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अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर युद्ध की आहट! क्या मैदान में कूदेगा सऊदी भाईजान, डिफेंस डील की अग्निपरीक्षा

Afghanistan Pakistan Border Conflict: अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच एक बार फिर बंदूकें गरज रही हैं. रविवार रात की झड़पों ने दोनों देशों के रिश्तों में ऐसा जहर घोला है, जिसकी गूंज सिर्फ कंधार या खोस्त तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में सुनाई दे रही है. पाकिस्तान कहता है कि उसने तहरीक-ए-तालिबान के आतंकियों को निशाना बनाया, जबकि अफगानिस्तान इसे अपनी  राजसत्ता पर हमला बता रहा है. अब जब हालात बिगड़े हुए हैं, तब सबकी नजर एक तीसरे खिलाड़ी पर टिक गई है और वह है सऊदी अरब. जिसने हाल ही में पाकिस्तान के साथ एक ऐसा रक्षा समझौता किया है जो इस पूरे समीकरण को पलट सकता है.

सीमा पर खून, गोलियों की गूंज और बढ़ता तनाव

रविवार रात अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर भारी गोलीबारी हुई. इस झड़प में कम से कम 18 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए और कई को अफगान बलों ने पकड़ लिया. यह संघर्ष पाकिस्तान के उस हवाई हमले के बाद शुरू हुआ, जो उसने कुछ दिन पहले काबुल पर किया था. इस्लामाबाद का दावा है कि उसने TTP के एक आतंकी सरगना को निशाना बनाया था. कंधार, नंगरहार, खोस्त और हेलमंद प्रांतों में तोपखाने और गोलीबारी पूरी रात चलती रही. अफगान सूत्रों का दावा है कि उन्होंने कई पाकिस्तानी चौकियां कब्ज़ा लीं, जबकि पाकिस्तान का कहना है कि उसने जवाबी कार्रवाई में 19 अफगान चौकियां नष्ट कीं.

Afghanistan Pakistan Border Conflict: डूरंड रेखा- सीमा पार फैल सकता है संघर्ष

डूरंड रेखा का इतिहास अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रिश्तों की जड़ में है. 19वीं सदी के ब्रिटिश नक्शे से खींची गई ये लकीर आज भी दोनों देशों के बीच सबसे बड़ी दीवार बनी हुई है. तालिबान प्रशासन पाकिस्तान के हवाई हमलों से नाराज है और उसने चेतावनी दी है कि अगर यह सिलसिला नहीं रुका तो संघर्ष सीमा पार फैल सकता है. यानी, बारूद की ये लपटें सिर्फ सीमित नहीं रहने वालीं.

सऊदी-पाकिस्तान रक्षा समझौता

सितंबर 2025 में सऊदी अरब और पाकिस्तान ने एक नया रक्षा समझौता किया था. समझौते में लिखा है कि अगर किसी एक देश पर हमला होता है, तो दोनों मिलकर जवाब देंगे. सादे शब्दों में कहें तो, पाकिस्तान पर हमला मतलब सऊदी अरब पर हमला. इस वक्त जब पाकिस्तान अफगान सीमा पर उलझा हुआ है, तो दुनिया यह पूछ रही है कि क्या अब रियाद इस्लामाबाद के लिए मैदान में उतरेगा?

सऊदी अरब का बयान- ‘संयम बरतो, बातचीत करो’

रियाद ने फिलहाल सार्वजनिक तौर पर कहा है कि दोनों पक्ष “संयम बरतें और बातचीत के जरिए हल निकालें.” सऊदी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि राज्य संयम बरतने, तनाव बढ़ाने से बचने और क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए संवाद अपनाने का आह्वान करता है. साथ ही उन्होंने यह भी दोहराया कि सऊदी अरब क्षेत्र में शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपनी प्रतिबद्धता पर कायम रहेगा.

लेकिन नेतृत्व के जानकार कह रहे हैं कि यह सिर्फ एक राजनयिक बयान नहीं है. इसके पीछे सऊदी अरब की रणनीतिक सोच भी है. क्योंकि अगर स्थिति नियंत्रण से बाहर जाती है, तो रियाद सिर्फ बयानबाजा नहीं करेगा, बल्कि पाकिस्तान के पक्ष में व्यावहारिक समर्थन दे सकता है चाहे वह आर्थिक, कूटनीतिक या रक्षा स्तर पर हो.

ट्रंप की नजर बगराम एयरबेस पर

इस पूरी कहानी में एक और दिलचस्प परत जुड़ गई है, बगराम एयरबेस. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में इस बेस पर दोबारा नियंत्रण पाने की इच्छा जताई है. उनका कहना है कि यह ठिकाना चीन के खिलाफ रणनीतिक संतुलन के लिए अहम है. अब अगर अमेरिका ऐसा कदम उठाता है, तो उसे पाकिस्तान और सऊदी अरब दोनों की जरूरत होगी. पाकिस्तान तालिबान पर असर रखता है, जबकि सऊदी अरब आर्थिक और धार्मिक दोनों मोर्चों पर ताकत रखता है. ऐसे में यह तिकड़ी वॉशिंगटन, इस्लामाबाद और रियाद सभी मिलकर अफगानिस्तान पर अप्रत्यक्ष दबाव बना सकती है.

मगर चीन, रूस और ईरान के रुख से मुश्किलें बढ़ सकती हैं

इस पूरी रणनीति में एक बड़ी बाधा भी है. चीन, रूस और ईरान क्योंकि तीनों देश अफगानिस्तान में किसी भी विदेशी सैन्य हस्तक्षेप के सख्त खिलाफ हैं. अगर सऊदी अरब या पाकिस्तान, अमेरिका के इशारे पर कोई दबाव बनाने की कोशिश करते हैं, तो यह क्षेत्रीय नेतृत्व में नया असंतुलन पैदा कर सकता है. सऊदी अरब की ओर से आया शांति का संदेश सुनने में सौम्य लगता है, लेकिन उसके भीतर शक्ति का संकेत छिपा है. यह नया रक्षा समझौता सऊदी को दक्षिण एशिया में एक ऐसे सुरक्षा खिलाड़ी के रूप में स्थापित करता है, जो सिर्फ खाड़ी तक सीमित नहीं है. विश्लेषकों का मानना है कि यह समझौता एक चेतावनी और एक गारंटी दोनों है यानी, अगर पाक-अफगान संघर्ष बढ़ता है, तो रियाद का समर्थन सिर्फ कागजों तक सीमित नहीं रहेगा.

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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