बनाने का काम करेगी.
गौरतलब है कि केंद्र प्रशासन ने वर्ष 2030 तक पशुओं को खुरपका और मुंहपका रोग से मुक्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. इसके लिए व्यापक पैमाने पर टीकाकरण अभियान और दवा की उपलब्धता सुनिश्चित करने का काम किया जा रहा है. एक अनुमान के अनुसार पशुओं में होने वाले रोग के कारण हर साल 35 हजार करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान होता है.
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